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This Article is From Apr 15, 2016

चंदा कोचर का अपनी बेटी को लिखा यह दिल को छू लेने वाला ख़त...

चंदा कोचर का अपनी बेटी को लिखा यह दिल को छू लेने वाला ख़त...
वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम द्वारा अपलोड किए गए यूट्यूब वीडियो का स्क्रीनग्रैब
आईसीआईसीआई बैंक की एमडी और सीईओ चंदा कोचर का नाम अक्सर अखबारों के बिज़नेस पन्ने पर दिखाई देता है। लेकिन इस बार कोचर किसी और वजह से खबरों में हैं और सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही हैं। वजह है कोचर का अपनी बेटी को लिखा वह प्रेरणादायक ख़त जो फेसबुक और ट्विटर पर काफी शेयर किया जा रहा है। बैंकर चंदा कोचर ने इस ख़त में एक बेहद सफल पेशेवर बैंकर के पीछे छुपी एक कामकाजी मां की मनोदशा पर रोशनी डाली है। अपने संघर्षों और पशोपेश को व्यक्त करते हुए चंदा इस ख़त में अपनी बेटी को लिखती हैं 'मुझे याद है तुम्हारे बोर्ड एग्ज़ाम थे और मैंने छुट्‌टी ली थी ताकि तुम्हें परीक्षा हॉल खुद जाकर छोड़ सकूं। लेकिन तुमने कहा कि इतने सालों से तुम अकेले जाने की आदी हो गई हूं। यह सुनकर मुझे ठेस-सी लगी।'

वहीं चंदा अपनी मां की मिसाल देते हुए बेटी को बताती हैं कि किस तरह मुश्किल दौर में हिम्मत और लगन बनाए रखने से स्थितियां बेहतर हो ही जाती हैं। उन्होंने लिखा 'परिवार को अकेले चलाना निश्चय ही उनके लिए मुश्किल रहा होगा, लेकिन उन्होंने हमें इस बात का कभी अहसास नहीं होने दिया। जब तक हम आत्मनिर्भर नहीं हो गए, वह मेहनत करती रहीं। मैं नहीं जानती थी कि मेरी मां को अपने आप पर इतना भरोसा है।'

अपनी बेटी आरती को लिखा चंदा का यह ख़त सुधा मेनन की किताब 'Legacy: Letters from Eminent Parents to Their Daughters'का हिस्सा है। पढ़िए इस ख़त का संपादित अंश -

प्यारी आरती,

जिंदगी के एक रोमांचक सफर की दहलीज़ पर तुम्हें आत्मविश्वास से भरी एक महिला के रूप में खड़े देखकर मुझे बहुत ही गर्व हो रहा है। मैं तुम्हें आगे के सालों में तरक्की और बुलंदियां छूते हुए देखना चाहती हूं।

इस पल को देखकर मुझे मेरा सफर याद आ गया और जिंदगी के सिखाए पाठ भी। जब मैं उन दिनों को याद करती हूं तो मुझे एहसास होता है कि ज्यादातर बातें मैंने अपने बचपन में ही सीख ली थी, खासतौर पर अपने माता-पिता के जरिए। बचपन में जो संस्कार उन्होंने मुझे दिए, वही मेरी मौजूदा जिंदगी को जीने के तरीके में नींव का काम कर रहे हैं। माता-पिता ने हम दो बहनों और भाई को हमेशा बराबरी से बड़ा किया। मेरे दादा-दादी हम तीनों को एक सीख देते थे - यह ध्यान देना जरूरी है कि हमें किस काम से संतुष्टि मिलती है और उसी को हासिल करने में हमें पूरी लगन से जुट जाना चाहिए। इस सीख ने हमें बहुत जल्द ही अपने फैसले लेने के लिए आत्मनिर्भर बना दिया था।

मैं सिर्फ 13 साल की थी जब अचानक दिल के दौरे से पिता की मृत्यु हो गई। एक ही दिन में सबकुछ बदल गया। तीनों बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी मां पर गई। तब हमें एहसास हुआ कि वह कितनी मजबूत हैं। उन्होंने टेक्सटाइल डिजाइनिंग का काम सीखा और छोटी सी कंपनी में नौकरी करने लगीं। परिवार को अकेले चलाना निश्चय ही उनके लिए मुश्किल रहा होगा, लेकिन उन्होंने हमें इस बात का कभी एहसास नहीं होने दिया। जब तक हम आत्मनिर्भर नहीं हो गए, वह मेहनत करती रहीं। मैं नहीं जानती थी कि मेरी मां को अपने आप पर इतना भरोसा है।

