बनारस के गांव में सफाई का जिम्मा महिलाओं ने लिया है
छितौनी:
बनारस की उत्साही महिलाओं के हौसले से दो गांव न सिर्फ साफ़ हो गया बल्कि वहां का कूड़ा भी अब उनकी रोजी रोटी का जरिया बन रहा है. गांव को साफ़ करने की यह पहल सरकार की एसएलआरएम योजना के तहत हुई है. वैसे तो सरकार योजनाएं बहुत लाती है लेकिन हकीकत में उन्हें अमली जामा कम ही पहनाया जा पाता है. लेकिन बनारस के गांव में उत्साही महिलाओं के जज्बे से सिर्फ उनके गांव प्रदेश का पहले पूर्ण स्वच्छ गांव बन गए हैं.
बनारस शहर से महज़ 12 किलोमीटर दूर बच्छाव ब्लॉक के छितौनी गांव में बने एसएलआरएम सेंटर में बॉक्स में रखी चूड़ियां, बोतल के ढक्कन, टूथ ब्रश, कॉस्मेटिक की डिब्बियां, कांच की बोतलें और टोकरी में सजे घरेलू सामान ऐसे रखे नजर आते हैं जैसे वो किसी दुकान में बिकने के लिये रखे हुए हैं. लेकिन दरअसल यह बनारस के छितौनी गांव के लोगों के घरों का कूड़ा है जिसे यहां बड़े करीने से रखा जाता है. यहां की महिलाएं हर सुबह गांव के बाहर बने इस सेंटर से कूड़े की ट्रॉली लेकर निकलती हैं और लोगों के घरों से कूड़े इक्कट्ठा कर यहां लाती हैं. फिर उन्हें अलग अलग करके इस तरह से रखती है जिससे इनका गांव साफ़ हो सके. कूड़ा इकठ्ठा करने वाली महिला नीतू शर्मा कहती हैं कि "हमारे घर के पास कूड़ा है कचरा है गन्दगी है, उसे साफ़ सुथरा रखेंगे तो बच्चे बिमारी से बचेंगे.'
साफ़ सफाई का विचार नीतू के मन में पहले से ही थी लेकिन उसने जोर तब पकड़ा जब इनके गांव में सॉलिड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट की योजना आई. बात गांव की सफाई की थी लिहाजा नीतू जैसी 50 महिलायें फौरन इस काम में जुट गईं. साधन और सेन्टर सरकारी योजना से मिला तो कुछ महिलाओं ने कूड़ा गाड़ी चलाने की जिम्मेदारी ली तो कुछ साथ में चल कर घरों से कूड़ा उठाने लगीं. बाकी बची महिलायें सेंटर पर आये कूड़े को अलग अलग कर उसे सफाई से रखने की जिम्मेदारी निभाने लगीं और कुछ कम्पोस्ट खाद बनाने में जुट गईं जिससे देखते देखते गांव की सूरत बदलने लगी.
शुरू में इन महिलाओं को गांव के समाजिक बंधन से दो चार होना पड़ा. शांति देवी बताती हैं 'पहले बहुत लोग बुरा मानते थे, कहते थे कि इनके हाथ का पानी नहीं पीएंगे. हम लोग कहे कोई बात नहीं रोजी रोटी का बात है और गांव को साफ़ रखना है तो करेंगे.
सॉलिड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट (एसएलआरएम) के तहत इन महिलाओं को रिक्शा ट्राली दी गई जिसमे जैविक और अजैविक कूड़े के लिये अलग अलग खाने बने थे. गांव के घरों में भी हरे और लाल डिब्बे दिये गये. इन्हें जिले के मुख्य विकास अधिकारी ने कूड़ा मैनेजमेंट पर ट्रेनिंग भी दी और कूड़े को रखने के लिये एक सेंटर भी बनाया गया. यहां जैविक कूड़े से वर्मी खाद बनाने का चेंबर बना तो अजैविक कूड़े की छंटाई कर उन्हें कबाड़ में बेच कर इनकी आमदनी का जरिया बनाया.
शुरू में जिन महिलाओं का गांव में लोग विरोध करते थे आज उसी गांव में उनकी इज्जत है और लोग उनके आने का इन्तजार करते हैं. इनकी इस सफलता से जिले के मुख्य विकास अधिकारी पुलकित खरे बहुत उत्साही है और कहते हैं कि 'इनमें वो जज़्बा है जो न केवल अपने गांव को स्वच्छ रखता है बल्कि नारी सशक्तिकरण का एक उदहारण भी पेश करता है. ये गांव उसी रूप में उभर कर सामने आए हैं. हर आइटम चाहे वो जैविक कूड़ा हो, चाहे किचेन वेस्ट हो, चाहे अजैविक, प्लास्टिक बॉटल, ढक्कन, अण्डे के छिलके - सबको अलग अलग करना उनको सुखाना और फिर उनको सही प्रॉडक्ट से लिंक करना इन महिलाओं ने समझ लिया है.
कूड़े के बेहतर निस्तारण के साथ साथ ये महिलायें गांव में गाय के मूत्र और गोबर से पञ्च द्रव्य, पेस्टीसाइड और अमृत धारा जैसी ऑर्गेनिक दवाइयां भी बना रही हैं जो खेती में बहुत बहुत उपयोगी हैं. इस योजना के तहत अभी दो गांव नयापुरा कला और छितौनी जुड़े है. इनकी सफलता को देख कर जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्रा बताते हैं कि 'इससे जागरूकता भी आ रही है और जो सामाजिक बंधन था वो भी टूटा है. अनेक धर्म सम्प्रदाय की महिलाएं एक साथ काम कर रही हैं तो एक सामाजिक समरसता का भी काम हो रहा है और जो सोशल बाउण्ड्री थी वो भी इससे टूटी हैं.' अब वाराणसी के गंगा के किनारे 42 बेस 42 गांव में इस योजना को लागू करने की तैयारी कर रहे हैं.
