
- प्रत्यय अमृत बिहार के नए मुख्य सचिव होंगे. अमृत लाल मीणा के रिटायर होने के बाद वे 1 सितंबर को पदभार लेंगे.
- DM के रूप में कटिहार और छपरा में उन्होंने अभूतपूर्व फैसले लिए. मुख्यालय में भी जहां रहे, मिसाल कायम की.
- चुनावी साल में मुख्य सचिव बनने के बाद प्रशासनिक निष्पक्षता और ब्यूरोक्रेसी की साख बनाए रखना चुनौती होगी.
- Bihar New Chief Secretary Pratyaya Amrit: कभी उन्हें सुपरमैन कहा गया, कभी सरकार का संकटमोचक तो कभी 'मिशन इम्पॉसिबल' को 'मिशन कंप्लीट' में बदलने वाला अधिकारी. प्रत्यय अमृत, ये वो नाम है, जो एक बार फिर से चर्चा में है. उन दिनों जब पीपीपी मोड यानी पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप सुनने में नया-नया था. प्रत्यय अमृत ने स्वास्थ्य विभाग में पहली बार पीपीपी मॉडल लागू किया और जिला अस्पताल का कायापलट कर डाला. छपरा में डीएम रहे तो अश्लीलता के लिए बदनाम अंतरराष्ट्रीय सोनपुर पशु मीमेले का 'बदनुमा दाग' साफ कर डाला. सिनेमाघरों में सीसीटीवी अनिवार्य किया. ऊर्जा विभाग में रहे तो गांव-गांव तक तय समय से पहले बिजली पहुंचा दी. राज्य मुख्यालय में रहते गंगा पाथ और दीघा फ्लाइओवर जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर से पटना की तस्वीर बदल डाली. 2011 में केंद्र सरकार ने व्यक्तिगत श्रेणी में 'प्रधानमंत्री पुरस्कार' पाने वाले वे अकेले आईएएस (IAS) थे.
एक के बाद एक ऐसी और भी कई उपलब्धियां प्रत्यय अमृत के नाम दर्ज हैं. ईमानदारी और रिजल्ट देने की काबिलियत ने उन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भरोसेमंद बनाया. तभी तो अब, जबकि अमृत लाल मीणा के बाद उन्हें अगले मुख्य सचिव बनाया जा रहा है तो इस नाम पर आश्चर्य नहीं हो रहा. 58 वर्षीय ये आईएएस अफसर अब ब्यूरोक्रेसी में सूबे का सबसे बड़ा चेहरा बनने जा रहा है.
गोपालगंज से आईएएस तक का सफर
गोपालगंज के एक सामान्य परिवार में जन्मे प्रत्यय अमृत के घर में किताबों की कमी नहीं रही. बचपन से ही उन्हें शिक्षा का पूरा माहौल मिला. पिता रिपुसूदन श्रीवास्तव, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर थे और मां कविता वर्मा एक शिक्षिका. प्रत्यय की बचपन से ही पढ़ाई में गहरी रुचि के पीछ ये बड़ी वजहें थीं.
दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और फिर प्राचीन इतिहास में स्नातकोत्तर में टॉप करने के बाद उन्हें श्री वेंकटेश्वर कॉलेज, दिल्ली में लेक्चरर बनने का प्रस्ताव मिला. लेकिन दिल में शायद एक और सपना पल रहा था, वही सपना, जिसके लिए बिहारी लड़के जाने जाते हैं- आईएएस बनने का सपना. सिविल सेवा की तैयारी शुरू की और दूसरे ही प्रयास में UPSC पास कर लिया. वो 1991 बैच में बिहार कैडर के आईएएस बने. बड़े भाई एलाइड सेवा में चयनित होने के बाद बीमा सेक्टर में अधिकारी रहे हैं, जबकि बहन प्रज्ञा ऋचा आईपीएस अधिकारी.

ट्रेनिंग के दौरान ही किया कमाल
आईएएस प्रशिक्षण के दौरान उन्हें दुमका में पोस्टिंग मिली. वहां उन्होंने लोगों से करीबी के लिए आदिवासी भाषा संताली सीखी. सिमडेगा में अनुमंडल दंडाधिकारी रहते हुए उन्होंने जुआ रैकेट का भंडाफोड़ किया. ये ऐसे शुरुआती अनुभव थे, जिन्होंने उन्हें ग्राउंड से जोड़कर रखा. बाद में यही दृष्टिकोण, उन्हें बिहार के सबसे भरोसेमंद अफसरों की कतार में सबसे आगे खड़ा करने वाला था.
जहां भी डीएम रहे, वहां अलग पहचान छोड़ी
कटिहार के डीएम रहते उन्होंने जिला अस्पताल में पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप (PPP) मॉडल लागू किया. उस समय यह अपने तरह का पहला प्रयोग था और जिलेवासियों के लिए भी नई बात थी. पीठ पीछे कुछ आलोचना भी हुई, लेकिन कुछ ही समय में अस्पताल की तस्वीर बदल चुकी थी. छपरा में जब डीएम रहे तो वहां भी अलग छाप छोड़ी. सोनपुर पशु मेले में अश्लीलता पर रोक लगाई. साथ ही सिनेमाघरों में CCTV लगाना अनिवार्य किया. इन फैसलों ने दिखाया कि प्रत्यय

