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This Article is From Sep 14, 2015

बिहार चुनाव में ओवैसी के कूदने से RJD, JDU और BJP के चुनावी गणित पर होगा यह असर

बिहार चुनाव में ओवैसी के कूदने से RJD, JDU और BJP के चुनावी गणित पर होगा यह असर
बिहार चुनाव में ओवैसी के कूदने से मुस्लिम वोट बैंक में लग सकती है सेंध
बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है, और सारे देश की नजरें फिलहाल इन्हीं चुनावों पर हैं। इस चुनावी समर में इस बार हैदराबाद से लोकसभा की सीट पर लगातार अपना दबदबा बनाए हुए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (AIMIM) भी उतर रही है। इस बीच, सोमवार को बिहार में सीटों के बंटवारे का ऐलान करते हुए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि 243 में से 160 सीटों पर बीजेपी, 40 पर रामविलास पासवान की एलजेपी और 23 सीटों पर उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी लड़ेगी। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा (सेक्युलर) या 'हम' 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में बिहार चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी का खास महत्व हो गया है। आइए समझें, बिहार चुनाव पर ओवैसी का क्या हो सकता है असर...

ओवैसी पर क्या कहती हैं आरजेडी, जेडीयू, बीजेपी
आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव असदुद्दीन ओवैसी के चुनावी जंग में उतरने के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि उनके (ओवैसी के) लड़ने या नहीं लड़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता। बिहार के मुसलमान भाईचारे में विश्वास रखते हैं और कट्टरवादियों के लिए बिहार में कोई स्थान नहीं। बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन का कहना है कि बीजेपी सीमांचल के जिलों में ओवैसी को कड़ी चुनौती देगी। जेडीयू प्रवक्ता अजय आलोक ने परोक्ष रूप से ओवैसी को बीजेपी का एजेंट कह डाला। उन्होंने कहा कि अब बीजेपी का असली चेहरा सामने आ गया है, क्योंकि वह ओवैसी को हथियार बनाकर चुनाव लड़ना चाहती है।

क्यों है सबको चिंता...?
असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार के जिस सीमांचल क्षेत्र को अपनी चुनावी रणभूमि बनाने का फैसला किया है, उसके चार जिलों किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार में लगभग 40 फीसदी या ज़्यादा मुस्लिम हैं। किशनगंज में 68 फीसदी, कटिहार में 43, अररिया में 41 और पूर्णिया में 37 फीसदी मुस्लिम वोटर किसी भी पार्टी की जीत-हार का फैसला कर सकते हैं। अब ओवैसी के आने से मुस्लिम वोट बैंक के बंट जाने का खतरा तो बनता ही है। माना यह भी जा रहा है कि इलाके में ओवैसी के कूदने से वोट बैंक टूटेगा और इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है।

1927 में हुई थी पार्टी की स्थापना...
आज़ादी से पहले सन 1927 में मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (MIM) की स्थापना हैदराबाद के मुसलमानों ने समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखकर की थी। वर्ष 1944 में तत्कालीन पार्टी प्रमुख नवाब बहादुर यार जंग की रहस्यमय हालात में मौत हो गई। देश का विभाजन और हैदराबाद में पुलिस कार्रवाई के चलते सन 1948 तक पार्टी को भारी उथल-पुथल के हालात से गुज़रना पड़ा। पार्टी ने 1948 में भारत में विलय का विरोध कर रहे एक संगठन का समर्थन किया था, जिसके चलते MIM पर बैन लगा दिया गया। तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के चलते अगले साल 1949 में सभा को भंग कर दिया गया। करीब एक दशक बाद 1958 में अब्दुल वाहिद ओवैसी (असदुद्दीन ओवैसी के दादा) ने मजलिस का नए तरीके से गठन करके इसी पार्टी को एक नया नाम AIMIM दे दिया।
 
फोटो साभार: https://www.facebook.com/ALHAJASADUDDINOWAISI

1959 में पार्टी ने पहली बार लड़ा चुनाव...
नवगठन के बाद के साल, 1959, में पार्टी ने पहली बार चुनाव लड़ा। हैदराबाद में दो म्युनिसिपिल उपचुनावों में पार्टी ने जीत दर्ज की। 1975 में अब्दुल वाहिद की मौत के बाद उनके बेटे सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी (असदुद्दीन के पिता) पार्टी अध्यक्ष बन गए। 1984 के आम चुनाव में सलाहुद्दीन ने हैदराबाद की लोकसभा सीट जीत ली। सांसद के तौर पर लगातार छह कार्यकाल पूरे करने के बाद साल 2004 में अपने बड़े बेटे असदुद्दीन के लिए उन्होंने यह सीट छोड़ दी। उसी साल हुए चुनाव में असदुद्दीन ने पार्टी की परंपरा कायम रखते हुए सीट जीती और उसके बाद 2009 और 2014 के चुनाव में भी इस सीट से असदुद्दीन ओवैसी ही जीते।

विवादों की पार्टी...
अतीत में पार्टी सदस्य तसलीमा नसरीन और सलमान रुश्दी के खिलाफ फतवा जारी कर चुके हैं। जनवरी, 2013 में असदुद्दीन के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी को अपने भाषणों के जरिये सांप्रदायिक तनाव फैलाने और राष्ट्र के खिलाफ युद्ध के लिए उकसाने के आरोप में न्यायिक हिरासत में लिया गया था। मार्च, 2013 में पार्टी ने कर्नाटक के स्थानीय निकाय चुनाव में भी छह सीटों पर जीत दर्ज की। मई, 2014 में पार्टी ने तेलंगाना ही नहीं, सीमांध्र के निकाय चुनाव में भी 101 वार्ड और डिवीजन जीते थे। जून, 2014 में सात सीटें जीतने के बाद चुनाव आयोग ने तेलंगाना में AIMIM को स्टेट पार्टी का दर्जा दे दिया। अक्टूबर, 2014 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पार्टी ने दो सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद अप्रैल, 2015 में हुए औरंगाबाद के म्युनिसिपल इलेक्शन में AIMIM दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई।

बिहार के बाद यूपी की तैयारी...
असदुद्दीन औवेसी का असर हैदराबाद से आगे निकलकर तेलंगाना और अब वहां से बाहर भी साफ देखा जा सकता है। इंग्लैंड से वकालत की डिग्री हासिल करने वाले ओवैसी की पार्टी पिछले साल नवंबर में पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव लड़ी और दो सीटें हासिल कर सभी को हैरान कर दिया। इसके बाद उनकी पार्टी की महत्वाकांक्षा बढ़ी, और इसी का नतीजा है कि अब उन्होंने बिहार के सीमांचल इलाके से विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जहां विधानसभा की 24 सीटें हैं। इससे पहले ओवैसी 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेने की घोषणा भी कर चुके हैं।

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