
जोधपुर के महाराज हनवंत सिंह की फाइल फोटो.
नई दिल्ली:
यह कहानी एक ऐसे राजा की है, जिसने मुख्यमंत्री को ही हराने की ठान ली और कमर कसकर उतर गए मैदान में. जनता में अपार लोकप्रियता के दम पर तत्कालीन मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता जयनारायण व्यास (Jay Narayan Vyas) को हरा भी दिया. मगर, अफसोस...अपनी जीत की खबर मिलने से पहले ही वह जिंदगी से कूच कर गए. जीत से पहले हवाई हादसे में उनकी मौत की खबर जनता तक पहुंची. यह कहानी किसी और की नहीं राजस्थान के जोधपुर के राजा हनवंत सिंह (Hanwant Singh) की है. राजस्थान में जब भी विधानसभा चुनाव होते हैं, राजा हनवंत सिंह की चर्चा खुद-ब-खुद लोगों की जुबान पर आ जाती है. इस बार यहां से बीजेपी के टिकट पर अतुल भंसाली तो कांग्रेस ने मनीष पंवार को चुनाव मैदान में उतारा है. खास बात है कि एक नृत्यांगना जुबैदा के साथ महाराजा हनवंत की प्रेम कहानी सिनेमा के पर्दे पर भी उतर चुकी है. वर्ष 2001 में श्याम बेनगल ने इस पर फिल्म बनाई थी. जिसमें करिश्मा कपूर और मनोज बाजपेयी ने भूमिका निभाई थी.हम आपको बता रहे हैं राजा हनवंत सिंह की कहानी.
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मुख्यमंत्री को ही हरा दिया
बात 1952 की है, जब केंद्र और राज्य सरकार के चुनाव होने वाले थे. उससे पहले अचानक जोधपुर के राजा हनवंत के दिमाग में राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने का ख्याल आया. फिर उन्होंने अखिल भारतीय रामराज्य परिषद नामक पार्टी बनाई. नई पार्टी बनाने के बाद राजा हनवंत लोकसभा और विधानसभा चुनाव की कैंपेनिंग में जुट गए. जबर्दस्त ढंग से प्रचार अभियान चलने लगा. तत्कालीन सत्ताधारी कांग्रेस की नींद ही हराम हो गई. उन्हें कांग्रेस के कई बड़े नेता राजपाठ छोड़कर राजनीति के मैदान में न जाने की सलाह देने लगे...चेतावनियां भी मिलने लगीं, मगर राजा ने इरादा नहीं छोड़ा. एक बार ठान लिया तो ठान लिया. राजा हनवंत सिंह ने खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे जयनारायण व्यास की सीट से ही ताल ठोक दिया. मुकाबला दिलचस्प हो गया. जयनारायण व्यास 26 अप्रेल 1951 से राज्य की गद्दी संभाल रहे थे. वह इस पद पर 3 मार्च 1952 तक रहे.उनके नाम से राजस्थान में 'जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय' आज भी चल रहा है.
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हवा में उड़े, मगर लौट न आ सके
मतदान चल रहा था. मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास के खिलाफ राजा हनवंत को अप्रत्याशित बढ़त मिलने लगी. जीत तय दिख रही थी. इस खुशी में राजा हनवंत अपनी तीसरी पत्नी जुबैदा के साथ छह सीट वाले प्लेन में हवाई सैर के लिए निकल पड़े. उधर नतीजे अंतिम रूप ले रहे थे. राजा हनुवंत के जिंदाबाद के नारे लग रहे थे. मगर इस बीच खौफनाक घटना हुई...अचानक प्लेन क्रैश हो गया...जिसमें बीवी जुबैदा के साथ राजा हनवंत असमय काल के गाल में समा गए. उधर मौत के बाद राजा हनवंत के जीत की खबर आई..लोग आवाक थे...कि काश, यह खबर राजा अपने जीते जी सुन पाते...रिपोर्ट्स के मुताबिक 2011 में उस सिक्स सीटर विमान के मलबे जोधपुर सेंट्रल जेल के पास बरामद हुए, जिसमें जोधपुर के राजा हनवंत की उड़ान के दौरान मौत हुई थी.
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रानी ने संभाली राजनीतिक विरासत
जब राजा की प्लेन हादसे में मौत हो गई तो उनकी पहली पत्नी महारानी कृष्णा कुमारी ने विरासत संभाली. इंदिरा गांधी सरकार की ओर से रियासतों के विशेषाधिकार के खात्मे के बाद देश भर के राजे-रजवाड़ों से विरोध की आवाज उठी थी. मुखर होकर विरोध करने वालों में महारानी कृष्णा कुमारी भी थीं. उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ जोधपुर से चुनाव लड़ा और जीत भी गईं. फिर 1977 में भी जीत नसीब हुई.
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राजा हनवंत (Hanwant Singh) के बारे में और जानिए
राजा हनवंत सिंह राठौर का जन्म 16 जून 1923 को हुआ और 26 जनवरी 1952 को मौत हुई. वह जोधपुर के 1947 से राजा रहे. वह पोलो के अच्छे खिलाड़ी भी थे. 1943 में उन्होंने महारानी कृष्ण कुमारी से शादी की, जिनसे बेटे गज सिंह राठौर हुए और दो बेटियां पैदा हुईं. 1948 में उनकी मुलाकात 19 साल की स्कॉटिश नर्स सैंड्रा मकब्रिड से हुई.फिर तलाक हो गया. इसके बाद मुस्लिम अभिनेत्री और नर्तकी जुबैदा से उन्होंने शादी को तो जुबैना ने हिंदू धर्म अपनाकर विद्या रानी राठौर बन गईं. जुबैदा से उन्हें हुकुम सिंह राठौर नामक बेटा हुआ. मगर मुस्लिम महिला से शादी करने के कारण शाही परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें उम्मेद भवन छोड़कर मेहरानगढ़ में रहना पड़ा.
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मुख्यमंत्री को ही हरा दिया
बात 1952 की है, जब केंद्र और राज्य सरकार के चुनाव होने वाले थे. उससे पहले अचानक जोधपुर के राजा हनवंत के दिमाग में राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने का ख्याल आया. फिर उन्होंने अखिल भारतीय रामराज्य परिषद नामक पार्टी बनाई. नई पार्टी बनाने के बाद राजा हनवंत लोकसभा और विधानसभा चुनाव की कैंपेनिंग में जुट गए. जबर्दस्त ढंग से प्रचार अभियान चलने लगा. तत्कालीन सत्ताधारी कांग्रेस की नींद ही हराम हो गई. उन्हें कांग्रेस के कई बड़े नेता राजपाठ छोड़कर राजनीति के मैदान में न जाने की सलाह देने लगे...चेतावनियां भी मिलने लगीं, मगर राजा ने इरादा नहीं छोड़ा. एक बार ठान लिया तो ठान लिया. राजा हनवंत सिंह ने खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे जयनारायण व्यास की सीट से ही ताल ठोक दिया. मुकाबला दिलचस्प हो गया. जयनारायण व्यास 26 अप्रेल 1951 से राज्य की गद्दी संभाल रहे थे. वह इस पद पर 3 मार्च 1952 तक रहे.उनके नाम से राजस्थान में 'जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय' आज भी चल रहा है.
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हवा में उड़े, मगर लौट न आ सके
मतदान चल रहा था. मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास के खिलाफ राजा हनवंत को अप्रत्याशित बढ़त मिलने लगी. जीत तय दिख रही थी. इस खुशी में राजा हनवंत अपनी तीसरी पत्नी जुबैदा के साथ छह सीट वाले प्लेन में हवाई सैर के लिए निकल पड़े. उधर नतीजे अंतिम रूप ले रहे थे. राजा हनुवंत के जिंदाबाद के नारे लग रहे थे. मगर इस बीच खौफनाक घटना हुई...अचानक प्लेन क्रैश हो गया...जिसमें बीवी जुबैदा के साथ राजा हनवंत असमय काल के गाल में समा गए. उधर मौत के बाद राजा हनवंत के जीत की खबर आई..लोग आवाक थे...कि काश, यह खबर राजा अपने जीते जी सुन पाते...रिपोर्ट्स के मुताबिक 2011 में उस सिक्स सीटर विमान के मलबे जोधपुर सेंट्रल जेल के पास बरामद हुए, जिसमें जोधपुर के राजा हनवंत की उड़ान के दौरान मौत हुई थी.
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रानी ने संभाली राजनीतिक विरासत
जब राजा की प्लेन हादसे में मौत हो गई तो उनकी पहली पत्नी महारानी कृष्णा कुमारी ने विरासत संभाली. इंदिरा गांधी सरकार की ओर से रियासतों के विशेषाधिकार के खात्मे के बाद देश भर के राजे-रजवाड़ों से विरोध की आवाज उठी थी. मुखर होकर विरोध करने वालों में महारानी कृष्णा कुमारी भी थीं. उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ जोधपुर से चुनाव लड़ा और जीत भी गईं. फिर 1977 में भी जीत नसीब हुई.
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राजा हनवंत (Hanwant Singh) के बारे में और जानिए
राजा हनवंत सिंह राठौर का जन्म 16 जून 1923 को हुआ और 26 जनवरी 1952 को मौत हुई. वह जोधपुर के 1947 से राजा रहे. वह पोलो के अच्छे खिलाड़ी भी थे. 1943 में उन्होंने महारानी कृष्ण कुमारी से शादी की, जिनसे बेटे गज सिंह राठौर हुए और दो बेटियां पैदा हुईं. 1948 में उनकी मुलाकात 19 साल की स्कॉटिश नर्स सैंड्रा मकब्रिड से हुई.फिर तलाक हो गया. इसके बाद मुस्लिम अभिनेत्री और नर्तकी जुबैदा से उन्होंने शादी को तो जुबैना ने हिंदू धर्म अपनाकर विद्या रानी राठौर बन गईं. जुबैदा से उन्हें हुकुम सिंह राठौर नामक बेटा हुआ. मगर मुस्लिम महिला से शादी करने के कारण शाही परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें उम्मेद भवन छोड़कर मेहरानगढ़ में रहना पड़ा.
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