बसपा के 'बाहुबली' मुख्तार ने 7464 मतों से जीत दर्ज की...
खास बातें
- मऊ सीट में बाहुबली मुख्तार अंसारी ने तगड़ी घेराबंदी को ध्वस्त किया
- सपा से बेआबरू होने के बाद अपनी प्रतिष्ठा बचाने का दबाव था
- बीजेपी ने उन्हेंघेरने की बहुत कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाई
दुबई: मऊ विधानसभा क्षेत्र में बाहुबली मुख्तार अंसारी ने भाजपा और सपा की तगड़ी घेराबंदी को ध्वस्त करते हुए विधानसभा पहुंच गए हैं. सपा से बेआबरू होने के बाद अपनी प्रतिष्ठा बचाने का उन पर भारी दबाव था. जेल में रहते हुए उन्होंने अपनी सीट को बरकारार रखा है. इस बार बीजेपी ने भी उन्हें बहुत ज्यादा घेरने की कोशिश की थी लेकिन उसके मंसूबे सफल नहीं हो पाए. खुद प्रधानमंत्री ने मऊ की जनसभा में उन्हें 'बाहुबली' कहते हुए कहा था इस 'बाहुबली' के खात्मे के लिए उन्होंने अपना 'कटप्पा' मैदान में उतारा है. पीएम मोदी ने 'कटप्पा' इसलिए कहा था क्योंकि इस सीट पर भाजपा ने राजभरों की पार्टी भारतीय समाज पार्टी के उम्मीदवार को गठबंधन के तहत उतारा था.
भासपा से महेंद्र राजभर मैदान में थे. महेंद्र 2012 के चुनाव में मुख्तार के साथ थे और उन्होंने अपनी बिरादरी के वोट दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. पर इस बार वे खुद उनके सामने थे. मोदी ने इसलिए उन्हें 'कटप्पा' की संज्ञा दी थी. बसपा के 'बाहुबली' मुख्तार ने उन्हें 7464 मतों से हराया.
मुख्तार अंसारी ने यह चुनाव जेल से लड़ा था. वे पूरे चुनाव में नहीं आ सके लिहाजा प्रचार की कमान उनके छोटे बेटे उमर अंसारी ने संभाली. पहले उमर और उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि मुख्तार को पेरोल मिल जाएगी, पर ऐसा नहीं हुआ. मुख्तार के प्रचार की कमान संभालने वालों का पहले से ही दावा था कि विपक्षी पार्टियां चाहे जितनी कोशिश कर ले और उन्हें क्षेत्र में न आने दे पर जनता उन्हें भारी वोटों से जीत दिलाएगी और ऐसा ही हुआ.
मुख्तार मऊ से पिछले दो चुनाव में अपनी पार्टी कौमी एकता दल के बैनर से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीत चुके हैं. इस बार जीत पक्की करने के लिहाज से समाजवादी पार्टी में अपनी पार्टी का विलय तक कर लिया, लेकिन यादव परिवार में मची महाभारत के बाद अलग हो गए और हाथी के साथी बन गए. मायावाती ने मुख्तार के पक्ष में न सिर्फ विशाल रैली की बल्कि पीएम मोदी के बयानों का मुंहतोड़ जवाब भी दिया था. मायावती ने मऊ की रैली में तकरीबन दो घंटे का लंबा भाषण दिया था.
दरअसल मुख्तार के लिए इस बार सहारे की जरूरत इस वजह से पड़ी क्योंकि बीजेपी इलाके में असर रखने वाली जातियों के वोट बैंक में अपनी पैठ बना रही थी. मुख्तार के मुकाबले में उसने राजभर समाज के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है, जिनकी यहां अच्छी आबादी है. सपा और कांग्रेस के गठबंधन ने मुख्तार की जीत की मुश्किल बना दिया था. इस रोड़े को ज़्यादा धार देते हुए प्रधानमंत्री ने यहां की जनसभा में ऐलान भी किया कि बाहुबली के खिलाफ हमने 'कटप्पा' को उतारा है, जो बाहुबली को खत्म कर देगा लेकिन ऐसा न हो सका.