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कसबा विधानसभा में महागठबंधन और NDA दोनों की राह मुश्किल, निर्दलीय-बागी उम्मीदवार पलट देंगे बाजी?

विकास की विषमताओं से जूझ रहे कसबा विधानसभा क्षेत्र में इस बार का चुनावी संग्राम किसी पहेली से कम नहीं है। एक तरफ कुछ इलाके लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा पा चुके हैं, तो दूसरी ओर एक अदद पुल के लिए दशकों से इंतजार कर रहे हैं।

कसबा विधानसभा में महागठबंधन और NDA दोनों की राह मुश्किल, निर्दलीय-बागी उम्मीदवार पलट देंगे बाजी?
  • कसबा विधानसभा क्षेत्र में मतदाता स्थानीय समस्याओं के समाधान के लिए नया प्रतिनिधि चुनने को लेकर असमंजस में हैं
  • क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता लगभग 40 प्रतिशत हैं और कुल तेरह उम्मीदवारों में छह अल्पसंख्यक उम्मीदवार शामिल हैं
  • वर्ष 2020 के चुनाव में कांग्रेस के आफाक आलम ने जीत हासिल की थी, अब सभी प्रमुख प्रत्याशी निर्दलीय हैं
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कसबा:

विकास की विषमता का नायाब उदाहरण है ,कसबा विधानसभा क्षेत्र. कहीं लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा तो कोई इलाका आज भी एक अदद पुल का दशकों से इंतजार कर रहा है. एक बार फिर क्षेत्र के 2,85,665 मतदाता अपना रहनुमा चुनेंगे ताकि स्थानीय समस्याओं का समाधान हो सके. लेकिन, स्थानीय मतदाता उहापोह की स्थिति में हैं क्योंकि दलीय और राजनीतिक समीकरण इस कदर मकड़जाल की तरह उलझे हुए हैं कि उसे सुलझा पाना आसान नही रह गया है. दलीय पहचान बदल गई तो अपने भी पराए हो गए, धैर्य चुका तो बागी हो गए, किसी ने पाला बदलना उचित समझा तो किसी ने कहा जनता और कार्यकर्ता की राय पर जनता की अदालत में आया हूं. बस एक बात जो सभी 13 प्रत्याशी कह रहे हैं, उन्हें जनअदालत में न्याय चाहिए. मतदाता पशोपेश में हैं, जाति या धर्म या क्षेत्रीयता या जनसमस्या किस बिना पर अपना फैसला सुनाएं. जनचर्चा तेज है, क्या परिणाम अप्रत्याशित होगा! क्या दलीय विचारधारा पर स्वतंत्र विचारधारा भारी साबित होगा! क्या फिर मतों के ध्रुवीकरण से जीत-हार की कहानी लिखी जाएगी! या फिर भीतरघात से लोकतंत्र के महापर्व का समापन हो जाएगा. 

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मुस्लिम मतदाता सर्वाधिक, मैदान में 6 अल्पसंख्यक उम्मीदवार

कसबा विधानसभा क्षेत्र में लगभग 40 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. इसके बाद सर्वाधिक आबादी वैश्य और महादलित समुदाय की है. कुल 13 उम्मीदवारों में 6 प्रत्याशी अल्पसंख्यक बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं. जिनमें मो इरफान (कांग्रेस), मो आफाक आलम (निर्दलीय), मो शाहनवाज आलम (एआईएमआईएम), मो इत्तेफाक आलम (जनसुराज), मो मुजम्मिल मज हरी (एसडीपीआई) और मो हयात असरफ (निर्दलीय) शामिल है.अन्य प्रमुख उम्मीदवारों में नितेश सिंह (लोजपा-आर), भानु भारतीय (आप), सनोज चौहान (बसपा), प्रदीप दास (निर्दलीय), राजेन्द्र यादव (निर्दलीय), सुबोध ऋषिदेव (निर्दलीय), कन्हैयालाल मण्डल (पीपीआईडी) प्रमुख रूप से शामिल हैं.

