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This Article is From Sep 12, 2022

पंजाब के खेतों तक पहुंची ये 'अजीब बीमारी', 34000 हेक्टेयर से ज्यादा की धान की फसल प्रभावित

एक अधिकारी ने बताया कि इस बीमारी का सबसे ज्यादा असर मोहाली, पठानकोट, गुरदासपुर और लुधियाना में देखा गया है.

पंजाब के खेतों तक पहुंची ये 'अजीब बीमारी', 34000 हेक्टेयर से ज्यादा की धान की फसल प्रभावित
पंजाब में 34,000 हेक्टेयर में धान की फसल इस बीमारी की चपेट में
चंडीगढ़:

पंजाब में 34,000 हेक्टेयर से अधिक धान की फसल में ‘बौनेपन' का रोग देखा गया है तथा राज्य के कृषि विभाग ने इस बीमारी (ड्वार्फ डिजीज) से प्रभावित क्षेत्रों में औसतन पांच प्रतिशत फसल के नुकसान का अनुमान लगाया है. कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को कहा कि विभाग के नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार, बौना रोग का सबसे अधिक प्रभाव मोहाली (6,440 हेक्टेयर), पठानकोट (4,520 हेक्टेयर), गुरदासपुर (3,933 हेक्टेयर), लुधियाना (3,500 हेक्टेयर), पटियाला (3,500 हेक्टेयर) और होशियारपुर (2,782 हेक्टेयर) के धान के खेतों में देखा गया था.

लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने पहले राज्य के कई हिस्सों में धान के पौधों के बौनेपन के पीछे दक्षिणी चावल ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस (एसआरबीएसडीवी) का प्रकोप देखा था, जिसे बौना रोग भी कहा जाता है.

इस वायरस को पहली बार वर्ष 2001 में दक्षिणी चीन में पाये जाने की खबर मिली थी जिसके बाद अब पंजाब में पाया गया है. कृषि विशेषज्ञों ने कहा कि इस बीमारी के हमले के कारण कुछ पौधे मर गए थे और कुछ धान के खेतों में सामान्य पौधों की तुलना में आधे से एक-तिहाई ऊंचाई के साथ कम रह गए थे.

धान के पौधों की बौनेपन की रिपोर्ट के बाद, राज्य के कृषि विभाग ने पंजाब में धान के खेतों पर एसआरबीएसडीवी रोग के प्रभाव का आकलन करने के लिए एक सर्वेक्षण किया. सर्वे के मुताबिक, पंजाब में 34,347 हेक्टेयर धान के रकबे में बौना रोग पाया गया है.

अधिकारी ने सोमवार को पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘इस बीमारी का सबसे ज्यादा असर मोहाली, पठानकोट, गुरदासपुर और लुधियाना में देखा गया है.'' अधिकारी ने कहा, ‘‘प्रभावित क्षेत्रों में औसतन पांच प्रतिशत उपज घटने की आशंका है.''

पीएयू के निदेशक (अनुसंधान) जी एस मंगत ने कहा कि बौना रोग समयपूर्व रोपे गये धान पर दिखाई दे रहा था. उन्होंने आगे कहा, ‘‘बीमारी ने 20 जून तक बोई गई फसल को प्रभावित किया है.''

विशेषज्ञों के अनुसार, इस रोग का सर्वाधिक प्रभाव पीआर-121 धान की किस्म में देखा गया क्योंकि इसके 20 जून के बाद बुवाई करने को कहने के बावजूद किसानों ने इसे समय से पहले बोया था.

मंगत ने कहा कि विभिन्न कारकों में, उच्च तापमान इस रोग के बढ़ने के अनुकूल साबित हुआ है.

अन्य देशों में प्रकाशित वैज्ञानिक रिपोर्टों के अनुसार, एसआरबीएसडीवी, सफेद पीठ वाले प्लांट हॉपर (डब्ल्यूबीपीएच) के मादा एवं वयस्क वायरस से फैलता है.

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि एक बार बौनेपन का शिकार होने के बाद इस रोग को किसी भी कृषि रसायन से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है.

पंजाब में खरीफ सत्र में धान की बुवाई 30.84 लाख हेक्टेयर में की गई है.

विपक्षी दल शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने पहले ही राज्य सरकार से उन धान उत्पादकों के लिए 20,000 रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा मांगा था, जिनके खेत इस बौनेपन वाले रोग से प्रभावित हुए थे.


 

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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