बिहार में अब विधानसभा चुनाव काफ़ी करीब आ चुके हैं. ऐसे में इन दिनों एक नाम तेजी से चर्चा में हैं रवि पासवान. रवि पासवान बिहार की राजनीति में एक उभरता हुआ चेहरा हैं. वह अनुभवी राजनेता छेदी पासवान के पुत्र हैं और रोहतास व कैमूर क्षेत्र की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने 2015 में चेनारी (सुरक्षित) विधानसभा सीट से भी चुनाव लड़ा था.
शैक्षणिक पृष्ठभूमि
रवि पासवान ने अपने चुनावी हलफनामे के अनुसार स्नातक (Graduate) तक की शिक्षा प्राप्त की है. उन्होंने 2003 में दिल्ली विश्वविद्यालय से आर्ट्स में स्नातक की डिग्री पूरी की.
पारिवारिक पृष्ठभूमि
रवि पासवान, बिहार के वरिष्ठ और अनुभवी नेता छेदी पासवान के बेटे हैं. छेदी पासवान भारतीय राजनीति में एक जाना-माना नाम हैं और भाजपा के पूर्व सांसद भी रह चुके हैं. उनका जन्म 1956 में हुआ था और वे कई बार लोकसभा और बिहार विधानसभा के लिए चुने गए हैं.
1989 और 1991 में उन्होंने जनता दल के उम्मीदवार के रूप में सासाराम लोकसभा सीट जीती थी, जिन चुनावों में उन्होंने मीरा कुमार को हराया था. अपने लंबे राजनीतिक करियर में उन्होंने कई दलों का प्रतिनिधित्व किया जिनमें जनता दल, राजद, जद(यू) और हाल के वर्षों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शामिल हैं. भाजपा के प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने 16वीं और 17वीं लोकसभा में सासाराम निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की. उन्होंने बिहार सरकार में मंत्री के रूप में भी कार्य किया है. पिता का इतना बड़ा राजनीतिक इतिहास होने की वजह से रवि पासवान को बचपन से ही राजनीति की गहरी समझ रही है और वे जनता के बीच अपनी पहचान बना चुके हैं.
राजनीतिक अनुभव
रवि पासवान पहले राजद (RJD) और जद(यू) (JDU) दोनों दलों के साथ काम कर चुके हैं. इससे उन्हें राजनीति के अलग-अलग पहलुओं को समझने का अनुभव मिला है.
मोहनिया में चुनावी दांव
इस बार रवि पासवान ने मोहनिया (सुरक्षित) सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया. हालात तब बदले जब राजद के उम्मीदवार का नामांकन रद्द हो गया. इसके बाद महागठबंधन (जिसमें राजद प्रमुख पार्टी है) ने रवि पासवान को अपना समर्थन दे दिया.
राजनीतिक रणनीति
राजद का यह कदम इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि इससे न सिर्फ मोहनिया सीट पर विपक्ष की स्थिति मजबूत हुई, बल्कि दलित वोट बैंक पर पकड़ बनाने की कोशिश भी हुई. अब भले ही रवि पासवान निर्दलीय उम्मीदवार हों, लेकिन महागठबंधन के समर्थन से वे एक मजबूत प्रत्याशी बनकर उभरे हैं. यह दिखाता है कि बिहार की राजनीति में व्यक्तिगत प्रभाव और पारिवारिक पहचान आज भी जीत की रणनीति में बड़ी भूमिका निभाते हैं.
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