- संजय सरावगी दरभंगा सदर से लगातार छह बार विधायक रह चुके हैं और उनके पास मजबूत क्षेत्रीय पकड़ है
- वैश्य समुदाय से आने वाले संजय सरावगी की नियुक्ति पार्टी के सामाजिक समीकरणों को संतुलित करने का संकेत देती है
- उनकी नियुक्ति से मिथिलांचल के सफल मॉडल को पूरे बिहार में लागू कर संगठन को मजबूत करने की उम्मीद है
बीजेपी ने बिहार की राजनीति में एक अहम संगठनात्मक कदम उठाते हुए संजय सरावगी को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. यह फैसला सिर्फ एक पद परिवर्तन नहीं, बल्कि पार्टी की आगामी चुनावी रणनीति और संगठनात्मक दिशा को साफ तौर पर दर्शाता है. डिजिटल राजनीति के दौर में यह नियुक्ति कई स्तरों पर संदेश देती है. कार्यकर्ताओं को भरोसा, समाज को संकेत और विपक्ष को चुनौती.
कौन हैं संजय सरावगी और क्यों अहम?
संजय सरावगी दरभंगा सदर से लगातार 6 बार में विधायक हैं. बिहार की राजनीति में 6 बार जीत दर्ज करना आसान नहीं होता, खासकर तब जब हर चुनाव में समीकरण बदलते रहते हैं. यह उनकी मजबूत जनाधार, क्षेत्रीय पकड़ और संगठन पर पकड़ को दिखाता है. मिथिलांचल जैसे संवेदनशील और राजनीतिक रूप से जागरूक क्षेत्र में उनकी स्वीकार्यता बीजेपी के लिए बड़ी पूंजी है.

उनका राजनीतिक सफर सिर्फ चुनाव जीतने तक सीमित नहीं रहा. वे बिहार सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं, जहां उन्होंने शासन और प्रशासन को नजदीक से समझा. इससे उन्हें यह अनुभव मिला कि नीतियां जमीन पर कैसे लागू होती हैं और जनता की अपेक्षाएं क्या होती हैं. प्रदेश अध्यक्ष के रूप में यह अनुभव संगठन को व्यावहारिक दिशा देने में मदद करेगा.
संगठनात्मक नजरिए से क्या बदलेगा?
बीजेपी का यह फैसला बताता है कि पार्टी अब ऐसे नेता को आगे ला रही है जो सिर्फ भाषण देने वाला नहीं, बल्कि संगठन को चलाने वाला है. संजय सरावगी लंबे समय से कार्यकर्ताओं और नेतृत्व के बीच सेतु की भूमिका निभाते रहे हैं. ऐसे समय में, जब बूथ लेवल मैनेजमेंट और माइक्रो प्लानिंग चुनाव जीतने की कुंजी बन चुकी है, उनका अनुभव बेहद काम का साबित हो सकता है.

प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उनसे उम्मीद है कि वे जिलों और मंडलों तक संगठन को सक्रिय करेंगे, पुराने कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भरेंगे और नए चेहरों को आगे लाएंगे. डिजिटल कैंपेन, ग्राउंड लेवल फीडबैक और संगठनात्मक अनुशासन इन सभी मोर्चों पर उनकी भूमिका निर्णायक हो सकती है.
सामाजिक समीकरण और वैश्य कार्ड
संजय सरावगी वैश्य समुदाय से आते हैं, जिसे बीजेपी का पारंपरिक और मजबूत वोट बैंक माना जाता है. बिहार में वैश्य समाज का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव खासा है. ऐसे में एक वैश्य नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाना सिर्फ संगठनात्मक नहीं, बल्कि सामाजिक संदेश भी देता है. यह फैसला पार्टी के कोर वोटर्स को साधने और उन्हें और मजबूती से जोड़ने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.
मिथिलांचल से पूरे बिहार तक मैसेज
मिथिलांचल में बीजेपी को मजबूत करने में संजय सरावगी की भूमिका पहले ही साबित हो चुकी है. अब चुनौती है पूरे बिहार में उसी मॉडल को लागू करने की. पार्टी नेतृत्व को भरोसा है कि वे क्षेत्रीय सीमाओं से ऊपर उठकर पूरे राज्य में संगठन को धार देंगे.

कल नितिन नबीन को दे रहे थे बधाई और आज खुद बधाई मिलने लगी.
कुल मिलाकर, संजय सरावगी की प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति बीजेपी का एक सोचा-समझा और रणनीतिक फैसला है. यह संगठनात्मक मजबूती, सामाजिक संतुलन और आगामी चुनावी तैयारी तीनों को ध्यान में रखकर लिया गया कदम है. आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह फैसला बीजेपी को बिहार की राजनीति में कितनी बढ़त दिला पाता है, लेकिन इतना तय है कि यह नियुक्ति सिर्फ औपचारिक नहीं, बल्कि दूरगामी असर वाली है.
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