
- अरबईन यात्रा इराक के नजफ से करबला तक पैदल लगभग अस्सी से नब्बे किलोमीटर की दूरी तय करती है.
- करबला में लाखों तीर्थयात्रियों के लिए मुफ्त पानी, भोजन, ठहरने और मेडिकल सेवाएं स्थानीय लोग प्रदान करते हैं.
- इस विशाल धार्मिक आयोजन को लगभग बाईस हज़ार स्वयंसेवक बिना पुलिस या सेना के सफलता से संचालित करते हैं.
दुनियाभर से लोग नजफ से करबला तक पैदल यात्रा शुरू करते हैं. इराक के अन्य शहरों जैसे बसरा या अन्य क्षेत्रों से भी लोग अपने घरों से निकलकर करबला की ओर कूच करते हैं. जब भी कहीं बड़े आयोजन होते हैं, भीड़ बढ़ने पर उस जगह में चीजें महंगी हो जाती हैं. पानी, खाना, और रहने की व्यवस्था की कीमतें बढ़ जाती हैं, लेकिन करबला में जो नजारा दिखा, वह अनोखा था. यहां लोग मुफ्त में पानी, जूस, और भोजन बांट रहे थे. यहां तक कि स्थानीय लोगों ने अपने घरों के दरवाजे खोल दिए, जहां मेहमानों के लिए एसी में आरामदायक ठहरने की व्यवस्था थी. भोजन ऐसा परोसा गया कि लगे की जैसे हम किसी होटल में खाना खा रहे हों. जिससे हर कोई संतुष्ट और खुश रहा. कोई पानी बांटता नज़र आएगा, तो कोई चाय. तो कोई खाना. छोटे-छोटे बच्चे टिश्यू पेपर दे रहे थे. कोई आपको इत्र भी लगा सकता है. वहीं आपको थकान ना हो उसके लिए आपकी मसाज की जाएगी. मेडिकल सेवाएं कदम-कदम पर फ्री दी जाती हैं.
करबला: जहां मिसाल कायम होती है

करबला पहुंचने पर लाखों लोग एक ही स्थान पर एकत्रित होते हैं. इमाम हुसैन के श्राइन पर लोग ज़ियारत करते हैं, दर्शन करते हैं, और ज़री को चूमते हैं. सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इतनी विशाल भीड़ में कोई परेशानी नहीं होती. ना भगदड़, ना कोई हादसा. व्यवस्थाएं इतनी शानदार हैं कि इन्हें न तो पुलिस संभालती है और न ही सेना. केवल 21-22 हज़ार वॉलेंटियर श्राइन में भीड़ को संभालते हैं. जो बिल्कुल सामान्य लोग हैं, और इस विशाल आयोजन को संभालते हैं. यह सोचकर ही आश्चर्य होता है कि 2.1 करोड़ लोगों की भीड़ को इतने कम लोग कैसे संभाल लेते हैं, बिना किसी परेशानी के.
इमाम हुसैन की याद में
अरबईन यात्रा, जिसे अरबईन वॉक या चेहल्लुम के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक तीर्थयात्राओं में से एक है. यह यात्रा इराक के पवित्र शहर नजफ से कर्बला तक की जाती है, जो लगभग 80-90 किलोमीटर की दूरी तय करती है. यह यात्रा इस्लाम के इतिहास में कर्बला की जंग (680 ईस्वी) में शहीद हुए पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की याद में आयोजित की जाती है. 2025 में भी यह यात्रा अपने पूरे रूहानी जोश और आध्यात्मिक महत्व के साथ संपन्न हुई.
अरबईन यात्रा का महत्व

अरबईन, अरबी शब्द है जिसका अर्थ है "चालीस". यह यात्रा इस्लामी कैलेंडर के मुहर्रम महीने की 10 तारीख को इमाम हुसैन की शहादत के 40वें दिन मनाई जाती है. इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान में अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लड़ते हुए अपनी जान दी थी. उनकी कुर्बानी को याद करने के लिए दुनिया भर से लाखों-करोड़ों लोग इस यात्रा में शामिल होते हैं. यह यात्रा न केवल शिया मुसलमानों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि सुन्नी, हिंदू, ईसाई और अन्य धर्मों के लोग भी इसमें शामिल होकर इंसानियत और एकता का संदेश देते हैं.
2025 में अरबईन यात्रा
2025 में अरबईन यात्रा ने एक बार फिर रिकॉर्ड बनाया. इस साल करबला में 2 करोड़ 11 लाख से अधिक ज़ायरीन (तीर्थयात्री) शामिल हुए, जो हज यात्रा से भी अधिक है. यह आंकड़ा दर्शाता है कि यह यात्रा न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी एक विशाल आयोजन है. दुनिया के 105 से अधिक देशों से लोग इस यात्रा में शामिल हुए, जिसमें ईरान, भारत, पाकिस्तान, लेबनान, अफ्रीका और यूरोप के तीर्थयात्री प्रमुख थे.
यात्रा का स्वरूप और विशेषताएं

- पैदल यात्रा: नजफ के हजरत अली मस्जिद से शुरू होकर कर्बला में इमाम हुसैन के रौज़े तक यह यात्रा पैदल तय की जाती है. यह दूरी 80-90 किलोमीटर की है, जिसे ज़ायरीन 2-3 दिनों में पूरा करते हैं.
- मोकिब (शिविर): यात्रा के दौरान रास्ते में मोकिब लगाए जाते हैं, जहां तीर्थयात्रियों को मुफ्त में खाना, पानी, दवाइयां और विश्राम की सुविधा दी जाती है. ये शिविर स्थानीय लोग और विभिन्न देशों से आए स्वयंसेवक चलाते हैं. भारत और पाकिस्तान के लोग भी इन शिविरों में सेवा करते हैं.
- सुरक्षा और एकता: इतनी बड़ी भीड़ होने के बावजूद, इस यात्रा में चोरी, दंगा या बदसलूकी की कोई घटना नहीं होती. यह इसकी सबसे बड़ी खासियत है, जो इसे इंसानियत की मिसाल बनाती है.
आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश
अरबईन यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एकता, प्रेम, त्याग और अत्याचार के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है. इस यात्रा में शामिल विद्वानों का कहना है कि यह इमाम हुसैन के संदेश को जीवित रखता है, जो सत्य और न्याय के लिए खड़े होने की प्रेरणा देता है. 2025 में इस यात्रा के दौरान गाजा और फलस्तीन के हालात पर भी चर्चा हुई, जहां ज़ायरीनों ने उत्पीड़ितों के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद की.
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