इस्लामाबाद:
26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों में शामिल रहने के आरोपी सात संदिग्धों पर मुकदमे की प्रक्रिया को कमजोर करते हुए पाकिस्तान की एक अदालत ने कहा कि भारत जाने वाले न्यायिक आयोग की रिपोर्ट गैर-कानूनी है और उसे आरोपियों के खिलाफ सबूतों का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता।
रावलपिंडी की आतंकवाद निरोधी अदालत क्रमांक-1 के न्यायाधीश चौधरी हबीब-उर-रहमान ने एक आदेश में कहा कि मुंबई का दौरा करने वाले पाकिस्तानी न्यायिक आयोग की समस्त कार्यवाही और रिपोर्ट ‘गैरकानूनी’ है।
मामले के सात आरोपियों में शामिल लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर लखवी के वकील ख्वाजा हरीस अहमद ने कहा, न्यायाधीश ने आयोग की रिपोर्ट को गैरकानूनी बताया है और उसे मामले के लिहाज से रिकॉर्ड में शामिल नहीं किया जा सकता। अहमद ने कहा, अदालत को यह विचार करने का अधिकार है कि क्या आयोग की कार्यवाही और रिपोर्ट विधिवत रही और इस मामले में अदालत ने व्यवस्था दी है कि रिपोर्ट सही तरह से नहीं बनाई गई। रिपोर्ट को सबूतों में नहीं पढ़ा जाएगा। आरोपियों का बचाव कर रहे वकीलों ने पाकिस्तानी आयोग की रिपोर्ट पर विरोध जताते हुए कहा था कि उसका कोई कानूनी महत्व नहीं है क्योंकि आयोग को मुंबई यात्रा के दौरान गवाहों से जिरह नहीं करने दी गई।
आठ सदस्यीय आयोग ने मुंबई का दौरा किया था और एक न्यायाधीश और एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अलावा हमलों में शामिल आतंकवादियों तथा मारे गए लोगों की ऑटोप्सी करने वाले दो डॉक्टरों से बातचीत की थी। आयोग में अभियोजक और बचाव पक्ष के वकील शामिल थे। भारतीय अधिकारियों ने कहा था कि नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच एक सहमति के अनुरूप गवाहों से जिरह की इजाजत नहीं दी गई थी।
मुख्य अभियोजक चौधरी जुल्फिकार अली ने इससे पहले अदालत में कहा था कि एक और आयोग को यह सुनिश्चित करने के बाद भारत भेजा जा सकता है कि उसे गवाहों से जिरह करने दी जाएगी।
इस पर न्यायाधीश रहमान ने आज कहा कि अगर भारत और पाकिस्तान किसी नए करार पर पहुंच सकें जो गवाहों से जिरह की इजाजत देता हो तो अभियोजन पक्ष एक और आयोग को मुंबई भेजने के लिए आवेदन दाखिल कर सकता है। न्यायाधीश ने मामले में सुनवाई 21 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी।
सूत्रों का कहना है कि अदालत की इस व्यवस्था से मुंबई में हमलों की साजिश रचने और उन्हें अंजाम देने में शामिल सात संदिग्धों पर चल रहे मुकदमे पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
मामले में प्रक्रिया एक तरह से पिछले साल से ही रुकी हुई है। 2009 की शुरुआत से प्रक्रिया प्रारंभ होने से लेकर अब तक पांच न्यायाधीश बदले जा चुके हैं।
सूत्रों ने यह भी कहा कि आज के अदालत के फैसले से मुंबई हमलों की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग पाकिस्तान भेजने की भारत की योजनाओं पर भी असर पड़ सकता है।
मई में दोनों देशों के गृह सचिवों के बीच दो दिवसीय बातचीत के समापन में पाकिस्तान ने भारत से एक न्यायिक आयोग भेजे जाने पर सिद्धांतत: मंजूरी जताई थी।
रावलपिंडी की आतंकवाद निरोधी अदालत क्रमांक-1 के न्यायाधीश चौधरी हबीब-उर-रहमान ने एक आदेश में कहा कि मुंबई का दौरा करने वाले पाकिस्तानी न्यायिक आयोग की समस्त कार्यवाही और रिपोर्ट ‘गैरकानूनी’ है।
मामले के सात आरोपियों में शामिल लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर लखवी के वकील ख्वाजा हरीस अहमद ने कहा, न्यायाधीश ने आयोग की रिपोर्ट को गैरकानूनी बताया है और उसे मामले के लिहाज से रिकॉर्ड में शामिल नहीं किया जा सकता। अहमद ने कहा, अदालत को यह विचार करने का अधिकार है कि क्या आयोग की कार्यवाही और रिपोर्ट विधिवत रही और इस मामले में अदालत ने व्यवस्था दी है कि रिपोर्ट सही तरह से नहीं बनाई गई। रिपोर्ट को सबूतों में नहीं पढ़ा जाएगा। आरोपियों का बचाव कर रहे वकीलों ने पाकिस्तानी आयोग की रिपोर्ट पर विरोध जताते हुए कहा था कि उसका कोई कानूनी महत्व नहीं है क्योंकि आयोग को मुंबई यात्रा के दौरान गवाहों से जिरह नहीं करने दी गई।
आठ सदस्यीय आयोग ने मुंबई का दौरा किया था और एक न्यायाधीश और एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अलावा हमलों में शामिल आतंकवादियों तथा मारे गए लोगों की ऑटोप्सी करने वाले दो डॉक्टरों से बातचीत की थी। आयोग में अभियोजक और बचाव पक्ष के वकील शामिल थे। भारतीय अधिकारियों ने कहा था कि नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच एक सहमति के अनुरूप गवाहों से जिरह की इजाजत नहीं दी गई थी।
मुख्य अभियोजक चौधरी जुल्फिकार अली ने इससे पहले अदालत में कहा था कि एक और आयोग को यह सुनिश्चित करने के बाद भारत भेजा जा सकता है कि उसे गवाहों से जिरह करने दी जाएगी।
इस पर न्यायाधीश रहमान ने आज कहा कि अगर भारत और पाकिस्तान किसी नए करार पर पहुंच सकें जो गवाहों से जिरह की इजाजत देता हो तो अभियोजन पक्ष एक और आयोग को मुंबई भेजने के लिए आवेदन दाखिल कर सकता है। न्यायाधीश ने मामले में सुनवाई 21 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी।
सूत्रों का कहना है कि अदालत की इस व्यवस्था से मुंबई में हमलों की साजिश रचने और उन्हें अंजाम देने में शामिल सात संदिग्धों पर चल रहे मुकदमे पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
मामले में प्रक्रिया एक तरह से पिछले साल से ही रुकी हुई है। 2009 की शुरुआत से प्रक्रिया प्रारंभ होने से लेकर अब तक पांच न्यायाधीश बदले जा चुके हैं।
सूत्रों ने यह भी कहा कि आज के अदालत के फैसले से मुंबई हमलों की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग पाकिस्तान भेजने की भारत की योजनाओं पर भी असर पड़ सकता है।
मई में दोनों देशों के गृह सचिवों के बीच दो दिवसीय बातचीत के समापन में पाकिस्तान ने भारत से एक न्यायिक आयोग भेजे जाने पर सिद्धांतत: मंजूरी जताई थी।
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