बनारस शहर से महज़ 12 किलोमीटर दूर बच्छाव ब्लॉक के छितौनी गांव में बने एसएलआरएम सेंटर में बॉक्स में रखी चूड़ियां, बोतल के ढक्कन, टूथ ब्रश, कॉस्मेटिक की डिब्बियां, कांच की बोतलें और टोकरी में सजे घरेलू सामान ऐसे रखे नजर आते हैं जैसे वो किसी दुकान में बिकने के लिये रखे हुए हैं. लेकिन दरअसल यह बनारस के छितौनी गांव के लोगों के घरों का कूड़ा है जिसे यहां बड़े करीने से रखा जाता है. यहां की महिलाएं हर सुबह गांव के बाहर बने इस सेंटर से कूड़े की ट्रॉली लेकर निकलती हैं और लोगों के घरों से कूड़े इक्कट्ठा कर यहां लाती हैं. फिर उन्हें अलग अलग करके इस तरह से रखती है जिससे इनका गांव साफ़ हो सके. कूड़ा इकठ्ठा करने वाली महिला नीतू शर्मा कहती हैं कि "हमारे घर के पास कूड़ा है कचरा है गन्दगी है, उसे साफ़ सुथरा रखेंगे तो बच्चे बिमारी से बचेंगे.'
साफ़ सफाई का विचार नीतू के मन में पहले से ही थी लेकिन उसने जोर तब पकड़ा जब इनके गांव में सॉलिड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट की योजना आई. बात गांव की सफाई की थी लिहाजा नीतू जैसी 50 महिलायें फौरन इस काम में जुट गईं. साधन और सेन्टर सरकारी योजना से मिला तो कुछ महिलाओं ने कूड़ा गाड़ी चलाने की जिम्मेदारी ली तो कुछ साथ में चल कर घरों से कूड़ा उठाने लगीं. बाकी बची महिलायें सेंटर पर आये कूड़े को अलग अलग कर उसे सफाई से रखने की जिम्मेदारी निभाने लगीं और कुछ कम्पोस्ट खाद बनाने में जुट गईं जिससे देखते देखते गांव की सूरत बदलने लगी.
शुरू में इन महिलाओं को गांव के समाजिक बंधन से दो चार होना पड़ा. शांति देवी बताती हैं 'पहले बहुत लोग बुरा मानते थे, कहते थे कि इनके हाथ का पानी नहीं पीएंगे. हम लोग कहे कोई बात नहीं रोजी रोटी का बात है और गांव को साफ़ रखना है तो करेंगे.
सॉलिड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट (एसएलआरएम) के तहत इन महिलाओं को रिक्शा ट्राली दी गई जिसमे जैविक और अजैविक कूड़े के लिये अलग अलग खाने बने थे. गांव के घरों में भी हरे और लाल डिब्बे दिये गये. इन्हें जिले के मुख्य विकास अधिकारी ने कूड़ा मैनेजमेंट पर ट्रेनिंग भी दी और कूड़े को रखने के लिये एक सेंटर भी बनाया गया. यहां जैविक कूड़े से वर्मी खाद बनाने का चेंबर बना तो अजैविक कूड़े की छंटाई कर उन्हें कबाड़ में बेच कर इनकी आमदनी का जरिया बनाया.
शुरू में जिन महिलाओं का गांव में लोग विरोध करते थे आज उसी गांव में उनकी इज्जत है और लोग उनके आने का इन्तजार करते हैं. इनकी इस सफलता से जिले के मुख्य विकास अधिकारी पुलकित खरे बहुत उत्साही है और कहते हैं कि 'इनमें वो जज़्बा है जो न केवल अपने गांव को स्वच्छ रखता है बल्कि नारी सशक्तिकरण का एक उदहारण भी पेश करता है. ये गांव उसी रूप में उभर कर सामने आए हैं. हर आइटम चाहे वो जैविक कूड़ा हो, चाहे किचेन वेस्ट हो, चाहे अजैविक, प्लास्टिक बॉटल, ढक्कन, अण्डे के छिलके - सबको अलग अलग करना उनको सुखाना और फिर उनको सही प्रॉडक्ट से लिंक करना इन महिलाओं ने समझ लिया है.
कूड़े के बेहतर निस्तारण के साथ साथ ये महिलायें गांव में गाय के मूत्र और गोबर से पञ्च द्रव्य, पेस्टीसाइड और अमृत धारा जैसी ऑर्गेनिक दवाइयां भी बना रही हैं जो खेती में बहुत बहुत उपयोगी हैं. इस योजना के तहत अभी दो गांव नयापुरा कला और छितौनी जुड़े है. इनकी सफलता को देख कर जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्रा बताते हैं कि 'इससे जागरूकता भी आ रही है और जो सामाजिक बंधन था वो भी टूटा है. अनेक धर्म सम्प्रदाय की महिलाएं एक साथ काम कर रही हैं तो एक सामाजिक समरसता का भी काम हो रहा है और जो सोशल बाउण्ड्री थी वो भी इससे टूटी हैं.' अब वाराणसी के गंगा के किनारे 42 बेस 42 गांव में इस योजना को लागू करने की तैयारी कर रहे हैं.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं