बिहार के दबंग नेता मुन्ना शुक्ला (फाइल फोटो)
पटना:
बिहार में तीसरे चरण का मतदान 28 अक्टूबर को होना है जिसमें 50 सीटों के उम्मीदवारों का भविष्य तय होना है लेकिन दिलचस्प बात है कि सबसे ज्यादा बाहुबली या फ़िर उनके रिश्तेदार इस चरण में खड़े हुए हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि ये लड़ाई बुलेट से बैलेट तक की है।
'ये लड़ाई बीजेपी और लालगंज की है, ये लड़ाई लालगंज ओर मोदी की है, लालगंज में हर कोई मुन्ना शुक्ला है।' लालगंज के छोटे से गांव में ये दबंग आवाज़ गुंज रही है। ये आवाज बाहुबली मुन्ना शुक्ला की है जिन्हें डॉन का खिताब अपने बड़े भाई छोटन शुक्ला से विरासत में मिला। मुन्ना लालगंज से जेडीयू के उम्मीदवार हैं।
इनकी दबंगई की कहानिया यहां आम हैं। कोई बताता है कि मुन्ना जेल में डांस देखते थे, कोई कहता है कि नीतीश ने इस बार उन से डर कर उन्हें टिकट दिया है क्योंकि डर था कि कहीं लालगंज से मुन्ना निर्दलीय उम्मीदवार ना खड़े हो जाएं। मुन्ना शुक्ला ने एनडीटीवी इंडिया से कहा, 'मैं कभी किसी से टिकट मांगने नहीं गया, सब खुद दे देते हैं।'
किसी जमाने में बूथ पर कब्ज़ा और वोटरों को डराने धमकाने की घटनाएं आम थीं पर वक्त बदला तो बाहुबली भी हाथ जोड़े घर-घर घूमने लगे। अब ये भी लोगों से आशीर्वाद लेते हैं और उनका दुख दर्द सुनते हैं। ज्यादातर मामलों में आपराधिक इतिहास वाले बाहुबली खुद को कानून से बचाए रखने के लिए राजनीति में आते हैं। ऐसे ही सूरजभान की पत्नी एलजेपी सांसद हैं और इस बार उन्होंने अपने छोटे भाई कन्हैया को मोकामा से उतारा है। इन इलाकों में काम नहीं उनका नाम बोलता है।
सूरजभान ने बताया, 'अब कोई किसी से नहीं डरता है, सब हमको प्रेम करते हैं इसलिये वोट देते हैं। आप किसी से भी पूछ लीजिये आपको सब यही कहेगे।' बिहार में ऐसे बाहुबलियों की कमी नहीं जिन्हें हर पार्टी खुश रखना चाहती है। पप्पू यादव 1991 से 2014 तक पांच बार सांसद बने, कभी आरजेडी तो कभी एलजेपी या कभी निर्दलीय, वे किसी पार्टी विशेष के मोहताज नहीं है। चुनाव आयोग में 20 ऐसे बाहुबलियों की पहचान कर उनके इलाके में खास बंदोबस्त किए हैं। वैसे मैदान में सिर्फ बाहुबली ही नहीं, उनकी पत्नियां भी हैं।
'ये लड़ाई बीजेपी और लालगंज की है, ये लड़ाई लालगंज ओर मोदी की है, लालगंज में हर कोई मुन्ना शुक्ला है।' लालगंज के छोटे से गांव में ये दबंग आवाज़ गुंज रही है। ये आवाज बाहुबली मुन्ना शुक्ला की है जिन्हें डॉन का खिताब अपने बड़े भाई छोटन शुक्ला से विरासत में मिला। मुन्ना लालगंज से जेडीयू के उम्मीदवार हैं।
इनकी दबंगई की कहानिया यहां आम हैं। कोई बताता है कि मुन्ना जेल में डांस देखते थे, कोई कहता है कि नीतीश ने इस बार उन से डर कर उन्हें टिकट दिया है क्योंकि डर था कि कहीं लालगंज से मुन्ना निर्दलीय उम्मीदवार ना खड़े हो जाएं। मुन्ना शुक्ला ने एनडीटीवी इंडिया से कहा, 'मैं कभी किसी से टिकट मांगने नहीं गया, सब खुद दे देते हैं।'
किसी जमाने में बूथ पर कब्ज़ा और वोटरों को डराने धमकाने की घटनाएं आम थीं पर वक्त बदला तो बाहुबली भी हाथ जोड़े घर-घर घूमने लगे। अब ये भी लोगों से आशीर्वाद लेते हैं और उनका दुख दर्द सुनते हैं। ज्यादातर मामलों में आपराधिक इतिहास वाले बाहुबली खुद को कानून से बचाए रखने के लिए राजनीति में आते हैं। ऐसे ही सूरजभान की पत्नी एलजेपी सांसद हैं और इस बार उन्होंने अपने छोटे भाई कन्हैया को मोकामा से उतारा है। इन इलाकों में काम नहीं उनका नाम बोलता है।
सूरजभान ने बताया, 'अब कोई किसी से नहीं डरता है, सब हमको प्रेम करते हैं इसलिये वोट देते हैं। आप किसी से भी पूछ लीजिये आपको सब यही कहेगे।' बिहार में ऐसे बाहुबलियों की कमी नहीं जिन्हें हर पार्टी खुश रखना चाहती है। पप्पू यादव 1991 से 2014 तक पांच बार सांसद बने, कभी आरजेडी तो कभी एलजेपी या कभी निर्दलीय, वे किसी पार्टी विशेष के मोहताज नहीं है। चुनाव आयोग में 20 ऐसे बाहुबलियों की पहचान कर उनके इलाके में खास बंदोबस्त किए हैं। वैसे मैदान में सिर्फ बाहुबली ही नहीं, उनकी पत्नियां भी हैं।
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