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This Article is From Apr 06, 2017

डॉक्टरों ने कहा नहीं बचेगी जान लेकिन मौत को मात देकर सिर्फ 18 महीने में बनीं वेट लिफ्टर चैंपियन

डॉक्टरों ने कहा नहीं बचेगी जान लेकिन मौत को मात देकर सिर्फ 18 महीने में बनीं वेट लिफ्टर चैंपियन
16 साल की उम्र में निकोला ‘एनोरेक्जिक’बीमारी की चपेट में आई.
लंदन: अगर इंसान ठान ले तो मौत को भी मात दे सकता है. ब्रिटेन की निकोला किंग ने इसे साबित कर दिखाया है. एनोरेक्सिया (भूख न लगने की बीमारी) से पीड़ित निकोला मौत के मुहाने पर पहुंच चुकी थी लेकिन अपनी जिजीविषा से उसने इस बीमारी को मात दी. निकोला ने 18 महीने के अंदर ब्रिटेन की ‘एलीट्स यूके बॉडीबिल्डिंग चैंपियनशिप’ अपने नामकर सबको हैरान कर दिया. 24 साल की निकोला को एक साल पहले आईसीयू में भर्ती कराया गया था और तब उसका इलाज कर रहे डॉक्टरों ने निकोला के परिवालवालों से गुडबाय कहने को कह दिया था क्योंकि उनके अंग काम नहीं कर रहे थे.  

16 साल की उम्र में यानी 2011 में निकोला ‘एनोरेक्जिक’बीमारी की चपेट में आई. छह सप्ताह तक बिना खाए रही. यहां तक कि पेय पदार्थ भी सही ढंग से नहीं ले सकीं. उनके बाल झड़ गए. इस दौरान लगातार शारीरिक दर्द को झेला. उनका वजन बहुत ज्यादा घट गया और मरणासन्न स्थिति में पहुंच गई.  

निकोला को तीन सप्ताह तक लगातार ट्यूब के जरिये पेय पदार्थ दिए गए. जून 2012 में उन्हें लगभग डेढ़ साल बाद डिस्चार्ज किया गया. इसके बाद घर पर ही करीब चार साल तक इलाज चलता रहा. धीरे-धीरे उनके शरीर में सुधार हुआ. इसी बीच निकोला ने जिम जाना शुरू कर दिया. जिम ज्वॉइन के बाद निकोला ने बॉडीबिल्डिंग के जरिये अपनी जिंदगी को बदलने का फैसला किया और 2015 में प्रतियोगिता पर फोकस किया.  अब 5 फीट 9 इंच लंबी निकोला संतुलित भोजन लेती हैं और 40 किग्रा तक का भार उठा सकती हैं.

'मैं मर जाना चाहती थी'
निकोला ने एक साक्षात्कार में बताया, " बीमारी का असर इतना ज्यादा था कि मैं जो भी खाती थी, वह ज्यादा देर तक पेट में नहीं टिकता था. मैं मर जाना चाहती थी और शारीरिक तौर पर मैं मर चुकी थी. अस्पताल से लौटने के बाद जब मैं जिम जाने लगी तो मुझे जीवन का एक उद्देश्य मिला. मैं सुबह जल्दी उठने लगी. मैं थेरेपे लेने लगी और इसके सकारात्मक नतीजे सामने आए और बाद मैं मैंने बॉडीबिल्डिंग से जिंदगी के लिए नया उद्देश्य चुना.   

जीत के बाद यह कहा
मुझे यहां तक पहुंचने में काफी लंबा इंतजार करना पड़ा लेकिन मुझे खुद पर गर्व है. मैंने कभी भी यहां तक पहुंचने के बारे में नहीं सोचा था. यह रोमांचित करने वाला है. मैं अभी भी संघर्ष कर रही हूं क्योंकि यह बीमारी पूरी तरह से दूर नहीं हुई है और न ही जाती है. लेकिन मुझे ऐसा लगता है जैसे मैंने इसे हरा दिया है.

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