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This Article is From Dec 07, 2012

जरदारी अदालत की अवमानना से मुक्त : अदालत

इस्लामाबाद: पाकिस्तान के एक उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को अदालत की अवमानना मामले में दोषी करार देने में असमर्थता प्रकट की।

उच्च न्यायालय ने जरदारी के दो पदों पर आसीन रहने सम्बंधी एक मामले में अपने ही आदेश को धता बताते हुए कहा कि वह राष्ट्रपति होने के नाते आरोप से बरी होने के हकदार हैं।

समाचार पत्र डॉन के अनुसार, अदालत की अवमानना मामले से सम्बंधित याचिका की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को लाहौर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल ने कहा कि अदालत हालांकि अवमानना करने वाले किसी भी व्यक्ति को दोषी करार दे सकती है, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 248(2) के तहत राष्ट्रपति को आरोपमुक्त किए जाने का प्रावधान है।

लाहौर उच्च न्यायालय राष्ट्रपति जरदारी के खिलाफ अदालत की अवमानना सम्बंधी जिस याचिका की सुनवाई कर रहा था, उसमें कहा गया है कि इसी अदालत द्वारा पिछले वर्ष दिए गए फैसले के आलोक में उन्होंने राजनीतिक पद नहीं छोड़ा है।

याचिकाकर्ता के वकील एके डोगार ने कहा कि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय अदालत की अवमानना करने वाले को दोषी करार दे सकते हैं।

वकील ने राष्ट्रपति को आरोपमुक्त किए जाने की अवधारणा पर सवाल उठाया और पूछा कि अगर राष्ट्रपति किसी की हत्या कर दे तब उस स्थिति में क्या हो सकता है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि यदि राष्ट्रपति को दोषी करार नहीं दिया जाता है और अदालत की अवमानना करने की सजा उन्हें नहीं सुनाई जाती है तो इससे स्वतंत्र न्यायपालिका की अवधारणा को बट्टा लगेगा।

इस पर अदालत की खंडपीठ ने कहा कि राष्ट्र का प्रमुख हालांकि किसी व्यक्ति के प्रति उत्तरदायी नहीं है, फिर भी वह न्यायिक आदेशों का सम्मान और पालन करने के लिए बाध्य है।

पांच सितम्बर को खंडपीठ ने राष्ट्रपति जरदारी को एक नया नोटिस जारी कर जवाब तलब किया था। याचिका में दलील दी गई थी कि अदालत के आदेश की अवहेलना पर राष्ट्रपति के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए।

गौरतलब है कि जरदारी सत्तारूढ़ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के सह-अध्यक्ष हैं और उनके बेटे बिलावल भुट्टो जरदारी पार्टी के अध्यक्ष हैं।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि राष्ट्रपति जरदारी देश के सर्वोच्च पद पर रहते हुए राजनीतिक गतिविधियों में लिप्त हैं। कहा गया है कि दोहरे पद के खिलाफ लाहौर उच्च न्यायालय की पूर्णपीठ द्वारा दिए गए फैसले के बावजूद राष्ट्रपति ने खुद को न तो राजनीतिक पद से अलग किया है और न ही राष्ट्रपति भवन का 'दुरुपयोग' करना बंद किया है।

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