नई दिल्ली:
दृढ़निश्चयी और किसी भी तरह की परिस्थिति से जूझने और जीतने की क्षमता रखने वाली भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने न केवल इतिहास में खास जगह बनाई, बल्कि पाकिस्तान को विभाजित करवाकर दक्षिण एशिया का भूगोल ही बदल डाला, जिससे वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध की अपमानजनक पराजय की कड़वाहट धूमिल हुई, और भारतीयों में नए जोश का संचार हुआ।
रूसी क्रांति के वर्ष 1917 में 19 नवंबर को पैदा हुईं इंदिरा गांधी ने वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में विश्व की महाशक्तियों के सामने नहीं झुकने के नीतिगत और समयानुकूल निर्णय की मदद से पाकिस्तान को परास्त किया और बांग्लादेश को मुक्ति दिलाकर स्वतंत्र भारत को एक नया गौरवपूर्ण क्षण दिलवाया।
भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (1917-1984) के साथ काम कर चुके और पूर्व विदेशमंत्री नटवर सिंह ने कहा था, "वह एक बड़ी राजनेता थीं और उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि बांग्लादेश की स्वतंत्रता थी। इसके जरिये उन्होंने भूगोल को ही बदलकर रख दिया।" उस समय भारत के लिए पूर्वी पाकिस्तान पर आक्रमण करना आसान काम नहीं था, क्योंकि अमेरिका और चीन की तरफ से भारत पर लगातार दबाव बनाया जा रहा था, लेकिन इंदिरा आत्मविश्वास से लबरेज़ थीं, और उन्होंने एक कार्यक्रम में बीबीसी से कहा था, "हम लोग इस बात पर निर्भर नहीं हैं कि दूसरे क्या सोचते हैं... हमें यह पता हैं कि हम क्या करना चाहते हैं और हम क्या करने जा रहे हैं, चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो..."
स्वप्नदर्शी राजनेता खहे जाने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा के पिता ने भारत में कई महत्वपूर्ण पहल कीं, लेकिन उन्हें अमली जामा इंदिरा ने ही पहनाया। चाहे रजवाड़ों के प्रिवीपर्स समाप्त करना हो, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना हो अथवा कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण करना हो... इन फैसलों के जरिये उन्होंने अपने आप को गरीबों और आम आदमी का समर्थक साबित करने की कोशिश की।
राजनीति में कदम रखने पर कुछ लोगों ने इंदिरा को 'गूंगी गुड़िया' कहा था, लेकिन वह सदैव अपने विरोधियों पर बीस साबित होती रहीं... नटवर सिंह ने कहा था, "इंदिरा गांधी हमेशा अपने विरोधियों पर भारी पड़ती थीं। चौथे राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी की जगह वीवी गिरि को जिताकर उन्होंने इसे और पुख्ता किया था।"
भारत में बीबीसी के पूर्व संवाददाता मार्क टली ने भी कहा था, "इंदिरा गांधी को 'दुर्गा', 'लौहमहिला', 'भारत की साम्राज्ञी' और न जाने कितने अन्य विशेषण दिए गए थे, जो एक ऐसी नेता की ओर इशारा करते थे, जो आज्ञा का पालन करवाने और डंडे के जोर पर शासन करने की क्षमता रखती थी।"
मौजूदा जटिल दौर में देश के कई कोनों से नेतृत्व संकट की आवाज़ें उठ रही हैं। वरिष्ठ समाजशास्त्री आशीष नंदी के अनुसार, "नेतृत्व की पहचान 'गुडी-गुडी' छवि के लिए नहीं, उसके मजबूत समर्थन और विरोध से बनती है। ऐसा न उसके चाहने से होता है, न उनके विरोधियों के। कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए उन्हें मजबूती से कुछ चीजों के, कुछ मूल्यों के पक्ष में खड़ा होना होता है और कुछ की उतनी ही तीव्रता से मुखालफत करनी होती है। आज भारत के इतिहास में इंदिरा गांधी की छवि कुछ ऐसे ही संकल्पशील नेता की है।"
इंदिरा गांधी 16 वर्ष देश की प्रधानमत्री रहीं और उनके शासनकाल में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन वर्ष 1975 में आपातकाल लागू करने के फैसले को लेकर इंदिरा को भारी विरोध-प्रदर्शन और तीखी आलोचनाएं झेलनी पड़ी थीं। आलोचकों ने इसे लोकतंत्र और मीडिया पर हमला बताया और कहीं न कहीं भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि भी प्रभावित हुई। नटवर सिंह ने कहा था, "इंदिरा गांधी ने खुद ही आपातकाल खत्म कर आम चुनाव करवाया। हालांकि कांग्रेस को वर्ष 1977 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, लेकिन वर्ष 1980 में उन्होंने भारी बहुमत से वापसी की। फिर वर्ष 1983 में उन्होंने नई दिल्ली में निर्गुट सम्मेलन और उसी साल नवंबर में राष्ट्रमंडल राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन का आयोजन किया। इनसे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि सशक्त हुई।"
आशीष नंदी ने कहा था, "अंतरिक्ष, परमाणु विज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान में भारत की आज जैसी स्थिति की कल्पना इंदिरा गांधी के बगैर नहीं की जा सकती थी। हर राजनेता की तरह इंदिरा गांधी की भी कमजोरियां हो सकती हैं, लेकिन एक राष्ट्र के रूप में भारत को यूटोपिया से निकालकर यथार्थ के धरातल पर उतारने का श्रेय उन्हें ही जाता है।"
ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद उपजे तनाव के बीच उनके निजी अंगरक्षकों ने ही 31 अक्टूबर, 1984 को गोली मारकर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी।
(28वीं पुण्यतिथि - 31 अक्टूबर, 2012 - पर विशेष)
रूसी क्रांति के वर्ष 1917 में 19 नवंबर को पैदा हुईं इंदिरा गांधी ने वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में विश्व की महाशक्तियों के सामने नहीं झुकने के नीतिगत और समयानुकूल निर्णय की मदद से पाकिस्तान को परास्त किया और बांग्लादेश को मुक्ति दिलाकर स्वतंत्र भारत को एक नया गौरवपूर्ण क्षण दिलवाया।
भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (1917-1984) के साथ काम कर चुके और पूर्व विदेशमंत्री नटवर सिंह ने कहा था, "वह एक बड़ी राजनेता थीं और उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि बांग्लादेश की स्वतंत्रता थी। इसके जरिये उन्होंने भूगोल को ही बदलकर रख दिया।" उस समय भारत के लिए पूर्वी पाकिस्तान पर आक्रमण करना आसान काम नहीं था, क्योंकि अमेरिका और चीन की तरफ से भारत पर लगातार दबाव बनाया जा रहा था, लेकिन इंदिरा आत्मविश्वास से लबरेज़ थीं, और उन्होंने एक कार्यक्रम में बीबीसी से कहा था, "हम लोग इस बात पर निर्भर नहीं हैं कि दूसरे क्या सोचते हैं... हमें यह पता हैं कि हम क्या करना चाहते हैं और हम क्या करने जा रहे हैं, चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो..."
