एक के बाद एक बिहार के कई जिलों में पुल धराशायी होते गए, मानों कोई होड़ सी लगी हो. जहां इसकी शुरुआत कोसी क्षेत्र के अररिया जिले से हुई वही सिवान ने तो मानो रिकॉर्ड ही बना दिया. एक दिन में तीन पुल ने आत्महत्या सा कर लिया. सिवान और छपरा में कुल मिलाकर 2 दिन में पांच पुल ज़मींदोज हो गए और यह सभी के सभी एक ही नदी पर बने थे. एनडीटीवी ने अपने पड़ताल में पाया की इन पुलों के गिरने का मुख्य कारण नदी की सफाई थी.
NDTV की पड़ताल में सच आया सामने
जिस एजेंसी को नदी की सफाई करने एवं गाद हटाने का ठेका दिया गया, उसने यह भी नहीं देखा कि वहां कोई पुल भी खड़ा है . उसने पुल के पाये के पास से भी गाद, मिट्टी और बालू हटा दिया और नतीजा पुल बिना किसी सहारे के खड़ा रहा . जैसे ही बरसात हुई, नदी में पानी बढ़ा और पानी का दबाव बढ़ा , एक के बाद एक पुल भारभरा के गिरने लगे . विशेषज्ञों की माने तो अभी आगे और भी पुल गिरेंगे.
गिरने वाले पुल ग्रामीण इलाकों में हैं स्थित
ये सारे के सारे पुल ग्रामीण इलाकों में छोटी नदियां या नहरोंपर बने हुए हैं. अररिया का पुल जहां ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा बनाया गया था. वहीं सिवान में भी एक पुल इसी विभाग ने बनाया था. पूर्वी चंपारण के घोड़ाशान एवं किशनगंज के बहादुरगंज का पुल भी बिहार सरकार के ग्रामीण कार्य विभाग ने ही बनाया था. वही मधुबनी का पुल प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत बना था इसे बिहार सरकार के ग्रामीण विकास विभाग ने बनाया था. मुजफ्फरपुर के अतरार घाट पर बना पुल एक अस्थाई पुल था जो ग्रामीणों ने स्वयं बनाया था. जबकि सिवान में गिरे चार पूलो में से दो पुल सांसद विकास निधि फंड से बने थे. सारण के जनता बाजार में गण्डकी नदी पर जो पुल गिरा वह विधायक ने अपने विकास निधि से बनाया था. वही सारण का दूसरा पुल अंग्रेजों के समय का बना था.
बिहार सरकार पर खड़े हुए गंभीर सवाल
जिस तरीके से एक के बाद एक पुल गिरते जा रहे हैं, उसने बिहार सरकार की पुल की रखरखाव की नीति पर बड़ा सवालिया निशान खड़ा कर दिया है. सरकार मानती है की चूक हुई है. वहीं इन हादसो ने विपक्ष को एक बड़ा मौका दे दिया है.सरकार देर से ही सही, लेकिन अब एक्शन मोड में दिख रही है. लेकिन वह तब जबकि पूरे देश में बिहार की किरकिरी हो चुकी है. संतोष है तो केवल इस बात का की इन हादसो में ना किसी की जान गई ना कोई घायल हुआ.
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