प्रतीकात्मक फोटो
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि राजस्थान के कुछ इलाकों में जब किसी परिवार की एक बहू गर्भवती होती है, तो पति दूसरी शादी कर लेता है. जी हां, ये सुनकर तो आप भी जरूर चौंक गए होंगे कि कोई अपनी पत्नी के गर्भवती होने पर दूसरी शादी के बारे में कैसे सोच सकता है? पर इससे भी चौकाने वाली बात ये है कि उन लड़कियों को भी शादी के पहले दिन से यह पता होता है कि ये दिन जरूर आएगा!
हमारे देश के एक प्रांत में इस तरह के रिवाज हैं, जहां हर शादी-शुदा लड़के का पिता बनने से पहले दूसरी शादी करने की प्रथा प्रचलित है. यह प्रथा है राजस्थान के बाड़मेर ज़िले में देरासर नाम गांव की. जहां पानी की इतनी किल्लत है कि घर की औरतों को तपती गर्मी या भीषण सर्दी में पूरा-पूरा दिन उसकी खोज में मीलों भटकना पड़ता है. पानी लाने का ये सफर इन औरतों के लिए आसान नहीं होता. बचपन से ही लड़कियों को यहां पानी ढ़ो कर लाना सिखाया जाता है, ताकि वे कुछ ही सालों में दो-तीन घड़े ढ़ो कर चल सकें. चूकि ये गर्भवती औरतों के लिए खतरे का काम है, इस गांव में लड़कियों के गर्भवती होते ही उनके पति दूसरी शादी कर लेते हैं, ताकि पानी लाने की ज़िम्मेदारी दूसरी पत्नी उठाए और साथ ही पहली पत्नी का ख्याल रखे. 2011 के जनसंख्या जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, देरासर की आबादी 596 है, जिनमे से 309 पुरुष हैं और 287 महिलाएं.
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राजस्थान का देरासर भारत के ऐसे गांवों में से एक है जहां 'बहुविवाह' की प्रथा सालों से चली आ रही है. महाराष्ट्र में भी कई गांव हैं जहां पानी की किल्लत की वजह से पुरुषों को बहुविवाह करना पड़ता है. बहुत से क्षेत्र सूखाग्रस्त होते हैं और पानी के लिए कई-कई गांव पार करने पड़ते हैं जिसमे 10 से 12 घंटे लग जाते है. महाराष्ट्र में ऐसे लगभग 19,000 सूखाग्रस्त गांव हैं. दूसरी पत्नियों को इन गांव में 'वाटर वाइव्स' (पानी की पत्नियां) या 'वाटर बाईस' (पानी की बाई) कह कर सम्बोधित किया जाता है. एक ऐसा भी गांव है (देंगनमल) जहां पुरुष तीन शादियां तक करते हैं ताकि एक पत्नी बच्चों और घर की देख-रेख करे तो बाकी दो पत्नियां पर्याप्त मात्रा में पानी ढूंढ़ के लाए. ऐसे गांव में अक्सर देखा जाता है कि दूसरी पत्नियां ज्यादातार पहले पति की छोड़ी हुई या विद्वा होती हैं. ये भी देखा जाता है कि उम्रदार पुरुष अपने से कई छोटी उम्र की लड़कियों से शादी करते हैं, क्योकि वो उम्रदार औरतों से ज्यादा पानी ढ़ोने में सक्षम होती हैं.
भारत में बहुविवाह, सिवा मुस्लिम धर्म के लिए, सन 1956 में गैरकानूनी करार दिया गया था. परन्तु ये कानून गोवा के हिन्दुओ पे लागु नहीं होता. उन्हें बहुविवाह करने की अनुमति है. 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने 1961 की जनगणना (अंतिम जनगणना, जिसमें इस तरह का डाटा एकत्रित किया गया, के तहत) को मध्यनज़र रखते हुए कहा था, “भारत में मुस्लिम धर्म (5.78%) से कहीं ज्यादा दूसरे समुदाय के लोग बहुविवाह करते हैं. आदिवासियों में सबसे ज्यादा (15.25%) और बौद्ध (7.9%), हिंदुओं में (5.8%) बहुविवाह किए गए, जो 1960 में मुस्लिम धर्म से ज्यादा थे.”
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ऐसे गांवों में कई बार अधिकारी लोग भी बहुबिवाह नहीं रोक पाते. हैरानी की बात यह है कि यहां बहुविवाह पहली या दूसरी पत्नी की मर्जी से ही होते हैं. इस दिशा में सरकार को पानी की उपलब्धता और लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए कड़े और जरूरी कदम उठाने होंगे. वर्ना एक के बाद एक इस तरह प्रथाएं बनती जाएंगी, जो महिलाओं के विकास और समाज में उनकी स्थिति को बद से बदत्तर कर देंगे.
हमारे देश के एक प्रांत में इस तरह के रिवाज हैं, जहां हर शादी-शुदा लड़के का पिता बनने से पहले दूसरी शादी करने की प्रथा प्रचलित है. यह प्रथा है राजस्थान के बाड़मेर ज़िले में देरासर नाम गांव की. जहां पानी की इतनी किल्लत है कि घर की औरतों को तपती गर्मी या भीषण सर्दी में पूरा-पूरा दिन उसकी खोज में मीलों भटकना पड़ता है. पानी लाने का ये सफर इन औरतों के लिए आसान नहीं होता. बचपन से ही लड़कियों को यहां पानी ढ़ो कर लाना सिखाया जाता है, ताकि वे कुछ ही सालों में दो-तीन घड़े ढ़ो कर चल सकें. चूकि ये गर्भवती औरतों के लिए खतरे का काम है, इस गांव में लड़कियों के गर्भवती होते ही उनके पति दूसरी शादी कर लेते हैं, ताकि पानी लाने की ज़िम्मेदारी दूसरी पत्नी उठाए और साथ ही पहली पत्नी का ख्याल रखे. 2011 के जनसंख्या जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, देरासर की आबादी 596 है, जिनमे से 309 पुरुष हैं और 287 महिलाएं.
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