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सिरिंज, सिरप और टैबलेट्स... बिहार के कटिहार में अस्पताल की लापरवाही ने सभी को किया हैरान, पढ़ें आखिर क्या है मामला

अस्पताल अधिकारी हमेशा की तरह जांच की बात कह रहे हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस घोर लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों पर सख्त कार्रवाई होगी?

सिरिंज, सिरप और टैबलेट्स... बिहार के कटिहार में अस्पताल की लापरवाही ने सभी को किया हैरान, पढ़ें आखिर क्या है मामला

स्वास्थ्य सेवाओं का केंद्र माने जाने वाले कटिहार सदर अस्पताल में दवा प्रबंधन की घोर लापरवाही ने एक बार फिर इंसानी जिंदगी से जुड़े इस पेशे को शर्मसार कर दिया है. अस्पताल परिसर में मौजूद एएनएम हॉस्टल और दवा स्टोर के बाहर लाखों रुपये की सरकारी दवाइयां कचरे के ढेर की तरह खुले में फेंकी हुई मिलीं. यह न केवल सरकारी पैसे की बर्बादी है बल्कि बायो-मेडिकल के नियमों की अवहेलना का जीता-जागता प्रमाण है.

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जमीन पर बिखरी 'जीवन रक्षक' दवाइयां

जो दवाइयां मरीजों की जान बचाने के लिए थीं, वह आज जमीन पर बिखरी पड़ी मिलीं. ओपीडी और इमरजेंसी में इस्तेमाल होने वाली टेबलेट, सिरप, इंजेक्शन, कैन्युला, पट्टियां और दूसरी मेडिकल सामग्री सरेआम फेंक दी गई. जांच में पता चला कि इन दवाइयों की एक्सपायरी डेट 2018, 2021 और 2022 की थी. यानी, ये दवाइयां सालों तक स्टोर में पड़ी रहीं, न तो उनका सही इस्तेमाल किया गया और न ही समय रहते स्टॉक का कोई वेरिफिकेशन किया गया.

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बायो-मेडिकल के नियम ताक पर

नियम साफ हैं कि एक्सपायरी हो चुकी दवाइयों को केवल संबंधित टीम की कड़ी निगरानी और तय प्रोटोकॉल के तहत ही नष्ट किया जा सकता है. साथ ही यह सुनिश्चित किया जाता है कि वे पर्यावरण या लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान न पहुंचाएं. लेकिन कटिहार सदर अस्पताल प्रबंधन ने इन सभी नियमों की खुली धज्जियां उड़ा दीं. मेडिकल वेस्ट का इस तरह से खुले में फेंका जाना बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के नियमों का सीधा उल्लंघन है. इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान होगा बल्कि गंभीर संक्रमण और बीमारियों के फैलने का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है.

जिम्मेदारी किसकी?

रिपोर्ट हैं कि इस लापरवाही में लाखों रुपये की सरकारी दवाइयां बर्बाद कर दी गईं. यह उस राज्य के स्वास्थ्य बजट का हिस्सा है, जहां आज भी दूर-दराज के इलाकों में मरीजों को एक दवा या पट्टी के लिए भटकना पड़ता है. फिलहाल अस्पताल अधिकारी हमेशा की तरह जांच की बात कह रहे हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस घोर लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों पर सख्त कार्रवाई होगी? या लाखों रुपये की दवाएं यूं ही जमीन में दफन हो जाएंगी और पूरा मामला हमेशा की तरह रफा-दफा कर दिया जाएगा?

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