दो साल में बनकर तैयार हुआ कोल्हापुर स्थित श्री महालक्ष्मी मंदिर में अंबाबाई की पालकी.
कोल्हापुर:
महाराष्ट्र के कोल्हापुर स्थित श्री महालक्ष्मी मंदिर में अंबाबाई की मूर्ति 26 किलो सोने यानी लगभग 7 करोड़ रुपये की पालकी पर बैठेंगी. मूर्ति स्थापना के 300 साल पुरे होने के उपलक्ष्य में 2015 में ये संकल्प लिया गया था. अप्रैल 2015 में पालकी का काम शुरू हुआ. मंदिर ट्रस्ट ने श्रद्धालुओं से सोने का चढ़ावा चढ़ाने का अनुरोध किया था. देशभर से लगभग 26000 श्रद्धालुओं ने नकद, चेक, सोने के रूप में चढ़ावा चढ़ाया, जिससे पालकी तैयार हुई. नक्काशीदार कारीगरी से इसे सजाया गया. पालकी के चारों ओर स्वर्ण मोर बने हैं. 28 अप्रैल यानी अक्षय तृतीया के दिन पालकी का शुद्धिकरण हुआ.
पहले पालकी को गुढ़ी पाड़वा के मौके पर श्री अंबाबाई को अपर्ण किया जाना था, लेकिन इस दिन चारों पीठ के शंकराचार्य की मौजूदगी नहीं होने से इस तिथि को आगे बढ़ा दिया गया.
मालूम हो कि कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी मंदिर न केवल महाराष्ट बल्कि देश का सबसे प्रसिद्ध लक्ष्मी मंदिर माना जाता है. इतिहास में दर्ज तथ्यों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण सातवीं सदी चालुक्य वंश के शासक कर्णदेव ने करवाया था. प्रचलित जनश्रुति के अनुसार यहां की लक्ष्मी प्रतिमा लगभग 7,000 साल पुरानी है.
इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां सूर्य भगवान अपनी किरणों से स्वयं देवी लक्ष्मी का पद-अभिषेक करते हैं. जनवरी और फरवरी के महीने में सूर्य की किरणें देवी की पैरों का वंदन करती हुई मध्य भाग से गुजरते हुए फिर देवी का मुखमंडल को रोशनी करती हैं, जो कि एक अतभुत दृश्य प्रस्तुत करता है.
इनपुट: विजय कुंभारे
पहले पालकी को गुढ़ी पाड़वा के मौके पर श्री अंबाबाई को अपर्ण किया जाना था, लेकिन इस दिन चारों पीठ के शंकराचार्य की मौजूदगी नहीं होने से इस तिथि को आगे बढ़ा दिया गया.
मालूम हो कि कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी मंदिर न केवल महाराष्ट बल्कि देश का सबसे प्रसिद्ध लक्ष्मी मंदिर माना जाता है. इतिहास में दर्ज तथ्यों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण सातवीं सदी चालुक्य वंश के शासक कर्णदेव ने करवाया था. प्रचलित जनश्रुति के अनुसार यहां की लक्ष्मी प्रतिमा लगभग 7,000 साल पुरानी है.
इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां सूर्य भगवान अपनी किरणों से स्वयं देवी लक्ष्मी का पद-अभिषेक करते हैं. जनवरी और फरवरी के महीने में सूर्य की किरणें देवी की पैरों का वंदन करती हुई मध्य भाग से गुजरते हुए फिर देवी का मुखमंडल को रोशनी करती हैं, जो कि एक अतभुत दृश्य प्रस्तुत करता है.
इनपुट: विजय कुंभारे
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