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This Article is From Aug 08, 2021

पति को खोने के बाद 87 साल की उम्र में कोरोना पीड़ितों को मुफ्त में भोजन खिला रही हैं दिल्ली की उषा, लोग कह रहे हैं- मां तुझे सलाम

कौन कहता है कि इस धरती पर ईश्वर नहीं हैं. बिल्कुल हैं, बस हमें आस-पास देखने की ज़रूरत है. दिल्ली की उषा गुप्ता एक मिसाल हैं. 87 साल की उम्र में ये कोरोना से परेशान और हताश लोगों को मुप्त में भोजन खिलाती हैं.

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पति को खोने के बाद 87 साल की उम्र में कोरोना पीड़ितों को मुफ्त में भोजन खिला रही हैं दिल्ली की उषा, लोग कह रहे हैं- मां तुझे सलाम
देखा जाए तो उषा के लिए ये सिर्फ व्यापार नहीं है, कई लोगों की उम्मीदें हैं.

कौन कहता है कि इस धरती पर ईश्वर नहीं हैं. बिल्कुल हैं, बस हमें आस-पास देखने की ज़रूरत है. दिल्ली की उषा गुप्ता (Usha Gupta) एक मिसाल हैं. 87 साल की उम्र में ये कोरोना से परेशान और हताश लोगों को मुफ्त (Free Food) में भोजन खिलाती हैं. अबतक उषा गुप्ता ने 65 हजा़र लोगों का पेट भर चुकी हैं. समाचार एजेंसी एएनआई (ANI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना वायरस संक्रमण (Corona Virus) के कारण उषा के पति का देहांत हो गया. करीब 1 महीने वो अपने पति के साथ थीं, मगर वो नहीं रहे. कोरोना संक्रमण से उषा भी संक्रमित थी, मगर वो ठीक हो गईं. 

पति के मौत के बाद वो निराश नहीं हुईं. अपनी नातिन की मदद से ज़रूरतमंद (Needy person) लोगों को भोजन मुहैया करवाने लगीं. अपने बचे हुए ज़िंदगी को वो मानव सेवा में समर्पित कर रही हैं. उषा गुप्ता के पति एक इंजीनियर थे. उनकी ड्यूटी यूपी में लगी थी. उषा की तीन बेटियां हैं, तीनों डॉक्टर हैं. ऐसे में उषा के लिए मानव सेवा करना बहुत ही आसान है.

लोगों को भोजन खिलाने के लिए उषा आचार बनाती हैं. आचार को बेचकर जो पैसे आते हैं, उन्हें वो भोजन के लिए इस्तेमाल करती हैं. इस उम्र में आचार बनाना किसी चुनौती से कम नहीं है, मगर उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया.

उषा ने अपने इस छोटे से बिजनेस का नाम रखा Pickled With Love, लोगों को प्यार वाला आचार खिलाती हैं. इस नेक काम में उनकी मदद उनकी नातिन करती हैं. उनकी नातिन मार्केटिंग और प्रचार का काम देखती हैं. अभी तक 200 से ज्यादा आचार की बोतल की बिक्री हो गई है. आचार को बेचने के लिए वो सोशल मीडिया और वॉट्सऐप का इस्तेमाल करती हैं. ऑर्डर मिलने पर वो डिलीवर करती हैं.

देखा जाए तो उषा के लिए ये सिर्फ व्यापार नहीं है, कई लोगों की उम्मीदें हैं. अपने नेक काम की मदद से गरीबों का पेट भरना कोई मामूली काम नहीं है. उषा की सोच को हम सलाम करते हैं.

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