नोटबंदी पर बैंकरों की व्यथा : झेल रहे हैं 'सड़े चमड़े जैसी बदबू', मिल रही धमकियां, लोग दे रहे गालियां

नोटबंदी पर बैंकरों की व्यथा : झेल रहे हैं 'सड़े चमड़े जैसी बदबू', मिल रही धमकियां, लोग दे रहे गालियां

खास बातें

  • फेसबुक पर एक पोस्ट में एक महिला बैंक मैनेजर ने परेशानियों का ज़िक्र किया
  • मैनेजर ने लिखा, सालों से दबा पैसा जमा हो रहा, जिसमें से दुर्गंध आ रही है
  • महिला मैनेजर के मुताबिक, लोग धमकियां और गालियां भी दे रहे हैं
नई दिल्ली:

सरकार द्वारा 500 तथा 1,000 रुपये के नोटों को बंद करने की अचानक की गई घोषणा के बाद से बैंकों तथा एटीएम के बाहर घंटों-घंटों लाइनों में खड़े रहकर पैसे जमा करवाने या निकालने वाले लोगों की तादाद में कोई कमी आती नहीं दिख रही है, और बहुत-से लोग तो लाइन में अपनी जगह बनाए रखने की खातिर रात-रातभर सड़क पर ही बैठे रहते हैं, ताकि बैंक के खुलते ही उनका नंबर आ जाए...

लेकिन क्या किसी ने भी उन लोगों के बारे में सोचा है, जो इस भीड़ से निपट रहे बैंकों के काउंटरों के उस पार बैठे लगातार काम कर रहे हैं, यहां तक कि उन्होंने शनिवार और रविवार को भी काम किया, वह भी काफी देर तक...

सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक पर 'ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे' पेज ने एक पोस्ट में उन लोगों की परेशानियों का ज़िक्र किया है, जो लगातार कई-कई घंटे अतिरिक्त घंटे बैठकर काम कर रहे हैं... इन लोगों को खाना खाने, और यहां तक कि 'सांस लेने की भी फुर्सत' नहीं मिल पा रही है...

मुंबई की एक बैंक के मैनेजर ने लिखा, "हमारे पास वह काला धन जमा करवाया जा रहा है, जो संभवतः कई-कई सालों से दबाकर (छिपाकर) रखा गया था, और उसमें से सड़े हुए चमड़े जैसी दुर्गंध इतनी ज़्यादा आ रही है कि हमारी हर शाखा में काम करने वाले कैशियरों के लिए मास्क का ऑर्डर किया गया है... सचमुच बदबू इतनी नाकाबिल-ए-बर्दाश्त है..."

ऐसे वक्त में उस परेशानी और तनाव को भी नहीं भूलना चाहिए, जो ग्राहकों के साथ जूझते हुए कैशियरों को झेलना पड़ता है, जो खुद भी भूखे-प्यासे लाइनों में लगे रहकर काउंटर तक पहुंच पा रहे हैं...

पोस्ट में कहा गया, "लोगों का व्यवहार बेहद अजीब है - वे हमारे साथ बुरी तरह पेश आ रहे हैं... सिर्फ चार घंटे पहले मुझे नांदेड़ से किसी व्यक्ति का फोन आया, जो मुझ पर लगातार चीखता-चिल्लाता रहा... वह चीखता रहा, मुझे दोष देता रहा, मराठी में गालियां भी देता रहा, और मैं बैठी-बैठी सोच रही थी कि मैं क्या कर सकती हूं, और इस तरह के दर्जनों फोन रोज़ाना आ रहे हैं..."

इसके अलावा उन लोगों का 'आक्रोश' भी बैंकरों को झेलना पड़ रहा है, जिन्हें मजबूर होकर अपना काला धन उजागर करना पड़ रहा है... पोस्ट में कहा गया, "धमकियां भी मिल रही है... हमें उन लोगों के फोन भी आ रहे हैं, जो राजनैतिक लोगों से जुड़े हुए हैं, और वे हमारी पोल खोलने के लिए 'मीडिया को हमारे पास भेजने की धमकियां' देते हैं, या हंगामा करने की धमकी भी, अगर हमने उनके पैसे को नहीं बदला..."

आइए, खुद ही पढ़कर देखिए, इस पोस्ट में और क्या-क्या लिखा है...
 

 
 

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