यह ख़बर 18 अक्टूबर, 2012 को प्रकाशित हुई थी

मां का साया नहीं, पिता दुधमुंही को लिए ढो रहा है सवारी

खास बातें

  • राजस्थान के भरतपुर में एक रिक्शा चालक पिछले कुछ दिनों से कपड़े में अपनी नवजात बेटी को एक हाथ में लिए और दूसरे से रिक्शे के हैंडल को पकड़े सवारी को उनकी मंजिल तक पहुंचाता दिखता है।
जयपुर:

राजस्थान के भरतपुर में एक रिक्शा चालक पिछले कुछ दिनों से कपड़े में अपनी नवजात बेटी को एक हाथ में लिए और दूसरे से रिक्शे के हैंडल को पकड़े सवारी को उनकी मंजिल तक पहुंचाता दिखता है।

अपनी एक माह की दुधमुंही बच्ची को इस तरह मौसम के थपेड़ों के बीच घूमने को मजबूर रिक्शाचालक का नाम बबलू है। दलित जाति से रिश्ता रखने वाले बबलू को उसकी जीवन संगिनी शांति बच्ची को पैदा करते ही चल बसी।

रोज कमाकर परिवार का पेट पालने वाले बबलू के लिए ज्यादा समय शोक मनाने के लिए भी नहीं बचा। और किसी तरह क्रिया क्रम करने के बाद अपने बूढ़े पिता का भार संभाल रहे बबलू को रिक्शे का हैंडल संभालना पड़ा।

घर में और किसी के न होने की वजह से बबलू को अपनी नन्ही परी को साथ लेकर ही घूमना पड़ता है। बबलू कहता है कि कभी-कभार वह बच्ची को अपने पिता के पास छोड़कर जाता है लेकिन बीच में बार-बार दूध पिलाने के लिए वापस भी आता है।

शांति की आखिरी निशानी को बड़े जतन से पालने की कोशिश भले ही बबलू कर रहा हो लेकिन पेट की भूख की वजह से बदलते मौसम की वजह से बच्ची पिछले दो दिनों से बीमार है और भरतपुर के सरकारी अस्पताल में भर्ती है।

आज भी बबलू अपनी शांति के आखिरी पलों को याद कर रो पड़ता है। बहते हुए आंसू के बीच उसकी कांपती हुई आवाज ने कहा, ''बच्ची के पैदा होने के बाद खून की कमी के कारण शांति की तबीयत बिगड़ी, डॉक्टर ने खून लाने के लिए कहा, मैं खून लेकर लौटा तो पता चला कि शांति की सांस हमेशा के लिए उखड़ गई, मेरी आँखों के आगे अँधेरा पसर गया।"

बबलू ने बताया कि करीब 15 वर्ष के दांपत्य जीवन के बाद उनके जीवन में पहली संतान के रूप में यह बच्ची तमाम खुशियां लेकर आई थी।

आर्थिक तंगी से जूझ रहे बबलू ने कहा कि वह एक किराए के कमरे में रहता है जहां पर उसे प्रतिमाह 500 रुपये देना होता है। इसके अलावा प्रतिदिन 30 रुपये रिक्शा का किराया भी देता है।

पिता की जिम्मेदारी भलिभांति समझते हुए बबलू कहता है, "कभी कभी किराये के कमरे पर पिता के साथ बेटी को छोड़ जाता हूं, बीच-बीच में उसे दूध पिलाने लौट आता हूं। ये शांति की अमानत है, इसलिए मेरी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।"

आज जब तमाम शहरों में बेटी के पैदा होने पर परिजनों के चेहरे मुरझा जाते हैं, लोग दुधमुंही बच्ची को लावारिस छोड़ कर भाग जाते हैं, ऐसे में गरीब बबलू का बेटी से लगाव एक उदाहरण पेश करता है।

बबलू का कहना है “शांति तो इस दुनिया में नहीं है, लेकिन मेरी हसरत है ये उसकी धरोहर फूले फले, मेरा सपना है उसे बेहतरीन तालीम मिले। हमारे लिए वो बेटे से भी बढ़ कर है।”

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समाज से उसे मदद मिलने के प्रश्न पर बबलू कहता है 'हमदर्दी के अल्फाज तो बहुत मिले, लेकिन उसे कोई मदद नहीं मिली। रिश्तेदारों ने भी कोई मदद नहीं की।