तीनों पूर्व दलीय प्रत्याशी अब अखाड़े में हैं निर्दलीय

राजनीति में पल भर में रिश्ते कैसे बदलते हैं, इसका उदहारण यह है कि वर्ष 2020 विधानसभा चुनाव में कसबा से कांग्रेस के आफाक आलम, लोजपा-आर के प्रदीप दास और एनडीए समर्थित हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राजेन्द्र यादव आमने- सामने थे. आफाक आलम की जीत हुई, निकटतम प्रतिद्वंदी प्रदीप दास रहे और राजेंद्र यादव तीसरे स्थान पर रहे थे. गौरतलब है कि प्रदीप दास वर्ष 1995, 2000 और अक्टूबर 2005 के चुनाव में कसबा से भाजपा विधायक बने, जबकि आफाक आलम ने वर्ष 2010, 2015 और 2020 में बतौर कांग्रेस प्रत्याशी जीत दर्ज किया था. इत्तफाकन आफाक आलम, प्रदीप दास और राजेंद्र यादव तीनों को उनकी पार्टी ने बेटिकट कर दिया. अब तीनों प्रत्याशी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में हैं. 

प्रदीप दास

प्रदीप दास

महागठबंधन और एनडीए प्रत्याशी की घोषणा पर हुआ था घमासान

महागठबंधन में कसबा सीट कांग्रेस के खाते में गई तो मो इरफान प्रत्याशी घोषित हुए. विधायक आफाक आलम ने बेटिकट होने के बाद कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व और पूर्णिया सांसद पप्पू यादव पर टिकट बेचने का आरोप लगाया. दरअसल, यह आरोप इस लिए भी लगा कि मो इरफान पप्पू यादव के करीबी माने जाते हैं. ऐसी चर्चा है कि पूर्णिया की बनमनखी और कसबा सीट पर कांग्रेस में पप्पू यादव की मर्जी चली. इसी तरह जब एनडीए में लोजपा-आर से होटल एवं रियल एस्टेट कारोबारी नितेश सिंह को उम्मीदवार बनाया गया तो राजनीतिक गलियारे में खलबली मच गई. वजह यह रही कि नितेश सिंह सीधे तौर पर कभी भी राजनीति में सक्रिय नही रहे है. माना गया कि वे पैराशूट के सहारे मैदान में उतरने में कामयाब रहे. टिकट से वंचित हम जिलाध्यक्ष राजेन्द्र यादव ने पद से इस्तीफा देते हुए पार्टी अध्यक्ष डॉ संतोष कुमार सुमन पर आरोप लगाया कि पार्टी अध्यक्ष ने टिकट दिलाने के एवज में उनसे करोड़ों रुपए की मांग किया था. 

राजेन्द्र यादव

राजेन्द्र यादव

दोनों महागठबंधन में गांठ ही गांठ, भीतरघात तय कर सकता है परिणाम

महागठबंधन प्रत्याशी मो इरफान हो या एनडीए प्रत्याशी नितेश सिंह ,दोनों की डगर आसान नही है. मो इरफान की राह में सबसे बड़ी बाधा निर्दलीय उम्मीदवार मो आफाक आलम साबित हो रहे हैं. इसी तरह जनसुराज के मो इत्तेफाक आलम और एआईएमआईएम के मो शहनवाज आलम भी मो इरफान की राह में कील बिछाने के लिए तैयार हैं. जबकि, एनडीए प्रत्याशी नितेश सिंह की राह में सबसे बड़ी बाधा निर्दलीय प्रत्याशी प्रदीप दास एवं निर्दलीय राजेन्द्र यादव साबित हो रहे हैं. राजेन्द्र यादव भले ही निर्दलीय उम्मीदवार हैं लेकिन उनका चुनाव चिन्ह कड़ाही छाप ही है, जो हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा का चुनाव चिन्ह है. ऐसे में श्री यादव को चुनाव चिन्ह का कमोबेश लाभ मिलने की संभावना से इनकार नही किया जा सकता है. प्रत्याशी बदलने से दोनों गठबंधन के कार्यकर्ताओं में कंफ्यूजन है और इस स्थिति में अगर भीतरघात हुआ तो परिणाम चौंकाने वाले भी हो सकते हैं. वोटों के बिखराव और मतों के ध्रुवीकरण की बिसात पर भी हार-जीत की पटकथा लिखी जा सकती है.

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