अनोखे प्रत्याशी-निराले समर्थक : पोस्टर न सही, चुनाव प्रचार के लिए पीठ तो है...

अनोखे प्रत्याशी-निराले समर्थक : पोस्टर न सही, चुनाव प्रचार के लिए पीठ तो है...

यूपी में चुनाव प्रचार के विभिन्न रंग देखने को मिल रहे हैं.

खास बातें

  • पीठ पर गोदना गोदवाकर चुनाव प्रचार
  • प्रचार के लिए प्रत्याशियों का ढोल के साथ डांस
  • लंबी मूंछों के सहारे चुनावी नैया पार करने की जुगत
वाराणसी:

उत्तर प्रदेश का चुनाव अब अपने पूरे शबाब पर है. लोकतंत्र के इस उत्सव में चुनाव के तरह-तरह के रंग देखने को मिल रहे हैं.  अब पहले की तरह बैनर पोस्टर और बिल्ले चुनाव अचार संहिता की वजह से नहीं हैं. इन स्थितियों में लोग अपनी पीठ पर ही अपने नेता और पार्टी के चुनाव निशान जहां गोदने से गोदवा ले रहे हैं तो वहीं कई प्रत्याशी ढोल बजाकर नाचते आ रहे हैं. कोई रिक्शा चलाकर इस पर्व में शिरकत करने के लिए आ रहा है.  

प्रत्याशियों के साथ-साथ अलग-अलग पार्टियों के समर्थक भी अलग-अलग रंग में हैं. माथे पर मोरपंख की टोपी उस पर लालू यादव का चुनाव निशान लालटेन और गले में कांग्रेसी दुपट्टा डाले यह समर्थक सपा-कांग्रेस गठबंधन में लालू की उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. इससे इतर एकदम निराले अंदाज में विनोद जायसवाल की पीठ पर बने समाजवादी पार्टी के प्रचार पोस्टर को देखकर आप दंग रह जाएंगे. इस पोस्टर में अखिलेश यादव, डिम्पल यादव, मुलायम सिंह और उनकी पार्टी का चुनाव निशान है और यह सब उन्होंने हमेशा के लिए गोदने से गोदवा लिया है. दोनों  हांथ पर भी वैसे ही निशान लिए वे हर सुबह समाजवादी पार्टी का प्रचार करने निकल पड़ते हैं और अपने पीठ पोस्टर से लोगों को रूबरू कराते हैं.  विनोद  कहते हैं ''अचार संहिता का उल्लंघन नहीं करना है, अचार संहिता का अपमान नहीं करना है. पोस्टर तो कहीं लगना नहीं है और भैया ने कहा कि कोई भी ऐसा न करे. जो हमारे को बोले तो हमने अपने शरीर को ही न्यौछावर कर दिया.''  

विनोद की तरह ही एक दूसरे विनोद भी हैं पर वे समर्थक नहीं प्रत्याशी हैं जो गले में माला पहनकर और ढोलक बजाकर नाचते हुए पहुंचे. उनके साथ नाच रही महिला भी शिवपुर विधानसभा सीट से नामांकन करने आई हैं. यह दोनों प्रत्याशी 2013 में बनी नव जनक्रांति पार्टी से उम्मीदवारी जता रहे हैं.  इसमें विनोद थाप दे रहे हैं तो उनकी सहयोगी प्रत्याशी सरिता ठुमका लगा रही हैं. विनोद कहते हैं कि "ढोल बजाकर हम जनता को उजागर करना चाहते हैं. उनको ढोल से जगाकर कहेंगे कि क्या विकास चाहते हैं... बताइए. जनता को ढोल नगाड़े से जगाते रहेंगे और विकास करेंगे.

 
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वाराणसी में नामांकन करने पहुंचे विनोद ऐसे अकेले नहीं हैं.  नेता की तरह पैजामा-कुर्ता गले में माला डालकर रिक्शा चला रहे बुधु राम भी नामांकन करने आए हैं.  बुधु रिक्शा चालक हैं.  रिक्शा चालकों की समस्या कोई नहीं सुनता, लिहाजा चुनाव लड़ने का मन बनाया और अपने रिक्शा चालक साथियों को अपने रिक्शे पर बैठाकर पहुंच गए नामांकन करने. इनके साथियों में जोश दिखाई पड़ता है.

लोकतंत्र के इस पर्व में एक जोश राका का भी है जिन्हें अपनी मूंछ पर नाज है.  वे अपनी लंबी मूंछ के सहारे ही चुनाव मैदान में हैं और जितनी लंबी उनकी मूंछ है उतनी ही लंबी उनकी अपने लिए वोट मांगने की दलील है. राका कहते हैं कि ''जहां ताका वहां है राका, हर जगह है चर्चा और पिंडरा विधानसभा से हम भरत हैं पर्चा, जनता हमें देत हौ खर्चा और दलालन की आखन में मरचा ( पैच ). हमारे साथ है पूरी जनता. जमीनी सोच है और बड़ी-बड़ी मूंछ है. कोई प्रत्याशी के पास न ऐसी सोच है, न जोश, न मूंछ है. जनता बेहोश है. तब सब कहत हैं कि जहां काटा वहीं राका.''

इसे ही देखकर कहा जाता है कि लोकतंत्र में चुनाव एक उत्सव है, पर्व है और यह सारी गतिविधियां उसमें निराले रंग भरती हैं.

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