नई दिल्ली:
राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने गुरुवार को कहा कि यदि इंटरनेट होता तो वर्ष 1975 का आपातकाल नाकाम हो गया होता। जेटली ने यह बात उच्च सदन में इंटरनेट पर कुछ सरकारी नियमों को निरस्त करने के लिए लाए गए एक प्रस्ताव पर बहस के दौरान कही।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता पी. राजीव ने राज्यसभा में सुबह सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश) नियम-2011 को निरस्त करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया।
अप्रैल 2011 से लागू इन नियमों को मोटे तौर पर इंटरनेट सामग्री पर अप्रत्यक्ष सेंसरशिप के रूप में देखा गया है।
यह नियम अपेक्षा रखता है कि वे सभी मध्यवर्ती जो इंटरनेट, दूरसंचार, ई-मेल अथवा ब्लॉगिंग सेवाएं उपलब्ध कराते और साइबर कैफे चलाते हैं, उन्हें उन सामग्री को हटाना होगा, जो मोटे तौर पर नुकसानदायक, सतानेवाली, निंदात्मक, अश्लील, अपमानजनक, निजता भंग करने वाली, घृणित अथवा रंगभेद से सम्बंधित, जातीय तौर पर आपत्तिजनक, धन उगाहने अथवा जुआ खेलने को बढ़ावा देने वाली अथवा किसी भी रूप में अवैध हैं।
बहस में हिस्सा लेते हुए जेटली ने उल्लेख किया कि 1975 का आपातकाल नाकाम हो गया होता यदि उस समय इंटरनेट होता।
जेटली ने कहा, "उस समय यदि इंटरनेट अस्तित्व में होता तो आपातकाल असफल हो गया होता।"
भाजपा नेता ने कहा, "आप प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया को नियंत्रित कर सकते हैं लेकिन इंटरनेट को नहीं। इंटरनेट का प्रसार इतना व्यापक हो चुका होता कि दहशत समाप्त हो जाती।"
इंटरनेट के लिए सरकार द्वारा बनाए गए नियमों पर आपत्ति जताते हुए जेटली ने कहा कि निंदात्मक, अपमानजनक जैसे शब्दों का गलत इस्तेमाल हो सकता है।
उन्होंने कहा, "कोई व्यक्ति मेरी अथवा मेरी पार्टी की आलोचना कर सकता है, यह मेरे लिए निंदात्मक हो सकता है लेकिन क्या यह मुझे कहने का अधिकार है कि 'इंटरनेट पर रोक लगा दो'? इन शब्दों को जिस तरह गढ़ा गया है, उससे इनके भविष्य में गलत इस्तेमाल की आशंका है।"
जेटली ने कहा कि इंटरनेट की सामग्री व्यक्तिगत तौर पर अपमानजनक हो सकती है। भाजपा नेता ने मजाकिया लहजे में कहा, "सभी अपमानजनक सामग्री पर रोक लगा देने से हमारे पास एक बहुत ही उबाऊ इंटरनेट होगा।"
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता पी. राजीव ने राज्यसभा में सुबह सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश) नियम-2011 को निरस्त करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया।
अप्रैल 2011 से लागू इन नियमों को मोटे तौर पर इंटरनेट सामग्री पर अप्रत्यक्ष सेंसरशिप के रूप में देखा गया है।
यह नियम अपेक्षा रखता है कि वे सभी मध्यवर्ती जो इंटरनेट, दूरसंचार, ई-मेल अथवा ब्लॉगिंग सेवाएं उपलब्ध कराते और साइबर कैफे चलाते हैं, उन्हें उन सामग्री को हटाना होगा, जो मोटे तौर पर नुकसानदायक, सतानेवाली, निंदात्मक, अश्लील, अपमानजनक, निजता भंग करने वाली, घृणित अथवा रंगभेद से सम्बंधित, जातीय तौर पर आपत्तिजनक, धन उगाहने अथवा जुआ खेलने को बढ़ावा देने वाली अथवा किसी भी रूप में अवैध हैं।
बहस में हिस्सा लेते हुए जेटली ने उल्लेख किया कि 1975 का आपातकाल नाकाम हो गया होता यदि उस समय इंटरनेट होता।
जेटली ने कहा, "उस समय यदि इंटरनेट अस्तित्व में होता तो आपातकाल असफल हो गया होता।"
भाजपा नेता ने कहा, "आप प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया को नियंत्रित कर सकते हैं लेकिन इंटरनेट को नहीं। इंटरनेट का प्रसार इतना व्यापक हो चुका होता कि दहशत समाप्त हो जाती।"
इंटरनेट के लिए सरकार द्वारा बनाए गए नियमों पर आपत्ति जताते हुए जेटली ने कहा कि निंदात्मक, अपमानजनक जैसे शब्दों का गलत इस्तेमाल हो सकता है।
उन्होंने कहा, "कोई व्यक्ति मेरी अथवा मेरी पार्टी की आलोचना कर सकता है, यह मेरे लिए निंदात्मक हो सकता है लेकिन क्या यह मुझे कहने का अधिकार है कि 'इंटरनेट पर रोक लगा दो'? इन शब्दों को जिस तरह गढ़ा गया है, उससे इनके भविष्य में गलत इस्तेमाल की आशंका है।"
जेटली ने कहा कि इंटरनेट की सामग्री व्यक्तिगत तौर पर अपमानजनक हो सकती है। भाजपा नेता ने मजाकिया लहजे में कहा, "सभी अपमानजनक सामग्री पर रोक लगा देने से हमारे पास एक बहुत ही उबाऊ इंटरनेट होगा।"
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
Arun Jaitley On Emergency, Internet And Emergency, इमरजेंसी पर अरुण जेटली, इंटरनेट और इमरजेंसी पर अरुण जेटली