
प्रतीकात्मक तस्वीर
वाशिंगटन:
अमेरिका के एक विश्वविद्यालय ने स्मार्टफोन से लिए जाने वाले सेल्फी और सेल्फ पोट्र्रेट पर अपने यहां नया पाठ्यक्रम ही शुरू कर दिया।
विश्वविद्यालय ने आधुनिक दुनिया में सेल्फी और सेल्फ पोट्र्रेट के सांस्कृतिक महत्व एवं आत्म-अभिव्यक्ति के विश्लेषण के लिए यह पाठ्यक्रम शुरू किया है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, साउदर्न कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में इसी वर्ष से यह पाठ्यक्रम शुरू कर दिया गया है और विषय का नाम रखा गया है 'राइटिंग 150 : राइटिंग एंड क्रिटिकल रीजनिंग : आइडेंटिटी एंड डाइवर्सिटी'।
पाठ्यक्रम के सहायक प्राध्यापक मार्क मैरिनो ने इस कोर्स का बचाव किया है। उन्होंने कहा, 'मेरे छात्र पढ़ेंगे कि हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं, जहां सेल्फी संचार का अहम हिस्सा बन चुका है। साथ ही इस पाठ्यक्रम में यह भी पढ़ाया जाएगा कि हमारी पहचान को किस तरह लिया जा रहा है, और इसमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम अपनी पहचान को कैसे पेश कर रहे हैं।'
पाठ्यक्रम के अनुसार, विद्यार्थियों को अपनी पांच तस्वीरें लेनी हैं और उनके बैकग्राउंड, कपड़े, हाव-भाव और तस्वीर में दिख रही दूसरी वस्तुओं का विश्लेषण करना है। विद्यार्थियों को अपनी सेल्फी का दूसरे विद्यार्थियों और जानी-मानी हस्तियों की सेल्फी से तुलना भी करनी है।
सेल्फी को आत्ममुग्ध अभिव्यक्ति की निशानी, जो खुद में डूबे समाज की छवि को पेश करता है, मानने वाली धारणा को खारिज करते हुए मारिनो कहते हैं कि यह हर काल में मौजूद रहा है।
विश्वविद्यालय ने आधुनिक दुनिया में सेल्फी और सेल्फ पोट्र्रेट के सांस्कृतिक महत्व एवं आत्म-अभिव्यक्ति के विश्लेषण के लिए यह पाठ्यक्रम शुरू किया है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, साउदर्न कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में इसी वर्ष से यह पाठ्यक्रम शुरू कर दिया गया है और विषय का नाम रखा गया है 'राइटिंग 150 : राइटिंग एंड क्रिटिकल रीजनिंग : आइडेंटिटी एंड डाइवर्सिटी'।
पाठ्यक्रम के सहायक प्राध्यापक मार्क मैरिनो ने इस कोर्स का बचाव किया है। उन्होंने कहा, 'मेरे छात्र पढ़ेंगे कि हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं, जहां सेल्फी संचार का अहम हिस्सा बन चुका है। साथ ही इस पाठ्यक्रम में यह भी पढ़ाया जाएगा कि हमारी पहचान को किस तरह लिया जा रहा है, और इसमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम अपनी पहचान को कैसे पेश कर रहे हैं।'
पाठ्यक्रम के अनुसार, विद्यार्थियों को अपनी पांच तस्वीरें लेनी हैं और उनके बैकग्राउंड, कपड़े, हाव-भाव और तस्वीर में दिख रही दूसरी वस्तुओं का विश्लेषण करना है। विद्यार्थियों को अपनी सेल्फी का दूसरे विद्यार्थियों और जानी-मानी हस्तियों की सेल्फी से तुलना भी करनी है।
सेल्फी को आत्ममुग्ध अभिव्यक्ति की निशानी, जो खुद में डूबे समाज की छवि को पेश करता है, मानने वाली धारणा को खारिज करते हुए मारिनो कहते हैं कि यह हर काल में मौजूद रहा है।
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