प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ. पूरा देश जश्न के माहौल डूबा और देश ने तरक्की के नए नए पायदान चढ़ना आरंभ कर दिया. तमाम क्षेत्रों में देश ने 1947 से लेकर अब नए नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं. अगर सवारियों की बात की जाए तब आजादी के समय भारतीय समाज में धीमें धीमें साइकिल का चलन आया. गांव देहात में कुछ एक लोगों के पास ही साइकिल हुआ करती थी. साथी, पड़ोसी साइकिल मांग कर अपनी जरूरतों को पूरा किया करते थे.
गांवों और शहरों में तमाम लोग अपनी साइकिलों को इस प्रकार सजाते संवारते थे मानो वह उनके घर का ही हिस्सा हो. दिन में कई बार उसे साफ करना, चमकाना और समय समय पर उसे बनवाना. 50 के दशक तक देश में सामान्य नागरिक की कुछ ऐसी ही स्थिति रही. फिर कुछ जमाना बदला और देश में स्कूटर का चलन बढ़ना शुरू हुआ. स्कूटर का नाम आते ही बजाज या कहें हमारा बजाज न याद आए, ऐसा हो नहीं सकता. बजाज का लैब्रेटा स्कूटर. धीरे धीरे इस स्कूटर ने फैक्ट्री से बाजार और बाजार से मिडिल क्लास फैमिली के घर में अपनी जगह बनाई. यह स्कूटर भी कमाल का था. कई फिल्मों में इसे जगह मिली. इस पर उस समय की फिल्मों में गाने भी फिल्माए गए. और सबसे खास बात कि पूरा फैमिली स्कूटर था. इतना लंबा और ताकतवर की पूरी फैमिली इसकी सवारी कर लेती थी. 60 और सत्तर के दशक में इस स्कूटर की रफ्तार ने खूब जोर पकड़ा.
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इस दौरान देश में फीएट और एंबेसेडर कार का भी जमाना आ गया था. मिडिल क्लास से कुछ ऊपर उठ चुके लोग और जो नए नए रईस बने थे, ऐसे लोगों ने अपने रहन स हन में बदलाव किया. यह वे रईस नहीं थे जिनकी तिजोरी तो भरी रहती थी लेकिन वह बहुत ही साधारण जीवन जीते थे. यह उस पीढ़ी के लोग नहीं थो जो अपने पैसे को भविष्य के लिए संजोए रहते थे. इन लोगों ने देश में कार के चलन को बढ़ाया. देश में एंपाला कार का भी चलन इस दौर में बढ़ा. कॉन्टेसा कार भी पैसे वालों की निशानी बन गई थी. फिर दौर मारुति का आया. इस कार ने जैसे ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को रुख ही बदल दिया. यह कार मिडिल क्लास को ध्यान में रखकर बनाई गई. मारुति ने कार की दुनिया में क्रांति ला दी. मिडिल क्लास ने कार का इस्तेमाल करना शुरू किया और कार के बाजार में तेजी आई.
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उधर, 70-80 के दशक में स्कूटर के बाजार में भी तेजी आने लगी थी. कई तरह के मॉडल बाजार में आए. तभी भारतीय बाजार में बाइक्स की भी एंट्री हुई. हीरो, यामाहा, राजदूत जैसी बाइक्स ने अपनी अपनी जगह बनाई और जिसकी जैसी हैसियत और पसंद थी उसने वह बाइक खरीदी. यह अलग बात है कि गांव वालों को राजदूत से कुछ खास लगाव था. गांवों में राजदूत को एक मजबूत बाइक के रूप में देखा जाता था. 80 के दशक के अंत तक पेट्रोल की कीमतों का कुछ कुछ असर दिखने लगा था. 90 के दशक में बाइक में माइलेज का फैक्टर भी अहम होता गया. पेट्रोल की कीमत और माइलेज ने बाइक की बिक्री के पैमाने को बदल दिया. बाजार में कई कंपनियों की अलग अलग बाईक आने लगी थी. लिबरालाइजेशन के बाद 21वीं सदी की शुरुआत में फिर इस बाजार में फिर कुछ बदलाव आया. लोग माइलेज के साथ बाइक के पावर पर भी ध्यान देने लगे. स्पीड भी एक पैमाना होने लगा. सर्विस नाम का खास फीचर बाइक की खरीदारी में जुड़ गया.
