- बिहार चुनाव में एनडीए को मिली बंपर जीत के पीछे अमित शाह की कुछ रणनीतियों की अहम भूमिका बताई जा रही है
- उन्होंने NDA के सभी दलों के शीर्ष नेतृत्व के बीच समन्वय और तनाव दूर करने में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई
- बूथ और ब्लॉक स्तर पर वोट शेयरिंग की माइक्रो-प्लानिंग कर अमित शाह ने गठबंधन के वोटों को एकजुट किया
Amit Shah Five Masterstrokes: बिहार में सियासी सरगर्मी के बीच जब बीजेपी समेत अन्य पार्टियों के स्टार प्रचारक ताबड़तोड़ रैलियों में लगे थे, तब अमित शाह भी पटना पहुंचे, लेकिन वो प्रचार में शामिल नहीं हुए. दो से तीन दिन भले ही वो किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं दिखे, लेकिन भीतर-भीतर वो एक मिशन पर लगे थे. वो मिशन था, बागियों को मनाने का मिशन, उन्हें चुनाव में शांत बिठाने का मिशन. आज जब बिहार विधानसभा चुनाव की तस्वीर साफ हो रही है तो उनकी इस रणनीति का असर साफ दिख रहा है. ये तो हुई, एक रणनीति. उन्होंने ऐसे ही कई और बड़े रणनीतिक कदम उठाए, जिन्होंने बिहार में एनडीए को इतनी बड़ी बढ़त दिलाई.
नतीजों ने एक बार फिर साबित किया है कि रणनीति और संगठनात्मक कौशल, चुनावी जीत की सबसे बड़ी नींव होते हैं. जानकारों के मुताबिक, इस जीत के केंद्र में बीजेपी के प्रमुख रणनीतिकार कहे जाने वाले अमित शाह की वह सूक्ष्म और बहुआयामी रणनीति रही. उनकी 5 प्रमुख रणनीति को निर्णायक बताया जा रहा है, जिनमें गठबंधन प्रबंधन, कार्यकर्ता संपर्क और जमीनी समन्वय का अद्भुत उदाहरण दिखा.
1. बागियों को मनाने का 'स्ट्रैटजिक साइलेंट' अभियान
चुनावी रणनीति की पहली और महत्वपूर्ण कड़ी थी, गठबंधन में उभरे असंतोष और विद्रोह को शांत करना. अमित शाह ने चुनाव प्रचार की भागदौड़ के बीच एक अहम कदम उठाया. उन्होंने दो से तीन दिनों तक कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं किया. इस दौरान उनका पूरा ध्यान उन बागी नेताओं और उम्मीदवारों पर था, जो टिकट नहीं मिलने या अन्य कारणों से नाराज थे. शाह ने व्यक्तिगत रूप से उनसे संपर्क किया, उनकी बातें सुनीं और उन्हें गठबंधन के बड़े हित में समझा-बुझाकर मनाया. इस 'स्ट्रेटजिक साइलेंस' ने NDA को अंदरूनी फूट से बचा लिया और शुरुआती झटकों से उबरने में मदद की.

2. गठबंधन की गांठ मजबूत की, NDA को एकजुट किए रखा
बिहार की राजनीति में गठबंधनों का टिके रहना हमेशा एक चुनौती रहा है. इस बार NDA में बीजेपी, जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के अलावा भी और दल शामिल थे, जिनके अपने-अपने हित थे. अमित शाह ने इस जटिल समीकरण को साधने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह लगातार सभी दलों के शीर्ष नेतृत्व के संपर्क में रहे और किसी भी तनाव या गलतफहमी को तुरंत दूर करने में भूमिका निभाई. उनकी इस सतर्कता ने गठबंधन को टूटने से बचाया और विपक्ष को एकजुट NDA के सामने मजबूती से खड़े होने का मौका नहीं दिया.
3. LJP और JDU के बीच समन्वय सुनिश्चित किया
सबसे बड़ी चुनौती LJP और JDU के बीच जमीन पर मौजूदा तनाव को मैनेज करना था. केंद्र में साथ रहने के बावजूद, बिहार में दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच खटास थी. अमित शाह ने इस मोर्चे पर महीन प्रबंधन दिखाया. उन्होंने दोनों दलों के प्रदेश नेताओं को एक मंच पर लाने और संयुक्त बैठकें करवाने पर जोर दिया. उनके निर्देश पर बीजेपी के संगठनात्मक ढांचे ने दोनों दलों के बीच एक 'समन्वय समिति' के रूप में काम किया, जिससे चुनावी मैदान में वोटों का विभाजन रुका और एक-दूसरे के उम्मीदवारों के लिए समर्थन जुटा. आपने गौर किया होगा कि जो चिराग पहले सूबे की कानून व्यवस्था पर नीतीश के नेतृत्व वाली सरकार पर सवाल उठाते दिखे थे, कुछ ही दिन बाद, उनकी प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे.
4. वोट शेयरिंग की माइक्रो-प्लानिंग
NDA की जीत का एक बड़ा आधार था, सही ढंग से वोटों का एकमुश्त होना. अमित शाह ने इसके लिए माइक्रो-प्लानिंग पर बहुत ध्यान दिया. उन्होंने बूथ और ब्लॉक स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ सीधी बैठकें कीं. इन बैठकों में उन्होंने स्पष्ट किया कि किस बूथ पर किस दल का प्रभाव है और कार्यकर्ताओं को किस तरह गठबंधन साथी के उम्मीदवार के लिए काम करना है. इस 'ग्राउंड जीरो' पर उनकी रणनीति ने गठबंधन के वोटों को एक साथ लाने में निर्णायक भूमिका निभाई और सीटें बढ़ाने में मदद की.
5. प्रवासी कार्यकर्ताओं से लगातार संपर्क
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आधुनिक चुनाव प्रबंधन में प्रवासी समुदाय और डिजिटल प्लेटफॉर्म की भूमिका अहम हो गई है. बीजेपी इस बात को भली-भांति समझते हैं. ऐसे में चुनाव के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे बिहार के प्रवासी कार्यकर्ताओं और समर्थकों से अमित शाह, लगातार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और फोन कॉल के जरिए जुड़े रहे. उन्होंने उन्हें अपने-अपने इलाकों में परिवार और जाननेवालों से संपर्क करने, चुनावी संदेश फैलाने और मतदान दिवस पर लोगों को ले जाने के लिए प्रेरित किया. इस डिजिटल नेटवर्क ने पार्टी की पहुंच को और मजबूत किया.
हालांकि बिहार में NDA की इस शानदार जीत को केवल एक पार्टी या नेता की जीत नहीं कहा जा सकता, लेकिन ये अमित शाह के सुनियोजित 'पंचतंत्र' की सफलता ही है, जिसने ऐसा अजेय मोर्चा तैयार किया कि विपक्ष चारो खाने चित होती दिख रही है.
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