पोप फ्रांसिस की 88 साल की उम्र में निधन
दुनिया भर में कैथोलिक चर्च के नेता पोप फ्रांसिस नहीं रहें. उन्होंने 88 साल की उम्र में आखिरी सांसें लीं. वेटिकन ने उनकी मौत की खबर की पुष्टि की है. पोप फ्रांसिस को पिछले दो सालों में कई बार खराब स्वास्थ्य का सामना करना पड़ा. उन्हें फेफड़ों में संक्रमण होने का खतरा था क्योंकि कम उम्र में उन्हें फुफ्फुस रोग (Pleurisy) हो गया था और इस वजह से उनके एक फेफड़े का हिस्सा हटा दिया गया था.
वैसे पोप फ्रांसिस का अमेरिकी महाद्वीप से आने वाले पहले पोप बनने की कहानी कम रोचक नहीं है.
ह्यूमैनिटी की पढ़ाई से प्रीस्टहुड और फिर पोप के पद तक का रास्ता
उन्होंने एक केमिकल टेक्नीशियन के रूप में अपना ग्रेजुएशन किया. फिर विला डेवोटो के डायोसेसन सेमिनरी में प्रवेश करते हुए पुरोहिती/ प्रीस्टहुड का रास्ता चुना. 11 मार्च 1958 को उन्होंने सोसाइटी ऑफ जीसस में प्रवेश किया. आगे उन्होंने चिली में मानविकी यानी ह्यूमैनिटी की पढ़ाई पूरी की. फिर वो 1963 में अर्जेंटीना लौट आए और सैन मिगुएल में कोलेजियो डी सैन जोस से दर्शनशास्त्र में ग्रेजुएशन किया. 1964 से 1965 तक उन्होंने सांता फे के इमैक्युलेट कॉन्सेप्शन कॉलेज में साहित्य और मनोविज्ञान पढ़ाया और 1966 में उन्होंने ब्यूनस आयर्स के कोलेजियो डेल साल्वाटोर में भी यही विषय पढ़ाया. 1967-70 तक उन्होंने धर्मशास्त्र का अध्ययन किया और सैन जोस के कोलेजियो से डिग्री ली.
13 दिसंबर 1969 को उन्हें आर्कबिशप रेमन जोस कैस्टेलानो ने पुजारी/ प्रीस्ट नियुक्त किया. उन्होंने 1970 और 1971 के बीच स्पेन की अल्काला डी हेनारेस युनिवर्सिटी में अपनी ट्रेनिंग जारी रखी. 20 मई 1992 को पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें औका का बिशप और ब्यूनस आयर्स का सहायक नियुक्त किया. 3 जून 1997 को, उन्हें ब्यूनस आयर्स के कोएडजुटर आर्कबिशप बनाया गया. नौ महीने भी नहीं बीते थे, जब कार्डिनल क्वारासिनो की मृत्यु के बाद, वह 28 फरवरी 1998 को आर्कबिशप बने.
NOTE: कार्डिनल दुनिया भर से आने वाले बिशप और वेटिकन के अधिकारी होते हैं, जिन्हें व्यक्तिगत रूप से पोप द्वारा चुना जाता है. यह अपने खास लाल कपड़ों से पहचाने जाते हैं. इन्हीं कार्डिनल्स के समूह को कॉलेज ऑफ कार्डिनल्स कहा जाता है.
फरवरी 2013 में पोप बेनेडिक्ट XVI ने बुढ़ापे और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का हवाला देते हुए पोप के पद से इस्तीफा दे दिया. अगले पोप के चुनाव के लिए उस साल मार्च की शुरुआत में एक सम्मेलन (कॉन्क्लेव) बुलाया गया था. कॉलेज ऑफ कार्डिनल्स की वोटिंग में पांचवें चरण की वोटिंग के बाद 13 मार्च बर्गोग्लियो को पोप के पद के लिए चुना गया. इसके बाद उन्होंने असीसी के सेंट फ्रांसिस के सम्मान में अपना नाम फ्रांसिस नाम चुना. उन्हें रोमन कैथोलिक चर्च का 266वां पोप माना जाता है.
उदार या रूढ़िवादी, पोप फ्रांसिस का क्या स्टैंड रहा?
पोप फ्रांसिस को कुछ लोग उदारवादी पोप के रूप में देखते हैं. उन्होंने कहा था कि चर्च को समलैंगिक लोगों से माफी मांगनी चाहिए. उन्होंने मुक्त बाजार आर्थिक नीतियों का विरोध किया है. लेकिन इसी समय उनके कई स्टैंड रूढ़िवादी करार दिए गए हैं.
2016 में रोमन कैथोलिक से जुड़े न्यूज वेबसाइट क्रुक्स के एडिटर जॉन एलन जूनियर ने लिखा कि फ्रांसिस भी स्पष्ट रूप से 'रूढ़िवादी' हैं. उन्होंने कहा कि पोप ने अभी तक "चर्च की शिक्षा के जुड़े उसके आधिकारिक संग्रह, कैटेचिज्म में एक कॉमा का भी बदलाव नहीं किया है. उन्होंने महिला पुजारियों (प्रीस्ट) को ना कहा है, समलैंगिक विवाह को ना कहा है, गर्भपात को अपराधों में से 'सबसे भयानक' बताया है और हर दूसरे विवादित मुद्दे पर खुद को चर्च का वफादार बेटा घोषित किया है."
पोप फ्रांसिस के देहांत के साथ अगले पोप के चुनाव के लिए प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. इसकी शुरुआत पोप का पद खाली होने के बाद, वेटिकन सिटी में कार्डिनल की एक के बाद एक बैठक से होगी.
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