पिछड़ी जातियों में भी एक स्पष्ट वर्गीकरण है. प्रजापति, सैनी, बिंद, मौर्य और अन्य अति पिछड़े वर्गों समेत निषाद को भी 1980 और 90 के मंडल कमीशन के फायदों से मुख्यत: बाहर रखा गया. इन्हें मुख्यत: आर्थिक रूप से मजबूत पिछड़ी जातियों जैसे यादव, कुर्मी, कोयरी और लोध ने किनारे कर दिया.
पड़ोस के बिहार में एमबीसी को यादवों के विरोध के बावजूद राज्य की नौकरशाही और पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण का लाभ मिलता है, और ऐसा मुख्यत: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दखल की वजह से होता है, जो खुद कुर्मी जाति से आते हैं. यूपी में आरक्षण या सरकारी नीतियों का सबसे ज्यादा लाभ जाटवों और यादवों को मिला है. ये वो जातियां हैं जो मायावती या समाजवादी पार्टी को समर्थन देती हैं जिन्होंने पिछले करीब 15 वर्षों से बारी-बारी से राज्य पर शासन किया है.
कुम्हार जाति के 30 वर्षीय राजमिस्त्री विनय कुमार कहते हैं, 'अगर आप मिर्जापुर के लेबर चौक का चक्कर लगाएंगे तो आप पाएंगे कि अधिकांश मजदूर अति पिछड़ा वर्ग से ही आते हैं. किसी ने हमारे लिए कुछ नहीं किया. अब बीजेपी कह रही है, 'अति पिछड़ा वर्ग के लिए हम ही सही पार्टी हैं.' मैंने मोदी जी के लिए वोट दिया था लेकिन मेरी मजदूरी में अब तक कोई बढ़ोतरी नहीं हुई.'
2014 के आम चुनाव से पहले राज्य में ऊंची जातियों के बीच अपना आधार मजबूत करने की कोशिश में जुटी बीजेपी को अति पिछड़े वर्गों द्वारा महसूस की जा रही उपेक्षा का एहसास हुआ. उसके बाद पार्टी ने जाति आधारित कई छोटी पार्टियों से गठबंधन किया. इनमें ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जिसकी राजभर जाति पर पकड़ है और अपना दल जो कि कुर्मी जाति की पार्टी है जिसकी राज्य में करीब 3.5 फीसदी आबादी है और जिसकी प्रमुख अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री हैं.
लेकिन बीजेपी का ट्रंप कार्ड पीएम मोदी खुद थे. ओबीसी नेता के रूप में नरेंद्र मोदी (जो तेली जति से आते हैं) को पेश करके और विकास के मजबूत एजेंडे के साथ बीजेपी बिखरे हुए पिछड़े वोटों को अपने पक्ष में करने में कामयाब रही - उसे अति पिछड़ों में करीब 60 फीसदी का जबरदस्त समर्थन मिला.
यह पहली बार नहीं था जब बीजेपी ने अति सशक्त वोट बैंक के रूप में अति पिछड़ा वर्ग की क्षमता को पहचाना था. 1980 के दशक के आखिर में अयोध्या में राम मंदिर के लिए आंदोलन के दौरान वह बड़ी संख्या में एकजुट हुए थे, लेकिन आंदोलन का नेतृत्व ओबीसी नेताओं कल्याण सिंह और उमा भारती को दे दिया गया जो लोध जाति के हैं. कल्याण सिंह दो बार यूपी के मुख्यमंत्री बने, पहली बार 1991 में और फिर 1997 में. धीरे-धीरे राम मंदिर निर्माण आंदोलन कमजोर पड़ गया और बीजेपी के हाथ से सत्ता चली गई और पिछड़ी जातियों पर इसकी पकड़ भी ढीली पड़ गई और वो मायावती और समाजवादी पार्टी की तरफ चले गए.
एक बार फिर बीजेपी के सामने 2014 के बाद इस वोट बैंक को बनाए रखने की चुनौती है. पार्टी ने अति पिछड़े वर्ग के नेताओं को महत्वपूर्ण पद देकर इसकी नींव रखनी शुरू की. जैसे केशव प्रसाद मौर्य जो कि कुशवाहा जाति के हैं और लोकसभा सांसद हैं, को पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया. साथ ही पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने समाजावादी पार्टी के कई ओबीसी नेताओं को बीजेपी में शामिल कराया तो साथ ही बसपा के भी कई दिग्गज पार्टी से जुड़े. इनमें यूपी में बीएसपी में पिछड़े वर्ग का चेहरा माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य भी शामिल हैं.
इस बीच में अखिलेश यादव ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करने को मंजूरी दे दी, जिससे ये जातियां केंद्र सरकार की कल्याण योजनाओं और वंचित वर्गों के लिए आरक्षित नौकरियों के लिए योग्य हो गईं. बीजेपी अखिलेश के इस कदम का मुकाबला करने के लिए अति पिछड़ों को सरकारी नौकरियों और सरकारी शिक्षा संस्थानों में 27 फीसदी आरक्षण देने का वादा कर रही है, वर्तमान में यह अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को दिया जा रहा है. पार्टी ने अति पिछड़ा वर्ग और गैर यादव पिछड़ा वर्ग से करीब 170 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं जो इसके विरोधियों की तुलना में कहीं ज्यादा हैं.
लेकिन वाराणसी में कुर्मी जाति के बीच प्रसिद्ध एक हनुमान मंदिर में छोटे किसानों का एक समूह बीजेपी को लेकर सशंकित है. वो कहते हैं, 'हमलोग मोदी को वोट देते अगर वो हमारे बैंक खातों में पैसे डलवा देते ताकि हम नोटबंदी से हुए नुकसान की भरपाई कर पाते, इसलिए नहीं कि बीजेपी ने कुर्मी नेता को पार्टी में ऊंचा पद दिया या हमारी जाति के लोगों को ज्यादा टिकट दिए. जाति महत्वपूर्ण है लेकिन कुछ महत्वपूर्ण तात्कालिक जरूरतें हैं जो उससे परे हैं.'
डॉ. निषाद के कार्यालय में एक पूरी दीवार अपने समुदाय के प्रतीकों के लिए समर्पित है जिसमें दो यूरोपीय हस्तियां भी शामिल हैं, 15वीं सदी के नाविक और खोजकर्ता क्रिस्टोफर कोलंबस और वास्को डी गामा. 'हम एक ही कबीले के हैं.' 'निषादों की तरह इन्होंने भी नई दुनिया की खोज करते हुए पानी के जरिए ही जीवनयापन किया और हमें प्रेरित किया है.'
जैसे जैसे उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव अपने अंतिम दौर में प्रवेश कर रहा है, यहां रंगों और जातीय अंकगणित की कोई कमी नहीं है.
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