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This Article is From Apr 14, 2015

राजीव रंजन : दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन में भारत-पाक के टकराव के 31 साल

Rajeev Ranjan
  • Blogs,
  • Updated:
    अप्रैल 15, 2015 10:38 am IST
    • Published On अप्रैल 14, 2015 21:37 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 15, 2015 10:38 am IST

नई दिल्‍ली : दुनिया का सबसे ऊंचा लड़ाई का मैदान सियाचिन। आज 31 साल हो गए जब इसको लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच जंग की शुरुआत हुई थी फिर भी लड़ाई अभी तक थमने का नाम नहीं ले रही है। अलग बात है कि एलओसी और इंटरनेशनल बार्डर की तरह यहां ना तो गोलाबारी होती है और ना ही घुसपैठ।

बावजूद चौबीसो घंटे दोनों ओर से जवान डटे रहते हैं। ये केवल सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र ही नहीं है बल्कि सबसे खर्चीला भी है। यहां एक ऐसी जंग लड़ी जा रही है जिसे लड़ने वाले दोनों पक्ष जानते हैं कि इसका कोई विजेता नहीं हो सकता। फिर भी कोई अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं। सियाचिन ग्लेशियर 76 किलोमीटर में फैला हुआ है।

जब तक पाकिस्तान पर भरोसा था तब तक ठीक था, फिर अचानक उसने अपने मैप में पीओके की सीमा को एलओसी के अंतिम छोर एनजे-9842 से सीधी रेखा खींचकर कराकोरम दर्रे तक दिखाना शुरू किया तो भारत सरकार के कान खड़े हो गये। इतना ही नहीं पाकिस्तान ने 1984 की गर्मियों में सियाचिन ग्लेशियर के सालतारो रिज पर कब्जा करने की कोशिश की। पाक के इन मंसूबों को भांपकर पहले ही भारत ने 13 अप्रैल 1984 को ऑपरेशन मेघदूत लॉन्‍च किया। साथ ही पाकिस्तान की सेना को पीछे धकेल दिया जिसके इरादे नुब्रा घाटी के साथ लद्दाख पर कब्जा जमाना था। उसके बाद से जो जवान जहां पर तैनात हुए फिर पीछे नहीं हटे।

18 हजार से 22 हजार फुट की ऊंचाई पर सैनिकों के लिए युद्ध लड़ना आसान नहीं है। यहां पर सैनिक का सबसे बड़ा दुश्मन वहां के मौसम को माना जाता है। यहां की कठिनाइयों को देखते हुए जवानों की तैनाती सिर्फ तीन महीने के लिये की जाती है। यहां जवानों को दुश्मन की गोली के साथ भयानक सर्दी से भी अपने आप को बचाना है। यहां हड्डियां चीर देने वाली बर्फीली हवा चलती है और हिमस्खलन का खतरा लगातार बना रहता है। दरअसल शून्य से कम तापमान और ऐसे वातावरण में डिप्रेशन जैसी कई बीमारियां आम बात है।

बावजूद इतने विपरीत हालात के जवान चौकी को छोड़ नहीं सकते हैं क्योंकि अगर छोड़ा तो दुश्मन के कब्जे में चले जाने का डर बना रहता है। अगर किसी की बहुत ज्यादा तबीयत खराब हो जाए तो जरूरी नहीं कि तुरंत डॉक्टर की मदद पहुंच जाए। एक तो पोस्ट तक पहुंचने में कई दिन लग जाते हैं और दूसरे वहां तक सिर्फ हेलीक़ॉप्टर के जरिए ही पहुंचा जा सकता है। यहां पर मौसम खराब होने में देर नहीं लगती और ऐसे हालात में हेलीकॉप्टर तो उड़ ही नहीं सकता।

इस इलाके में तैनात मेजर जनरल शेरू थपलियाल कहते हैं, 'ऐसी कठिनाई वाली जगह पर तैनात होना हमारे लिये फख्र की बात थी। उस वक्त तो इतनी सुविधा तक नहीं थी जितनी आज हमारे जवानों को उपलब्ध है फिर भी हमारे हौसले किसी से कम नहीं थे।'

हालत ये है यहां पर सैनिकेों के लिये सामग्री भी हेलीकॉप्टर के जरिये ही पहुंचाई जाती है। एक आंकड़े के मुताबिक इन 31 सालों में भारत के 1025 और पाकिस्तान के 1344 जवान मारे जा चुके हैं। इस पर सलाना कितने खर्च हो रहे है इसका कोई अनुमान नहीं है बस कयास ही लगाए जा रहे हैं। इतना जरूर है कि भारत का मानना है सियाचिन ग्लेशियर रणनीतिक और कूटनीतिक तौर पर काफी अहम है और इसे छोड़ा नहीं जा सकता है भले ही इसके लिये कितनी जानें जाए और कितने भी पैसे खर्च हों।

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