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2010 तक आते आते देश में विमानन क्षेत्र में बदलाव देखे जाने लगे. यह अलग बात है कि 1993 से देश में निजी एयरलाइंस की शुरुआत हो चुकी थी. जेट एयरवेज ने अपनी सेवाएं कुछ शहरों में शुरू की थी. मगर यह सेवाएं सीमित थी. 2005 के बाद से इस क्षेत्र में कई कंपनियों ने एंट्री की और फिर शुरू हुआ प्राइस वार. निजी कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा ने लोगों का फायदा किया है और हवाई जहाज के टिकट इतने कम हो गए हैं कि आम आदमी अब हवाई यात्रा कर लेता है. वहीं, दो दशक पहले यह केवल पैसे वालों के बस की बात ही कही जाती थी.
क्लिक करें: आजादी@70 पर हमारी खास पेशकश.
गांवों और शहरों में तमाम लोग अपनी साइकिलों को इस प्रकार सजाते संवारते थे मानो वह उनके घर का ही हिस्सा हो. दिन में कई बार उसे साफ करना, चमकाना और समय समय पर उसे बनवाना. 50 के दशक तक देश में सामान्य नागरिक की कुछ ऐसी ही स्थिति रही. फिर कुछ जमाना बदला और देश में स्कूटर का चलन बढ़ना शुरू हुआ. स्कूटर का नाम आते ही बजाज या कहें हमारा बजाज न याद आए, ऐसा हो नहीं सकता. बजाज का लैब्रेटा स्कूटर. धीरे धीरे इस स्कूटर ने फैक्ट्री से बाजार और बाजार से मिडिल क्लास फैमिली के घर में अपनी जगह बनाई. यह स्कूटर भी कमाल का था. कई फिल्मों में इसे जगह मिली. इस पर उस समय की फिल्मों में गाने भी फिल्माए गए. और सबसे खास बात कि पूरा फैमिली स्कूटर था. इतना लंबा और ताकतवर की पूरी फैमिली इसकी सवारी कर लेती थी. 60 और सत्तर के दशक में इस स्कूटर की रफ्तार ने खूब जोर पकड़ा.
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इस दौरान देश में फीएट और एंबेसेडर कार का भी जमाना आ गया था. मिडिल क्लास से कुछ ऊपर उठ चुके लोग और जो नए नए रईस बने थे, ऐसे लोगों ने अपने रहन स हन में बदलाव किया. यह वे रईस नहीं थे जिनकी तिजोरी तो भरी रहती थी लेकिन वह बहुत ही साधारण जीवन जीते थे. यह उस पीढ़ी के लोग नहीं थो जो अपने पैसे को भविष्य के लिए संजोए रहते थे. इन लोगों ने देश में कार के चलन को बढ़ाया. देश में एंपाला कार का भी चलन इस दौर में बढ़ा. कॉन्टेसा कार भी पैसे वालों की निशानी बन गई थी. फिर दौर मारुति का आया. इस कार ने जैसे ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को रुख ही बदल दिया. यह कार मिडिल क्लास को ध्यान में रखकर बनाई गई. मारुति ने कार की दुनिया में क्रांति ला दी. मिडिल क्लास ने कार का इस्तेमाल करना शुरू किया और कार के बाजार में तेजी आई.
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उधर, 70-80 के दशक में स्कूटर के बाजार में भी तेजी आने लगी थी. कई तरह के मॉडल बाजार में आए. तभी भारतीय बाजार में बाइक्स की भी एंट्री हुई. हीरो, यामाहा, राजदूत जैसी बाइक्स ने अपनी अपनी जगह बनाई और जिसकी जैसी हैसियत और पसंद थी उसने वह बाइक खरीदी. यह अलग बात है कि गांव वालों को राजदूत से कुछ खास लगाव था. गांवों में राजदूत को एक मजबूत बाइक के रूप में देखा जाता था. 80 के दशक के अंत तक पेट्रोल की कीमतों का कुछ कुछ असर दिखने लगा था. 90 के दशक में बाइक में माइलेज का फैक्टर भी अहम होता गया. पेट्रोल की कीमत और माइलेज ने बाइक की बिक्री के पैमाने को बदल दिया. बाजार में कई कंपनियों की अलग अलग बाईक आने लगी थी. लिबरालाइजेशन के बाद 21वीं सदी की शुरुआत में फिर इस बाजार में फिर कुछ बदलाव आया. लोग माइलेज के साथ बाइक के पावर पर भी ध्यान देने लगे. स्पीड भी एक पैमाना होने लगा. सर्विस नाम का खास फीचर बाइक की खरीदारी में जुड़ गया.
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