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बिहार चुनाव: बगहा विधानसभा सीट का इतिहास, जीत के लिए जातीय समीकरण का ही भरोसा, जानें ग्राउंड रिपोर्ट

बिहार की बगहा विधानसभा सीट पर इस बार कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला है. इस सीट पर जीत के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक रखी है. दूसरी तरफ कांग्रेस भी अपने समीकरण ठीक कर रही है.

बिहार चुनाव: बगहा विधानसभा सीट का इतिहास, जीत के लिए जातीय समीकरण का ही भरोसा, जानें ग्राउंड रिपोर्ट
बगहा विधानसभा चुनाव का समीकरण
बगहा:

बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में स्थित बगहा विधानसभा सीट हमेशा से राजनीति का हॉटस्पॉट रही है. कभी कांग्रेस का गढ़, कभी जनता दल और बीजेपी के कब्जे में. इस सीट का इतिहास अपने आप में एक कहानी कहती है. 1957 में अस्तित्व में आई यह सीट अब तक 17 बार चुनावी रणभूमि बन चुकी है. यहां की राजनीति सिर्फ पार्टी लाइन तक सीमित नहीं, बल्कि व्यक्तिगत करिश्मा और जातीय समीकरण से भी गहराई से जुड़ी हुई है.

राजनीतिक इतिहास का पन्ना 

1957 में बगहा विधानसभा सीट से नरसिंह बैठा (स्वतंत्र उम्मीदवार) ने जीत हासिल की थी. उसके बाद कांग्रेस के केदार पांडे ने 1962 में जीत दर्ज की. 1970-80 के दशक में कांग्रेस ने इस सीट पर मजबूत पकड़ बनाई, लेकिन 1990 में जनता दल के पूर्णमासी राम ने कांग्रेस को हराकर सीट पर कब्जा जमाया. उन्होंने 2005 तक अलग-अलग दलों के टिकट पर लगातार पांच बार जीत हासिल की. 2005 के बाद 2010 में प्रभात रंजन सिंह जेडीयू से एनडीए के उम्मीदवार जीते थे. 2015 में सीट बीजेपी के राघव शरण पांडे के पास गई, जबकि 2020 में राम सिंह ने कांग्रेस के जयेश मंगलम सिंह को हराकर सीट पर पुनः कब्जा किया.

जातीय समीकरण और उम्मीदवार 

बगहा की राजनीति में जातीय समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं. उम्मीदवार का चयन केवल पार्टी लाइन से नहीं, बल्कि जाति और समुदाय के आधार पर भी तय होता है. क्योंकि यहां यादव, बनिया, मुस्लिम, मल्लाह, भूमिहार, ब्राह्मण की संख्या प्रभावशाली है. 2025 के चुनाव में इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए महागठबंधन और एनडीए गठबंधन ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं. यह सीट इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि स्थानीय मुद्दे और जातीय समीकरण मिलकर चुनावी नतीजे तय करते हैं.

विकास और स्थानीय समस्याएं 

बगहा क्षेत्र पिछड़ा इलाका होने के कारण कई विकास संबंधी मुद्दों का सामना करता है. किसानों की समस्याएं और कृषि संकट यहां की राजनीति का अहम हिस्सा हैं. सिंचाई की कमी, कटाव और मिट्टी के नुकसान ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. बेरोजगारी भी युवाओं के लिए बड़ी चिंता का विषय है, खासकर उन युवाओं के लिए जो उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा का इंतजार कर रहे हैं. स्थानीय लोग लंबे समय से बगहा में बड़े अस्पताल की मांग कर रहे हैं ताकि स्वास्थ्य सुविधाएं नजदीकी शहरों पर निर्भर न हों. कृषि पर असर डालने वाले कटाव की समस्या भी जनता की चिंता का हिस्सा बनी हुई है.

अधूरी उम्मीदें और जिला बनाने की मांग 

स्थानीय लोगों की बड़ी मांग बगहा को राजस्व जिला बनाने की रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई बार आश्वासन दिया, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. यह मुद्दा चुनावी बहस का हिस्सा भी बना है, क्योंकि विकास और प्रशासनिक सुधार के सवाल लोगों के मन में गहराई से बसे हैं.

2020 का चुनावी रिपोर्ट कार्ड 

2020 के विधानसभा चुनाव में बगहा में मुकाबला कड़ा रहा. इस चुनाव में राम सिंह (बीजेपी) को 90,013 मत प्राप्त हुए, वहीं जयेश मंगलम सिंह (कांग्रेस) को 59,993 मत मिले. राम सिंह ने 30,020 मतों के अंतर से विजय हासिल की.

2025 का मुकाबला 

2025 के विधानसभा चुनाव में बगहा सीट पर बीजेपी और कांग्रेस का सीधा मुकाबला है. बीजेपी ने राम सिंह को उम्मीदवार बनाया है, जबकि कांग्रेस ने जयेश मंगलम सिंह को मैदान में उतारा है. जातीय समीकरण, विकास कार्यों की स्थिति, बेरोजगारी, किसानों की समस्याएं और बगहा को जिला बनाने की मांग  यह सब मिलकर इस चुनाव को और रोमांचक बना रहे हैं. बगहा की कहानी सिर्फ चुनाव की नहीं है, यह बदलती राजनीति, अधूरी उम्मीदों और समाज के विभिन्न वर्गों की आवाज़ का आईना है. 2025 का चुनाव इस सीट की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ने वाला है.
 

बगहा से बिंदेश्वर कुमार की रिपोर्ट 

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