लक्ष्मण राव जिनके यहां चाय पर उबलती हैं कहानियां और उपन्यास

लक्ष्मण राव जिनके यहां चाय पर उबलती हैं कहानियां और उपन्यास

लक्ष्मण राव ने 12 किताबें लिखी हैं और उन्हें पुरस्कार भी मिल चुका है

नई दिल्ली:

गली मोहल्ले, नुक्कड़ पर चाय बेचने वाले आपको कई मिल जाएंगे, कुछ की चाय शायद आप हमेशा पीते भी होंगे। मिलिए लक्ष्मण राव से, यह भी चाय ही बेचते हैं लेकिन इनकी बात ज़रा अलग है। दिल्ली के आईटीओ इलाके में सड़क के किनारे एक छोटी सी स्टॉल लगाने वाले लक्ष्मण के पास जो आता है, वो फिर बार बार यहीं आता है। फर्क बस यह है कि यहां चाय के साथ साथ कुछ राय-शुमारी भी हो जाती है।

दरअस 62 साल के राव को किताबों का बहुत शौक है और उनकी अब तक 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें से एक किताब के लिए उन्हें पुरस्कार भी मिल चुका है। इन किताबों में राव के ग्राहकों और उनके आसपास से जुड़े लोगों की कहानियां शामिल हैं। इनका एक फेसबुक पेज भी है और इनकी किताबें अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर बेची जाती हैं। यही नहीं इनकी एक किताब का तो अंग्रेज़ी में अनुवाद हो रहा है जिसके बाद वह किंडल पर पढ़ी जा सकेगी।

लक्ष्मण राव की किताबें उनके ग्राहकों की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती हैं

लेकिन महाराष्ट्र के अमरातवती जिले से दिल्ली तक का सफर इतना आसान नहीं था। 1975 में राव की जेब में सिर्फ 40 रूपए थे जो उन्होंने अपने पिता से उधार लिए थे ताकि वह दिल्ली जा सकें। उस वक्त लक्ष्मण सिर्फ 22 साल के थे। पांच साल बाद लक्ष्मण ने विष्णु दिगम्बर मार्ग पर चाय बेचना शुरु कर दिया जहां उस इलाके के लोगों के बीच वह काफी लोकप्रिय हो गए। लेकिन जब वह अपना पहला उपन्यास लेकर एक प्रकाशक के पास गए तो उन्हें यह कहकर बाहर निकाल दिया गया कि 'एक चायवाला क्या लिखेगा?'

बाद में राव की किताब 'रामदास' ने 2003 में इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती अवार्ड  जीता और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें राष्ट्रपति भवन आने का न्यौता भी दिया। इसके बाद तो राव ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने पाई पाई बचाकर 7 हज़ार रुपए जमा किए ताकि वह अपनी पहली किताब खुद छाप सकें। इसके बाद उन्होंने साइकल से स्कूलों में  जाकर उन लोगों के बीच अपनी किताब को बेचा जिन्हें हिंदी साहित्य में बहुत दिलचस्पी है।

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आज हर दिन, लक्ष्मण राव अपने चाय के सामान के साथ साइकल पर आईटीओ जाते हैं। ऑटो से जाना राव को पसंद नहीं क्योंकि उनका मानना है कि वह जितना पैसा बचाएंगे, उससे वह अपनी किताब को प्रकाशित कर पाएंगे। दोपहर 2 बजे से रात 9 बजे तक वह चाय बेचते हैं और रात एक बजे तक लिखते हैं और लिखते हैं। 42 साल की उम्र में उन्होंने बीए की डिग्री हासिल की है और इस साल वह मास्टर्स की डिग्री के लिए परीक्षा देंगे। उनका कहना है कि नतीजे आने के बाद वह हिंदी साहित्य में पीएचडी करना चाहते हैं।