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गूगल (Google) ने बेहद चर्चित सोशल वर्कर और एक्टिविस्ट मुरलीधर देवीदास आमटे (Murlidhar Devidas Amte) पर डूडल बनाया है. इन्हें बाबा आमटे (Baba Amte) के नाम से भी जाना जाता है. आज का गूगल डूडल स्लाइडशो (Google Doodle) में बनाया गया है, जिसमें मुरलीधर देवीदास आमटे (Murlidhar Devidas Amte) की लाइफ के हर अहम पहलुओं को दिखाया गया है. उन्होंने अपने जीवन में कुष्ट रोगियों या कोढ़ (Leprosy) से पीड़ित लोगों के लिए बहुत काम किया.
Google Doodle Celebrates Baba Amte 104th Birthday: 26 दिसंबर 1914 (26 December, 1914) को बाबा आमटे (Baba Amte) का जन्म महाराष्ट्र के एक समृद्ध परिवार में हुआ. अपने समय में बाबा आमटे (Baba Amte) शिकार, स्पोर्ट्स और महंगी गाड़ियां चलाने का शौक रखते थे.
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Google Doodle ने सेलिब्रेट किया Baba Amte का 104वां जन्मदिन
उन्होंन लॉ की पढ़ाई की और खुद की एक फर्म भी खोली. इन सबके बावजूद, मुरलीधर देवदास आमटे (Murlidhar Devidas Amte) बचपन से भारत में मौजूद असमानताओं को वाकिफ थे. इसी वजह से 30 की उम्र के बाद सबकुछ छोड़ वो जरुरतमंदों की भलाई में लग गए.
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बाबा आमटे (Baba Amte) की ज़िंदगी जब इन्होंने एक व्यक्ति को कुष्ठ रोग या कोढ़ (Leprosy) से दर्द में करहाते हुए देखा. इस रोग के कारण उस व्यक्ति के सड़ते हुए शरीर को देख बाबा आमटे बहुत भयभीत हो गए.
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Google Doodle ने सेलिब्रेट किया Baba Amte का 104वां जन्मदिन
उस डर का सामना करते हुए, बाबा आम्टे ने "मानसिक कुष्ठ" (Mental Leprosy) की स्थिति की पहचान की, जो लोगों को इस भयानक दुःख के साथ उनके चेहरे पर उदासीनता या अपमान भाव महसूस कराती थी. बाबा आमटे (Baba Amte) ने कहा कि सबसे भयानक ये बीमारी किसी के अंगों को नहीं खो रही है, बल्कि दया और करुणा महसूस करने के लिए किसी की ताकत खो रही है.
मुरलीधर देवीदास आमटे ने अपनी पूरी जिंदगी इस ताकत को बचाए रखने में लगाई. साथ ही उन्होंने खुद के शरीर में बेसिलि (एक प्रकार का जीवाणु) का इंजेक्शन लगाकर यह साबित किया कुष्ठ रोगियों द्वारा सामना किए जाने वाले सामाजिक कलंक वाली यह बीमारी अधिक संक्रामक नहीं है. वहीं, 1949 में महाराष्ट्र के चन्द्रपुर जिले में बाबा आमटे ने कुष्ट रोगियों के लिए एक पुनर्वास केंद्र की स्थापना की, इसका नाम रखा आनंद वन (Anandwan).
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Google Doodle ने सेलिब्रेट किया Baba Amte का 104वां जन्मदिन
आनंदवन सिर्फ एक पुनर्वास केंद्र या अस्पताल नहीं था, बल्कि वहां कुष्ठ रोगी खेती, बढ़ईगीरी, सिलाई, बुनाई, कताई, छपाई आदि काम करते हैं. वे वहां शादी करके रह सकते हैं. आनंदवन में अपंगों और अंधे बच्चों के लिए स्कूल भी है.
बाबा आमटे को अपने इन कामों के लिए 1971 में पद्मा श्री अवॉर्ड (Padma Shri) से नवाज़ा गया. इसके साथ ही, कुष्ठरोगियों को जीवन समर्पित करने वाले बाबा आमटे को 1985 का रैमन मैगसेसे पुरस्कार दिया गया. इसके पहले उन्हें राजाजी रत्न पुरस्कार, राष्ट्र भूषण पुरस्कार, बजाज पुरस्कार, डेमियल डुट्टोन पुरस्कार वगैरह मिल चुके हैं.
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