बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर कैबिनेट का विस्तार हो गया है. बीजेपी ने सात विधायकों ने इस बार मंत्री पद की शपथ ली है. इस साल अक्टूबर महीने में चुनाव होने हैं और उसके पहले ये संभवत अंतिम कैबिनेट विस्तार है. ये विस्तार बिहार में जातिगत चौसर को और सुदृढ़ करने की एक कोशिश बताई जा रही है. वहीं नीतीश सरकार में राजस्व मंत्री रहे दिलीप जायसवाल, जो कि बिहार भाजपा के अध्यक्ष भी है, उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.
पहले समझिए बिहार कैबिनेट का अंक गणित
बिहार विधानसभा 243 सदस्यों का सदन है और 15% के कोटे के मुताबिक बिहार में मुख्यमंत्री को मिलाकर कुल 36 मंत्री हो सकते हैं. अभी वर्तमान में नीतीश कैबिनेट में 30 मंत्री हैं, जिसमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं. यानी अभी 6 मंत्रियों का स्थान रिक्त है, लेकिन वर्तमान में राजस्व मंत्री और भाजपा के बिहार के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने ‘एक व्यक्ति एक पद' मुद्दे पर कैबिनेट से अपना इस्तीफा दे दिया और रिक्त मंत्रियों के पदों की संख्या 7 हो गई है. इन 7 पदों को आज के कैबिनेट विस्तार में भरा गया है.
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आपाधापी में लिए गए इस निर्णय के पीछे का कारण है, 28 फरवरी से शुरू होने वाला बिहार विधानसभा का बजट सत्र. अमूमन बजट सत्र के बीच में कैबिनेट विस्तार जैसी प्रक्रिया को नहीं किया जाता है और ये बजट सत्र लंबा होने वाला है, इसलिए नीतीश कुमार और जेपी नड्डा ने जब कल पटना के स्टेट गेस्ट हाउस में इस मुद्दे पर बैठक की तो उन्होंने यह निर्णय लिया कि इस विस्तार को बजट सत्र से पूर्व ही पूरा कर लिया जाए. इसीलिए आज सुबह पहले नीतीश कुमार से उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने मुलाकात की और नाम फाइनल कर लिया गया.
इस मंत्रियों के सूची पर निर्णय केवल भाजपा ने नहीं बल्कि नीतीश कुमार और भाजपा के नेताओं ने साथ बैठ कर लिया है. कारण है बिहार में जातिगत गणित और जातिगत चौसर को सुनिश्चित करना. चुनाव से ठीक पहले दोनों दलों के नेता साथ बैठे और ये सुनिश्चित करने की कोशिश की गई की सभी जाति, सभी वर्ग और सभी क्षेत्र को इस नए कैबिनेट में उचित एवं अनुपातिक जगह मिले, ताकि चुनाव में विपक्ष से इसे मुद्दा न बना सके और उस जाति के वोटरों में भी यह संदेश जाए कि उनके जाति को सत्ता में प्रतिनिधित्व मिला है.
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जानिए कौन-कौन बने मंत्री
भाजपा और जदयू ने मिलकर ये कोशिश की है जाति और क्षेत्र, दोनों के समीकरणों को साध लिया जाए.
कृष्ण कुमार मंटू: इस सूची में पहले नाम है कृष्ण कुमार मंटू, जो छपरा के अमनौर से विधायक हैं और कुर्मी जाति से आते हैं. मंटू भाजपा के पुराने नाम हैं और भाजपा नेता, सांसद एवम् पूर्व केन्द्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी के काफी करीबी माने जाते हैं. मंटू ने हाल में ही पटना में कुर्मी महासभा की रैली की थी और काफी बड़ी संख्या में अपने जाति के लोगों को पटना में उतारा था. मंटू का प्रभाव क्षेत्र छपरा, सिवान, गोपालगंज और इससे सटे हुए इलाके हैं.
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विजय मंडल: ये अररिया जिले के सिकटी के विधायक हैं और केवट जाति से आते हैं. सीमांचल का यह इलाका मुस्लिम बहुल इलाका है और यहां पर भाजपा और जदयू के लिए लगातार चुनौती बनी रहती है और इसलिए इस इलाक़े को मज़बूत करना बनता था.
राजू सिंह: मुजफ्फरपुर से सटे साहिबगंज के विधायक हैं और राजपूत जाति से आते हैं. राजू सिंह एक दबंग छवि के विधायक हैं और भाजपा से लंबे समय से जुड़े रहे हैं.
संजय सरावगी: मारवाड़ी है और दरभंगा सदर के विधायक हैं. सरावगी लगातार कई सालों से दरभंगा के इस सीट पर राज करते रहे हैं और आरएसएस के काफी करीबी माने जाते हैं.
जीवेश मिश्रा: जीवेश मिश्रा भूमिहार जाति से आते हैं. जीवेश मिश्रा पूर्व में भी मंत्री रहे हैं और इनको दोबारा मंत्रिमंडल में जगह देकर भाजपा ने भूमिहार जाति को साधने की कोशिश की है.
सुनील कुमार: ये कुशवाहा जाति के हैं. पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से कुशवाहा वोटरों की पूछ हर खेमे में लगातार बढ़ती रही है, कि जिस तरीके से कुशवाहा वोटरों ने सीटों का उलटफेर कर दिया और कई जीतने वाले उम्मीदवारों को लोकसभा तक नहीं पहुंचने दिया. उसके बाद से सभी राजनीतिक दल बिहार में कुशवाहा वोटरों का खासा ख्याल रखते हैं.
मोती लाल प्रसाद: रीगा विधानसभा से चुनकर आते हैं और तेली जाति से हैं.
जब यह सूची तय की गई तो उसके पहले दोनों दलों के नेता यानी भाजपा और जदयू के नेता साथ बैठे और यह सुनिश्चित किया कि पूरे कैबिनेट में जो मंत्रियों की जाति है और जो उनका क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व है वो ऐसा हो कि किसी भी एक जाति, एक क्षेत्र को शिकायत का मौका न मिले. एक तरह से भाजपा और नीतीश कुमार यानी जदयू की सेना तैयार तैयार हो चुकी है और आने वाले समय में ये आपको इलेक्शन मोड में सड़कों पर दिखेंगे.
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