एक कामकाजी मां के लिए जरूरी है कि वह अपने काम का असर परिवार पर नहीं पड़ने दे। तुम्हें याद है जब मेरे एमडी और सीईओ बनाने की घोषणा हुई? तब तुम अमेरिका में पढ़ रही थी। तुमने मुझे मेल भेजा। लिखा था, 'तुमने कभी महसूस नहीं होने दिया कि तुम्हारा कैरियर इतना डिमांडिंग और तनाव से भरा है। घर पर तुम सिर्फ मां होती हो।' तुम भी अपनी जिंदगी इसी तरह जीना।

मैंने अपनी मां से सीखा था कि कठिन हालात से निपटना और आगे बढ़ना कितना जरूरी है। चुनौतियों से निपटकर और मजबूत बनो, उन्हें खुद पर हावी मत होने दो। मुझे याद है 2008 में कैसे वैश्विक संकट के बाद आईसीआईसीआई बैंक के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा था। तब मैंने बैंक में पैसे जमा करने वालों, निवेशकों, सरकार और रेगुलेटर्स सबसे बात की थी। उन्गें बताया कि बहुत कम पैसा संकट में फंसा है। स्टाफ से कहा कि अगर कोई डिपॉजिटर पैसे निकालने आए तो उससे नरमी से बात करें, उन्हें बिठाएं, पानी पिलाएं। उन्हें समझाएं कि आप जब चाहें पैसे निकाल सकते हैं, लेकिन बैंक संकट में नहीं है।

उन्हीं दिनों तुम्हारे भाई का स्क्वैश टूर्नामेंट था। मैं करीब दो घंटे के लिए वहां थी। बाद में पता चला कि मेरे वहां जाने से बैंक के प्रति ग्राहकों का भरोसा बढ़ा। टूर्नामेंट में आई कई महिलाओं ने मुझसे पूछा कि क्या मैं आईसीआईसीआई बैंक की चंदा कोचर हूं? मैंने कहा, हां। तब उन्हें लगा कि अगर इस संकट की घड़ी में भी मैं टूर्नामेंट के लिए समय निकाल सकती हूं तो इसका मतलब है कि बैंक सुरक्षित हाथों में है।

मैं ऑफिस के साथ मां और सास-ससुर को भी वक्त देती थी। बदले में उन्होंने भी प्यार और समर्थन दिया। याद रखना, संबंध महत्वपूर्ण होते हैं। उनका ख्याल रखना जरूरी है। किसी से वही व्यवहार करो जिसकी तुम  उनसेअपेक्षा करती हो। मेरे घर से बाहर रहने पर तुम्हारे पिता ने कभी शिकायत नहीं की वर्ना मेरा करियर आगे नहीं बढ़ता। हम दोनों अपने करियर में व्यस्त थे, फिर भी हमने अपने संबंधों का पूरा ख्याल रखा। मुझे विश्वास है कि जरूरत पड़ने पर तुम भी अपने जीवन साथी के साथ वैसा ही करोगी।

मुझे याद है जब तुम्हारी बोर्ड परीक्षाएं होने वाली थीं। मैंने छुट्‌टी ली ताकि तुम्हें परीक्षा हॉल तक ले जा सकूं। लेकिन तुमने कहा कि इतने सालों से तुम अकेले परीक्षा देने की आदी हो गई हो। यह सुनकर मुझे ठेस-सी लगी। फिर यह सोचकर सुकून मिला कि मेरे कामकाजी होने से तुम कम उम्र में आत्मनिर्भर हो गई हो। तुमने छोटे भाई की भी देखभाल की, उसे मेरी कमी महसूस नहीं होने दी। मैंने ऑफिस में भी इस बात को लागू किया है। युवाओं को बड़ी जिम्मेदारी देती हूं।

मैं भाग्य में विश्वास करती हूं लेकिन मेहनत भी जरूरी है। हर व्यक्ति अपनी किस्मत खुद लिखता है। अपनी किस्मत अपने हाथों में लो, जो हासिल करना चाहती हो उसका सपना देखो और उसे अपने हिसाब से लिखो। मैं चाहती हूं कि जिंदगी में आगे बढ़ते हुए तुम एक एक करके सफलता की सीढ़ी पर कदम रखो। आकाश की इच्छा रखो लेकिन उस ओर धीरे धीरे बढ़ो, अपने सफर के हर एक कदम का आनंद लो। यह छोटे छोटे कदम ही सफर को पूरा बनाते हैं।

याद रखना अच्छे और बुरे पल तुम्हारी जिंदगी में बराबरी से शामिल होंगे और तुम्हें दोनों का बराबरी से सामना करना आना चाहिए। जिंदगी में मिले हर एक अवसर का पूरा फायदा उठाओ और हर अवसर, हर चुनौती से कुछ न कुछ सीखो।

-तुम्हारी मां

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