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क्या ब्रिटेन में भारतीय लोगों के गुस्से की वजह से हारे ऋषि सुनक, जानें हार की प्रमुख वजहें

ब्रिटेन में सुनक ऋषि की कंजर्वेटिव पार्टी की हार की सबसे बड़ी वजहों में से एक हाउसिंग की समस्या को भी बताया जा रहा है. कहा जा रहा है कि लेबर पार्टी ने इस समस्या को बेहतर तरीके से डील किया है और इस वजह से उन्हें इस चुनाव में जनता का समर्थन मिला है.

क्या ब्रिटेन में भारतीय लोगों के गुस्से की वजह से हारे ऋषि सुनक, जानें हार की प्रमुख वजहें
ब्रिटेन में लेबर पार्टी को मिलती दिख रही है बड़ी जीत
नई दिल्ली:

ब्रिटेन की जनता ने आम चुनाव को लेकर अपना फैसला सुना दिया है. इस चुनाव में लेबर पार्टी को बहुमत मिलता दिख रहा है. इस चुनाव में ऋषि सुनक की कंचर्वेटिव पार्टी को कड़ी शिकस्ता मिली है. लेबर पार्टी इस चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की तरफ बढ़ रही है. बताया जा रहा है कि लेबर पार्टी 400 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर सकते हैं. कंजर्वेटिव पार्टी बीते 14 साल से सत्ता में थी. 2019 में हुए आम चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी को 365 सीटें मिली थी, जबकि उस दौरान लेबर पार्टी को 202 सीटों पर जीत मिली थी. सत्ता से कजर्वेंटिव पार्टी के बाहर होने की कई अहम वजहें मानीं जा रही हैं. आज हम आपको बताने जा रहे हैं आखिर किन कारणों से ऋष सुनक की पार्टी को हार का सामन करना पड़ा है. 

ऋषि सुनक के 11 मंत्री  हार गए 

  • फॉरेन सेक्रेटरी डेविड कैमरन हारे
  • डिफेंस सेक्रटरी ग्रांट शाप्स भी हारे
  • एजुकेशन सेक्रेटरी गिलियन कीगान हारे 
  • ट्रांसपोर्ट सेक्रेटरी मार्क हार्पन
  • जस्टिस सेक्रेटरी ज़नी मरसर
     
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भारतीय मूल के लोगों की नाराजगी भी झेलनी पड़ी 

इस चुनाव में ऋषि सुनक की पार्टी को ब्रिटेन में रहने वाले भारतीयों का भी साथ नहीं मिला है. कहा जा रहा है कि सुनक की हार के पीछे की एक वजह भारतीय मूल के लोगों का गुस्सा भी है. आपको बता दें कि ब्रिटेन में मौजूदा समय में भारतीय मूल के 18 लाख के आसपास वोटर्स हैं. इनमें से 65 फीसदी लोग सुनक सरकार से नाराज चल रहे थे. सुनक के पीएम बनने के बाद इन भारतीय मूल के लोगों को एक उम्मीद जग गई थी, लेकिन सुनक उन उम्मीदों पर खड़े नहीं उतर सके. 


आर्थिक मोर्चे पर नाकाम रहे सुनक 

ऋषि सुनक ब्रिटेन की आर्थिक मोर्चे पर पुरी तरह से विफल रहे हैं. सुनक ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति को पहले से बेहतर नहीं कर पाए. साथ ही ऋषि सुनक ब्रिटेन में महंगाई कम करने में भी पूरी तरह से विफल रहे हैं. टैक्स में लगातार इजाफा हुआ. रहन-सहन के खर्च में बढ़ोतरी होती रही. इसके उल्ट लेबर पार्टी नए घर बनाने को लेकर हाउसिंग नीति लेकर आई. जिसे लोगों ने हाथों हाथ लिया है. 

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महंगाई भी कंट्रोल से बाहर हुई 

ऋषि सुनक जब पीएम बने तो उस दौरान सभी को उम्मीद थी कि वह सत्ता में आते ही सबसे पहले महंगाई को कंट्रोल करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इसके उलट चीजें और महंगी हुई और लोगों के खर्च में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई. इसके कारण सुनक सरकार के प्रति लोगों में गुस्सा दिखने लगा. 

टैक्स में भी लगातार इजाफा देखा गया

कंजर्वेटिव पार्टी के सत्ता में आने के बाद टैक्स में भी बढ़ोतरी देखने को मिली. सुनक सरकार ने कई तरह के टैक्स में बढ़ोतरी की थी जिनमें से एक था NRI टैक्स. इसे लेकर भी जनता में मौजूदा सरकार को लेकर विरोध बढ़ने लगा था. 

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Photo Credit: AFP

रहन-सहन खर्च में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है

2021 के अंत से ही यूके में कई आवश्यक चीजों की कीमतें लगातार बढ़ने लगी. इस वजह से वहां रहे रहे लोगों की आय के हिसाब से उनका खर्च बढ़ता गया. और इस तरह से ब्रिटेन में जीवन-यापन संकट उत्पन्न हो गया. चीजों की कीमतें बढ़ने की एक वजह कोविड -19 महामारी, यूक्रेन पर रूस के आक्रम और ब्रेक्जिट जैसे मुद्दों को माना जाता है. 

हाउसिंग की समस्या भी बड़ी समस्या बनकर उभरी

ब्रिटेन में हाउसिंग एक बड़ी समस्या के साथ-साथ इस चुनाव में एक बड़ा मुद्दा भी बना है. सुनक की पार्टी की जहां एक तरफ इस समस्या से निपटने विफल दिखी वहीं लेबर पार्टी ने इस मुद्दे को अपने चुनाव प्रचार के दौरान भुनाया है. लेबर पार्टी ने अपनी हाउसिंग स्कीम के तहत लाखों की संख्या में नए मकान बनाने का रोड मैप तैयार किया है.

अपराध को कंट्रोल नहीं कर पाए सुनक 

ब्रिटेन की ऋषि सुनक सरकार बीते कुछ वर्षों में अपराधिक घटनाओं को रोकने में उस तरह से सफल नहीं हुई, जैसा कि उन्होंने कहा था. बीते कुछ समय में ऐसे कई घटनाएं हुई हैं जिसने मौजूदा सरकार पर प्रश्न चिन्ह खड़े किए हैं. 

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अवैध प्रवासी समस्या बनी रही

ब्रिटेन में अवैध प्रवासी की समस्या भी बढ़ी है. हालिया सालों में बड़ी संख्या में आर्थिक प्रवासियों और शरण मांगने वालों ने नाव से इंग्लिश चैनल पार किया. आलोचकों का कहना है कि सरकार का अपनी ही सीमाओं पर नियंत्रण नहीं रहा है. 

ब्रिग्जिट समझौते से ब्रिटेन को ज्यादा फायदा नहीं हुआ 

ऐसा कहा जा रहा है कि ब्रिटेन को ब्रिग्जिट समझौते की वजह से जितना फायदा पहुंचना था, उन्हें उतना फायदा मिला नहीं. कहा जाता है कि 2016 में ब्रेग्जिट पर जनमत संग्रह के समय से कारोबार में निवेश भी स्थिर हो गया है. इससे ग्रोथ और कमजोर हो गई. जानकार बताते हैं यूरोपीय संघ छोड़ने के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है. 

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