मधुबनी क्षेत्र में साइकिलों से स्कूल जाती हुईं छात्राएं।
मधुबनी:
मधुबनी के लोहट चीनी मिल से लौटते समय स्कूली छात्राओं का एक समूह साइकिल पर सवार हो स्कूल से लौटता दिखा। दर्जन भर से ज्यादा की तादाद में। कईयों की पीठ पर स्कूली बस्ता बैक पैक के रूप में, तो कईयों के कैरियर में दबी किताब-कापी। कार से उन्हें ओवरटेक करने के बाद खयाल आया कि इनसे जानें कि अगर इनको स्कूटी मिले तो कैसा लगेगा।
साइकिल योजना की तरह फायदेमंद नहीं
नवीं दसवीं कक्षा की इन छात्राओं की उम्र बमुश्किल 14-15 साल की रही होगी। जाहिर है यह अभी वोटर नहीं हैं। शायद इसलिए राजनीतिक तौर पर उतनी जागरूक भी नहीं। बीजेपी की स्कूटी योजना के बारे में पूछने पर ज्यादातर ने अनभिज्ञता जाहिर की, लेकिन कुछ को पता था। उन्होंने कहा कि चुनाव जीतने के बाद बीजेपी स्कूटी योजना लेकर आएगी, लेकिन इसका फायदा सबको नहीं मिलेगा, सिर्फ पांच हजार मेधावी छात्राओं को मिलेगा। पता नहीं हम उसमें पार पा सकेंगे या नहीं। इसलिए हमें इसमें साइकिल योजना की तरह लाभ नजर नहीं आ रहा। एक ने कहा चुनाव के पहले ऐसे-ऐसे वादे होते हैं, लेकिन मान लीजिए स्कूटी मिल भी गई तो पेट्रोल कहां से आएगा? शायद उस छात्रा को इस बात की जानकारी नहीं थी कि पेट्रोल पर नीतीश के कटाक्ष के बाद बीजेपी ने दो साल तक मुफ्त पेट्रोल देने का भी वादा किया है। खैर, कुरेदे जाने पर बोली कहां तक वे पेट्रोल भराते रहेंगे। मैंने जानना चाहा कि स्कूटी आ जाए तो पेट्रोल तो मां-पिताजी भी भरवा ही देंगे। एक लड़की ने तपाक से जवाब दिया, मां-पिताजी पेट्रोल भरा सकते, तो स्कूटी भी खरीद देते। छात्रा की आवाज में दृढ़ता थी। फर्मनेस। शायद उसे इस योजना की व्यवहारिकता पर शंका है।
स्कूटी से आगे निकल पाएगी साइकिल...!
मेधावी छात्राओं को स्कूटी देने के बीजेपी के वादे से छात्राओं में उत्साह है वहीं वे कुछ तीखे सवाल भी पूछ रही हैं। कईयों को लगता है कि यह सिर्फ वोटरों को लुभाने का तरीका है, तो कई इसे नीतीश की साइकिल योजना का तोड़ बता रही हैं। नीतीश कुमार की साइकिल योजना नौवीं कक्षा से ऊपर की लड़कियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं रही। घर और स्कूल के बीच की तीन किलोमीटर की दूरी पहले पैदल तय करनी पड़ती थी, लेकिन फिर साइकिल ने पढ़ाई की राह आसान कर दी। पर क्या यह स्कूटी पर फर्राटे भर पाएगी... जवाब दूर है।
साइकिल योजना की तरह फायदेमंद नहीं
नवीं दसवीं कक्षा की इन छात्राओं की उम्र बमुश्किल 14-15 साल की रही होगी। जाहिर है यह अभी वोटर नहीं हैं। शायद इसलिए राजनीतिक तौर पर उतनी जागरूक भी नहीं। बीजेपी की स्कूटी योजना के बारे में पूछने पर ज्यादातर ने अनभिज्ञता जाहिर की, लेकिन कुछ को पता था। उन्होंने कहा कि चुनाव जीतने के बाद बीजेपी स्कूटी योजना लेकर आएगी, लेकिन इसका फायदा सबको नहीं मिलेगा, सिर्फ पांच हजार मेधावी छात्राओं को मिलेगा। पता नहीं हम उसमें पार पा सकेंगे या नहीं। इसलिए हमें इसमें साइकिल योजना की तरह लाभ नजर नहीं आ रहा। एक ने कहा चुनाव के पहले ऐसे-ऐसे वादे होते हैं, लेकिन मान लीजिए स्कूटी मिल भी गई तो पेट्रोल कहां से आएगा? शायद उस छात्रा को इस बात की जानकारी नहीं थी कि पेट्रोल पर नीतीश के कटाक्ष के बाद बीजेपी ने दो साल तक मुफ्त पेट्रोल देने का भी वादा किया है। खैर, कुरेदे जाने पर बोली कहां तक वे पेट्रोल भराते रहेंगे। मैंने जानना चाहा कि स्कूटी आ जाए तो पेट्रोल तो मां-पिताजी भी भरवा ही देंगे। एक लड़की ने तपाक से जवाब दिया, मां-पिताजी पेट्रोल भरा सकते, तो स्कूटी भी खरीद देते। छात्रा की आवाज में दृढ़ता थी। फर्मनेस। शायद उसे इस योजना की व्यवहारिकता पर शंका है।
स्कूटी से आगे निकल पाएगी साइकिल...!
मेधावी छात्राओं को स्कूटी देने के बीजेपी के वादे से छात्राओं में उत्साह है वहीं वे कुछ तीखे सवाल भी पूछ रही हैं। कईयों को लगता है कि यह सिर्फ वोटरों को लुभाने का तरीका है, तो कई इसे नीतीश की साइकिल योजना का तोड़ बता रही हैं। नीतीश कुमार की साइकिल योजना नौवीं कक्षा से ऊपर की लड़कियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं रही। घर और स्कूल के बीच की तीन किलोमीटर की दूरी पहले पैदल तय करनी पड़ती थी, लेकिन फिर साइकिल ने पढ़ाई की राह आसान कर दी। पर क्या यह स्कूटी पर फर्राटे भर पाएगी... जवाब दूर है।
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