
- वैशाली सीट पर बिहार चुनाव 2025 में जेडीयू के सिद्धार्थ पटेल और आरजेडी के अजय कुशवाहा के बीच मुकाबला
- 2020 में जेडीयू के सिद्धार्थ पटेल ने कांग्रेस के संजीव सिंह को हराकर सीट बरकरार रखी थी
- वैशाली सीट पर जातीय समीकरण महत्वपूर्ण हैं, जिसमें यादव, कुर्मी, ब्राह्मण, एससी और मुस्लिम समुदाय शामिल हैं
वैशाली विधानसभा सीट पर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जेडीयू के मौजूदा विधायक सिद्धार्थ पटेल और आरजेडी के अजय कुशवाहा के बीच मुकाबला देखने को मिलेगा. 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू उम्मीदवार सिद्धार्थ पटेल ने कांग्रेस प्रत्याशी संजीव सिंह को हराकर सीट बरकरार रखी. एनडीए गठबंधन की मजबूती और नीतीश कुमार की विकासवादी छवि ने जेडीयू को यहां लगातार बढ़त दिलाई, हालांकि कांग्रेस और राजद यहां धीरे-धीरे अपनी पकड़ बनाने में जुटी हैं. इस सीट पर जीत में जातीय समीकरण अहम भूमिका निभाता है.
कभी कांग्रेस का गढ़ थी वैशाली विधानसभा सीट
वैशाली विधानसभा सीट की स्थापना 1967 में हुई थी और तब से अब तक यहां 16 चुनाव हो चुके हैं. शुरुआती दशकों में यह सीट कांग्रेस का मजबूत गढ़ रही. पार्टी ने पांच बार जीत हासिल की, लेकिन 2000 के बाद क्षेत्रीय दलों ने अपना दबदबा कायम किया. पिछले दो दशकों में जेडीयू ने यहां लगातार पांच बार जीत दर्ज की है. वैशाली को साल 1972 में स्वतंत्र जिला घोषित किया गया. इससे पहले, यह मुजफ्फरपुर जिले का हिस्सा था. वर्तमान में यह हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है.
शहरी मतदाता नहीं के बराबर, जानें वोटों का गणित
वैशाली ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र है, जहां शहरी मतदाता नहीं के बराबर हैं. जातीय समीकरण इस सीट की राजनीति का आधार हैं. यहां कुल जनसंख्या में लगभग 20.47 फीसदी अनुसूचित जाति (एससी) और 12.8 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. यादव, कुर्मी और ब्राह्मण समुदाय भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इन समूहों की राजनीतिक निष्ठा अक्सर चुनाव परिणाम तय करती है. 2024 में चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या 5,68,745 है, जिसमें 3,02,107 पुरुष और 2,66,638 महिलाएं शामिल हैं. इसके अलावा, कुल मतदाताओं की संख्या 3,45,163 है, जिनमें 1,80,673 पुरुष, 1,64,476 महिलाएं और 14 थर्ड जेंडर मतदाता हैं.
वैशाली का धार्मिक महत्व
बिहार का वैशाली, वह भूमि जिसने विश्व को लोकतंत्र का पहला पाठ पढ़ाया, जैन धर्म को उसका अंतिम तीर्थंकर दिया और बौद्ध धर्म को उसका अंतिम उपदेश. वैशाली जिले की यह विधानसभा सीट अपने ऐतिहासिक, धार्मिक और राजनीतिक महत्व के कारण एक अलग पहचान रखती है. महाभारत काल से जुड़े संदर्भों में वर्णित यह क्षेत्र लगभग 600 ईसा पूर्व विश्व का पहला गणराज्य बना, जहां चुने हुए प्रतिनिधियों की सभा और सुशासन व्यवस्था थी. यह वही धरती है जहां भगवान महावीर का जन्म हुआ और गौतम बुद्ध ने अपना अंतिम प्रवचन दिया. यहां की प्रसिद्ध नगरवधू अंबपाली ने बुद्ध के मार्ग का अनुसरण कर संन्यास लिया था, जिससे यह भूमि बौद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शामिल हुई. वैशाली का नाम राजा विशाल के नाम पर पड़ा, जिन्होंने यहां एक विशाल किला बनवाया था, जिसके अवशेष आज भी इतिहास की गवाही देते हैं. लिच्छवी वंश ने वैशाली पर शासन किया और इसे नेपाल की पहाड़ियों तक विस्तारित किया. इसे एशिया का पहला गणराज्य राज्य माना जाता है.
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