स्वप्नदर्शी राजनेता खहे जाने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा के पिता ने भारत में कई महत्वपूर्ण पहल कीं, लेकिन उन्हें अमली जामा इंदिरा ने ही पहनाया। चाहे रजवाड़ों के प्रिवीपर्स समाप्त करना हो, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना हो अथवा कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण करना हो... इन फैसलों के जरिये उन्होंने अपने आप को गरीबों और आम आदमी का समर्थक साबित करने की कोशिश की।
राजनीति में कदम रखने पर कुछ लोगों ने इंदिरा को 'गूंगी गुड़िया' कहा था, लेकिन वह सदैव अपने विरोधियों पर बीस साबित होती रहीं... नटवर सिंह ने कहा था, "इंदिरा गांधी हमेशा अपने विरोधियों पर भारी पड़ती थीं। चौथे राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी की जगह वीवी गिरि को जिताकर उन्होंने इसे और पुख्ता किया था।"
भारत में बीबीसी के पूर्व संवाददाता मार्क टली ने भी कहा था, "इंदिरा गांधी को 'दुर्गा', 'लौहमहिला', 'भारत की साम्राज्ञी' और न जाने कितने अन्य विशेषण दिए गए थे, जो एक ऐसी नेता की ओर इशारा करते थे, जो आज्ञा का पालन करवाने और डंडे के जोर पर शासन करने की क्षमता रखती थी।"
मौजूदा जटिल दौर में देश के कई कोनों से नेतृत्व संकट की आवाज़ें उठ रही हैं। वरिष्ठ समाजशास्त्री आशीष नंदी के अनुसार, "नेतृत्व की पहचान 'गुडी-गुडी' छवि के लिए नहीं, उसके मजबूत समर्थन और विरोध से बनती है। ऐसा न उसके चाहने से होता है, न उनके विरोधियों के। कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए उन्हें मजबूती से कुछ चीजों के, कुछ मूल्यों के पक्ष में खड़ा होना होता है और कुछ की उतनी ही तीव्रता से मुखालफत करनी होती है। आज भारत के इतिहास में इंदिरा गांधी की छवि कुछ ऐसे ही संकल्पशील नेता की है।"
इंदिरा गांधी 16 वर्ष देश की प्रधानमत्री रहीं और उनके शासनकाल में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन वर्ष 1975 में आपातकाल लागू करने के फैसले को लेकर इंदिरा को भारी विरोध-प्रदर्शन और तीखी आलोचनाएं झेलनी पड़ी थीं। आलोचकों ने इसे लोकतंत्र और मीडिया पर हमला बताया और कहीं न कहीं भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि भी प्रभावित हुई। नटवर सिंह ने कहा था, "इंदिरा गांधी ने खुद ही आपातकाल खत्म कर आम चुनाव करवाया। हालांकि कांग्रेस को वर्ष 1977 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, लेकिन वर्ष 1980 में उन्होंने भारी बहुमत से वापसी की। फिर वर्ष 1983 में उन्होंने नई दिल्ली में निर्गुट सम्मेलन और उसी साल नवंबर में राष्ट्रमंडल राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन का आयोजन किया। इनसे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि सशक्त हुई।"
आशीष नंदी ने कहा था, "अंतरिक्ष, परमाणु विज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान में भारत की आज जैसी स्थिति की कल्पना इंदिरा गांधी के बगैर नहीं की जा सकती थी। हर राजनेता की तरह इंदिरा गांधी की भी कमजोरियां हो सकती हैं, लेकिन एक राष्ट्र के रूप में भारत को यूटोपिया से निकालकर यथार्थ के धरातल पर उतारने का श्रेय उन्हें ही जाता है।"
ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद उपजे तनाव के बीच उनके निजी अंगरक्षकों ने ही 31 अक्टूबर, 1984 को गोली मारकर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी।
(28वीं पुण्यतिथि - 31 अक्टूबर, 2012 - पर विशेष)
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