यह ख़बर 28 अक्टूबर, 2012 को प्रकाशित हुई थी

यूपी का एक गांव जहां नहीं हुआ एक भी अपराध

खास बातें

  • उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराध जहां एक तरफ राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है, वहीं एक गांव यहां ऐसा भी है, जहां कलयुग में 'रामराज' स्थापित है।
लखनऊ:

उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराध जहां एक तरफ राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है, वहीं एक गांव यहां ऐसा भी है, जहां कलयुग में 'रामराज' स्थापित है। इस गांव में आजादी के छह दशक बीतने के बाद भी कोई अपराध नहीं हुआ है।

हम बात कर रहे हैं बहेरा गांव की जो उत्तर प्रदेश के नक्सल प्रभावित सोनभद्र जिले में है। आजादी के बाद से आज तक यहां मारपीट, फौजदारी, चोरी, लूट, अपहरण या हत्या जैसी कोई आपराधिक घटना नहीं हुई है।

अपराध-मुक्त होने का दावा केवल 700 की आबादी वाले बहेरा गांव के लोग ही कर रहे हैं, ऐसा नहीं है। पुलिस के रिकॉर्ड भी उनके दावों पर मुहर लगाते हैं। रामपुर बकोनिया थाने के रिकॉर्ड में यह गांव आजादी के समय से लेकर अब तक बिल्कुल बेदाग है।

जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुभाष चंद्र दुबे का कहना है कि नक्सलियों से घिरे होने के बावजूद इस गांव में एक भी प्राथमिकी दर्ज न होना काफी खुशी की बात है।

दुबे के मुताबिक, पिछड़ा होने होने के बावजूद बहेरा गांव वास्तव में एक आदर्श गांव है। इस गांव के लोगों ने दुनिया के सामने एक मिसाल कायम की है।

बहेरा गांव भले ही वर्षो से अपराध-मुक्त रहा हो, लेकिन ऐसा नहीं है कि दूसरे गांवों की तरह यहां के लोगों में आपसी मनमुटाव नहीं होता है। अगर कभी किसी के बीच मनमुटाव हो भी गया तो गांव के बड़े-बुजुर्ग और पंचायत, गांव की सरहद के अंदर ही मामला सुलझ्झा देते हैं यानी थाने जाकर रिपोर्ट लिखवाने की नौबत नहीं आती।

एक ग्रामीण लालमणि ने कहा, "दूसरे गांव की तरह हमारे गांव में भी लोगों के बीच मनमुटाव होता है, लेकिन हम मामले को लेकर थाने पर न जाकर गांव के बड़े-बुर्जुगों के पास मुद्दा रखते हैं। बड़े-बुजुर्ग जो फैसला करते हैं, दोनों पक्ष खुशी-खुशी उसे स्वीकार कर लेते हैं।"

एक अन्य ग्रामीण सियाराम ने कहा, "बड़े-बुजुर्गों का सम्मान और उनके प्रति भरोसा जताए जाने के कारण आस-पास के इलाके में हमारे गांव को विशिष्ट पहचान मिली है।"

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सोनभद्र शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर बहेरा गांव की आबादी का 30 प्रतिशत हिस्सा ब्राह्मण और क्षत्रिय बिरादरी का है। 70 प्रतिशत आबादी दलित एवं अन्य जातियों की है। गांव के ज्यादातर लोग खेती करते हैं और कई घरों के लोग सरकारी व निजी कम्पनियों की नौकरियों में हैं।