
- नीतीश ने बिहार की हाई स्कूल छात्राओं को साइकिल वितरण योजना से महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया
- बिहार में पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए आरक्षण लागू किया गया है जिससे महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है
- बिहार पुलिस भर्ती में महिलाओं की संख्या पूरे भारत में सबसे अधिक होने का रिकॉर्ड है
नेतृत्व जिस समाज से आता है, वह वहां के तौर-तरीक़े और चाल-चलन को व्यापक समाज में फैलाना चाहता है. नीतीश कुमार जिस समाज से आते हैं, वहां दिनचर्या में महिलाओं को कमाने धमाने से लेकर घर परिवार में बराबरी का हक़ मिला हुआ है. इसका असर यह हुआ कि जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के गद्दी पर बैठे तो उन्होंने समस्त बिहार की हाई स्कूल छात्राओं को साइकिल देने का फैसला लिया. यह एक ऐसा फैसला था कि गांव-गांव, घर-घर से बच्चियां साइकिल चलाते स्कूल जाने लगीं. यह एक क्रांति थी. नीतीश कुमार ने एक स्त्री शिक्षा जागरण को ऊंची जाति से उठा कर व्यापक हर गली तक पहुंचाया. नीतीश अपने इस फ़ैसले से कितने ख़ुश हुए होंगे यह नहीं पता, लेकिन साइकिल चला के स्कूल जाते अपनी बेटी को देख हर एक पिता ख़ुश हुआ.
यह यहीं तक नहीं रुका, बल्कि नीतीश पंचायत चुनावों में भी महिलाओं के लिए आरक्षण लाया और पुलिस भर्ती में तो समस्त भारत में बिहार महिलाओं के नंबर में सबसे आगे हैं. लेकिन जब बात विधानसभा चुनाव की आती है, तो किसी भी दल के लिए असमंजस की बात हो जाती है, क्योंकि विधायक सरकार बनाते हैं. कोई भी दल यहां ज़मीन पर मजबूत उम्मीदवार चाहता है.
फिर भी नीतीश कुमार और भाजपा ने 13 - 13 टिकट महिलाओं को दिए हैं. लेकिन इसमें से अधिकतर वो महिलायें हैं, जो अपने पिता या पति के नाम या उनकी चुनाव में अनुपस्थिति के कारण हैं. फिर भी भाजपा की रेणु देवी अपने दम पर उप मुख्यमंत्री पद तक पहुंची हैं और जद ( यू) की शालिनी मिश्रा ने पिता की जगह अपनी ख़ुद की पहचान बनाई है.
ज़्यादा तो नहीं, लेकिन एनडीए ने एक संतुलित समीकरण में महिलाओं को टिकट दिया है. और ज़्यादा टिकट भी दे सकते थे, लेकिन उसके लिए अब स्वयं महिलाओं को घर की दहलीज से बाहर निकलना होगा, जिसमे अभी वक्त है.
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