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This Article is From Oct 22, 2015

चनपटिया : कभी न पूरे होने वाले चुनावी वादे, झोपड़ियों में पल रहा अपने घर का सपना

चनपटिया : कभी न पूरे होने वाले चुनावी वादे, झोपड़ियों में पल रहा अपने घर का सपना
चनपटिया क्षेत्र के मठिया गांव में अधिकतर परिवार झोपड़ियों में रहते हैं।
नई दिल्ली: बेतिया से लगे चनपटिया विधानसभा क्षेत्र में मठिया गांव के मतदाताओं ने इस बार चुनाव से पहले एक अनूठा फैसला किया है- घर दो, वोट लो। दरअसल मठिया गांव के अधिकतर परिवारों के पास पक्का घर नहीं है। हर बार चुनाव से पहले नेता जब इस गांव में वोट मांगने आते हैं तो वे पक्का घर बनवाने का वादा करते हैं और फिर चुनाव के बाद भूल जाते हैं। इसलिए इस बार गांव वालों ने तय किया है कि इस बार वे अपना वोट उसी को देंगे जो पक्का घर बनाने का वादा करेगा।

तिरपाल की जगह पक्के छत की दरकार
भूइल राउत महतो दशकों से चनपटिया विधानसभा क्षेत्र के मठिया गांव में रह रहे हैं। पूरी जिंदगी दिहाड़ी मजदूरी में दूसरों के घर बनाते रहे लेकिन अपने लिए पक्के घर का सपना पूरा नहीं हो पाया। घांस-फूस से बने उनके घर की छत पर तिरपाल बिछा है ताकि बारिश होने पर पानी अंदर न आए। वह कहते हैं कि रहने के लिए अपना पक्का घर नहीं है और इस वजह से परिवार को सही तरीके से सुरक्षा नहीं दे पाते हैं।

पक्का घर दो-वोट लो
भूइल राउत महतो की पत्नी रमया देवी नाराज़ हैं कि पिछले कई बरसों से नेता उन्हें विश्वास दिलाते रहे, लेकिन चुनावों के बाद उन्हें भूल गए। यही कारण है कि इस बार वे तय कर चुकी हैं कि जो पक्का कमरा बनाकर देगा वोट उसी को देंगी।
परमशीला देवी की झोपड़ी जिसे गिरने से बचाने के लिए बांस का सहारा दिया गया है।

ढहते आशियाने को बचाने की जद्दोजहद
इस गांव में 85 फीसदी लोगों के पास पक्का घर नहीं है। हर साल बरसात के मौसम में अक्सर घरों की नींवें कमजोर हो जाती हैं और घर धंस जाते हैं। परमशीला देवी ने काफी मशक्कत करके अपनी झोपड़ी बनाई थी, लेकिन दो माह पहले भारी बारिश में उनका घर एक तरफ झुक गया। अब किसी तरह बांस लगाकर घर को गिरने से बचाने की जद्दोजहद कर रही हैं। कहती हैं पक्का घर नहीं होने से जिन्दगी सुरक्षित नहीं लगती है। इस बार उनके गांव में पक्का घर सबसे अहम चुनावी मुद्दा होगा।

सरकारी योजनाओं का गांव से नहीं नाता
लगभग पूरे मठिया गांव में सैंकड़ों गरीब परिवार तंग झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं। इंदिरा आवास जैसी सरकारी योजनाएं इस गांव तक नहीं पहुंच पाई हैं। इस इलाके में 1 नवंबर को चुनाव होने वाले हैं। क्या इस बार इनका यह मामूली सा सपना पूरा हो पाएगा?

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