ग्लासगो (Glasgow) में चल रहे COP26 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने कहा कि वैश्विक क्लाइमेट की बहस में एडैप्टेशन को उतना महत्व नहीं मिला है जितना मिटिगेशन (न्यूनीकरण) को मिला है. यह उन विकासशील देशों के साथ अन्याय है, जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हैं. भारत की तरह ही, अधिकांश विकासशील देशों के लिए क्लाइमेट चेंज कृषि क्षेत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है. फसल के पैटर्न में बदलाव, बेमौसम बारिश और बाढ़ या बार-बार आने वाली आंधी से फसलें नष्ट हो जाती हैं.
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उन्होंने भारत सरकार की परियोजनाओं जैसे सभी के लिए नल का पानी, स्वच्छ भारत मिशन और सभी के लिए स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन को गिनवाते हुए कहा कि इनसे देश के नागरिकों को न केवल एडैप्टेशन लाभ प्रदान किया है, बल्कि उनके जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार किया है. कई पारंपरिक समुदायों के पास प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने का ज्ञान है. इस तरह की पारंपरिक प्रथाओं को हमारी एडैप्टेशन नीतियों में उचित ध्यान देना चाहिए.
उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह ज्ञान हमारी युवा पीढ़ियों तक पहुंचे, हमें इसे अपने स्कूल पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में शामिल करना चाहिए. स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार जीवन शैली का संरक्षण एडैप्टेशन का एक महत्वपूर्ण स्तंभ हो सकता है.
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पीएम ने कहा कि भले ही अनुकूलन के तरीके स्थानीय हों, कमजोर देशों को प्रदान की जाने वाली सहायता वैश्विक होनी चाहिए, यानी स्थानीय अनुकूलन के लिए वैश्विक समर्थन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए कि भारत ने आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन के लिए पहल की थी. मैं सभी देशों को इससे जुड़ने के अनुरोध करता हूं.
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