पुल निर्माण निगम के संकटमोचक
प्रत्यय के बारे में कहा जाता है कि सरकार को जब कहीं संकट दिखा, उनकी तैनाती कर दी. दीवारों में सीलन, टूटी हुई कुर्सियां और फटे हुए परदे, बिहार राज्य पुल निर्माण निगम (BRPNN) के दफ्तर का हाल किसी कबाड़खाने से कम नहीं था. घाटे में तो था ही निगम. यानी हालत इतनी खराब थी कि राज्य सरकार भी शायद इसे बंद करने का मन बना चुकी थी.
जब वे बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड के चेयरमैन बने, तब निगम दिवालिया होने की कगार पर था. फंड की कमी, प्रबंधन में ढीलापन और परियोजनाओं में देरी... यही इसकी पहचान थी. और फिर आए प्रत्यय अमृत, जिनके नेतृत्व में निगम ने कर्ज से उबरकर मुनाफे में वापसी की. पूरे बिहार में सड़कों और फ्लाईओवर का जो जाल दिखता है, वो प्रत्यय अमृत के प्रयासों का नतीजा है.
बिहार की सूरत बदलने में अहम रोल
गंगा पाथ और AIIMS-दिघा फ्लाईओवर जैसे प्रोजेक्ट्स हों या फिर ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहर गांव-गांव बिजली पहुंचाने के अभियान तक, उनके हर काम ने बिहार की सूरत बदलने में अहम योगदान दिया. काफी मुश्किल काम को भी उन्होंने संभव किया. 2015 विधानसभा चुनाव से पहले बिजली की स्थिति में सुधार उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मानी जाती है.

बिहार प्रेम के चलते दिल्ली छोड़कर लौटे
2001 से 2006 तक वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली में थे. लेकिन बिहार में काम करने की तय समय-सीमा से छह महीने पहले ही दिल्ली की पोस्ट छोड़कर वे पटना लौट आए. उनका मानना था कि बिहार को असली बदलाव की जरूरत है और अपने ही राज्य में मौके भी है. प्रत्यय मौके को गंवाना नहीं चाहते थे.
कोविड की दूसरी लहर में बिहार को संभाला
2021 में जब कोविड-19 की दूसरी लहर ने देश के अन्य राज्यों की तरह महामारी ने बिहार को भी झकझोर दिया था, तब प्रत्यय को स्वास्थ्य विभाग की कमान मिली. इस दौरान ऑक्सीजन सप्लाई बढ़ाने से लेकर कोविड बेड की संख्या दोगुनी करने और वैक्सिनशन प्रोग्राम को गति देने में उनका अहम रोल रहा. इन कदमों की बदौलत सूबे में जानमाल का कम नुकसान हुआ और संक्रमण पर कंट्रोल पाने में मदद मिली.

नीतीश कुमार के 'भरोसेमंद'
बिहार की नौकरशाही में गिने-चुने अफसर हैं जिन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पूरा भरोसा हासिल है, इनमें प्रत्यय अमृत सबसे पहल आते हैं. विवादों से दूर रहते हुए काम करना, ईमानदारी, सादगी और परिणाम देने की क्षमता उनकी पहचान बन चुकी है.
प्रत्यय अमृत की मुख्य सचिव के रूप में नियुक्ति ऐसे समय पर हुई है, जब साल के अंत में चुनाव होने हैं. नोटिफिकेशन भी अमृत लाल मीणा के रिटायरमेंट से पूरे 27 दिन पहले जारी किया गया.
बिहार में 4 दशक तक पत्रकार रहे रवींद्र नाथ तिवारी कहते हैं कि ये 'जल्दी' दरअसल प्रत्यय अमृत को चुनाव से पहले प्रशासन की पूरी कमान सौंपने की रणनीति हो सकती है. तभी तो मुख्य सचिव की कुर्सी संभालने से पहले उन्हें वर्तमान मुख्य सचिव का ओएसडी बनाया गया है. यानी कागज पर 1 सितंबर से वे मुख्य सचिव होंगे, लेकिन माना जा रहा है कि अमृत लाल मीणा के रिटायर होने तक भी असली फैसले उन्हीं के हाथ में रहेंगे.
नए सीएस के सामने चुनौतियां भी होंगी
मुख्य सचिव बनने के बाद उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं होंगी. चुनावी साल में प्रशासनिक निष्पक्षता बनाए रखना और बदलते सियासी समीकरणों के बीच ब्यूरोक्रेसी की साख बचाए रखना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी.
प्रत्यय अमृत का अब तक का करियर एक ऐसी यात्रा है, जिसने साबित किया है कि 'सरकारी सिस्टम' में बदलाव लाया जा सकता है. 1 सितंबर को जब वे बिहार के मुख्य सचिव की कुर्सी संभालेंगे, तो ये सिर्फ एक पदभार ग्रहण नहीं होगा, बल्कि एक ऐसे अफसर की नई पारी की शुरुआत होगी जिसकी पहचान 'काम बोलता है' वाली रही है.
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