
- बांग्लादेश, नेपाल और ब्रिटेन में हाल के विरोध प्रदर्शनों ने सरकारों को बदलने की मांग को प्रमुखता दी है.
- लंदन में सितंबर में यूनाइट द किंगडम रैली में एक लाख से अधिक लोग शामिल होकर सरकार विरोधी प्रदर्शन किए.
- नेपाल में Gen-Z युवाओं के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन के कारण केपी शर्मा ओली की सरकार का तख्तापलट हुआ.
बांग्लादेश, नेपाल और अब यूके, हालात एक जैसे नजर आ रहे हैं. सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में लोग उतरे और हिंसा हुई. मकसद, सरकार को बदलना. बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार को प्रदर्शनकारियों ने उखाड़ फेंका. नेपाल (Nepal Protest) में भी पिछले दिनों केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) की सरकार का तख्तापलट हो गया. अब लंदन (London Protest) की सड़कों पर प्रदर्शन हो रहा है. ये प्रदर्शनकारी सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे हैं और सरकार बदलने की मांग कर रहे हैं. सेंट्रल लंदन में 13 सितंबर को ब्रिटेन के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसमें एक लाख से ज्यादा लोग लंदन की सड़कों पर 'यूनाइट द किंगडम' रैली के लिए एकजुट हुए. इस दौरान हिंसा में कुछ पुलिसकर्मी घायल भी हुए हैं.
ब्रिटेन में क्यों हो रहा विरोध प्रदर्शन?
लंदन की सड़कों पर जब हजारों लोग हाथों में झंडे और सरकार विरोधी नारे लगाते हुए नजर आए, तो नेपाल में हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शन की यादें ताजा हो गईं. ऐसा विरोध प्रदर्शन ब्रिटेन के इतिहास में पहली बार देखने को मिला है. लंदन की सड़कों पर लोग "यूनाइट द किंगडम" रैली के लिए एकजुट हुए थे. प्रदर्शनकारियों की भीड़ से सड़कें पट गईं. इस विरोध प्रदर्शन को जाने-माने कार्यकर्ता टॉमी रॉबिन्सन ने लीड किया. ये विरोध प्रदर्शन वे लोग शामिल हुए, जो खुद को सरकार द्वारा उपेक्षित महसूस कर रहे थे. यह रैली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सरकार के प्रति निराशा, खासकर आव्रजन और सेंसरशिप जैसे मुद्दों को लेकर आयोजित की गई थी. पुलिस के मुताबिक, लंदन की रैली के दौरान प्रदर्शनकारियों ने कई पुलिस अधिकारियों पर भी हमला किया. हालांकि, उन्हें ज्यादा गंभीर चोटें नहीं आई हैं. यह रैली 'स्टैंड अप टू रेसिज्म' के विरोध प्रदर्शन के साथ शुरू हुई, जिसमें 5 हजार के करीब लोग शामिल हुए. इस दौरान हिंसक झड़पों को रोकने के लिए पुलिस को दिन भर काफी मशक्कत करनी पड़ी.

PM कीर स्टार्मर के खिलाफ नारेबाजी
लंदन में हुए विरोध प्रदर्शन में लोगों ने सरकार के विरोध में नारे लगाए और प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर को 'घर जाने' यानि कुर्सी छोड़ने को कहा. नेपाल और बांग्लादेश में भी हमें यही देखने को मिला था. लंदन में टॉमी रॉबिन्सन के नेतृत्व में ये विरोध मार्च ब्रिटेन में प्रवासियों के होटल के बाहर से शुरू हुआ. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने यूनियर जैक और रेड-व्हाइट सेंट और जॉर्ज क्रॉस झंडे लहराए. रैली में कई लोग अमेरिकी और इजराली झंडे लहराते भी दिखे. इस दौरान रैली में शामिल लोगों ने ब्रिटेन के पीएम कीर स्टार्मर के खिलाफ नारेबाजी भी की और उनके खिलाफ 'घर भेजो' वाले पोस्टर भी दिखाए.
नेपाल में तख्तापलट की वजह बने Gen-Z
काठमांडू की सड़कों पर जब हजारों Gen-Z (1997 से 2012 में जन्मे लोग) हाथों में झंडे और पोस्टर लेकर उतरे, तो सरकार की नींव हिल गई. तीन के विरोध प्रदर्शन ने केपी ओली शर्मा की सरकार को उखाड़ कर फेंक दिया. इस दौरान युवाओं ने संसद से लेकर नेताओं के घरों तक का फूंक दिया. ऐसा लगा कि युवा पूरा देश जलाकर राख कर देंगे. इस दौरान केपी शर्मा के इस्तीफा देने के बाद स्थिति कुछ नियंत्रण में आई. देश में एक सप्ताह तक हिंसक विरोध प्रदर्शन होने और इसके चलते के. पी. शर्मा ओली के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद कार्की (73) देश की पहली महिला प्रधानमंत्री नियुक्त हुई. ओली ने मंगलवार को सैकड़ों प्रदर्शनकारियों के उनके कार्यालय में घुसकर उनके इस्तीफे की मांग के तुरंत बाद इस्तीफा दे दिया था. देशव्यापी प्रदर्शन में 50 से अधिक लोगों की जान चली गई.

नेपाल से पहले बांग्लादेश में भी यही हुआ...
नेपाल से पहले बांग्लादेश में भी लोगों के विरोध प्रदर्शन ने मौजूदा सरकार को उखाड़ फेंका था. अगस्त 2024 में ढाका में सबसे पहले युवा, मुख्य रूप से छात्र, विवादास्पद सरकारी नौकरी कोटा प्रणाली का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरे थे, जो जल्द ही राष्ट्रव्यापी विरोध में बदल गया. अधिकारियों ने इस विरोध का कठोरता से दमन किया. शेख हसीना सरकार के पतन के बाद अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस का चयन विद्रोह का नेतृत्व कर रहे छात्रों द्वारा किया गया था. उसमें सेना सक्रिय रूप से मध्यस्थता कर रही थी. श्रीलंका में मार्च से जुलाई 2022 तक जन-आंदोलन के परिणामस्वरूप अंततः गोटाबाया राजपक्षे शासन को सत्ता से बेदखल होना पड़ा. राजपक्षे सरकार के खिलाफ आंदोलन श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन को लेकर हुआ, जिसके कारण गंभीर मुद्रास्फीति और ईंधन, घरेलू गैस और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कमी से जुड़ा आर्थिक संकट पैदा हो गया.

किस ओर इशारा कर रहीं ये घटनाएं?
नेपाल, बांग्लादेश और अब ब्रिटेन में सरकार विरोधी प्रदर्शन तेजी से उभरे हैं, जिनमें आम जनता, खासकर युवा, सड़कों पर उतरकर सत्ता के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. बांग्लादेश में छात्रों ने कोटा प्रणाली के खिलाफ आंदोलन किया, जिससे शेख हसीना सरकार गिर गई. नेपाल में Gen-Z के नेतृत्व में केपी शर्मा ओली की सरकार का तख्तापलट हुआ_ वहीं, ब्रिटेन में टॉमी रॉबिन्सन की अगुवाई में "यूनाइट द किंगडम" रैली में हजारों लोगों ने कीर स्टार्मर सरकार की नीतियों, खासकर आव्रजन और सेंसरशिप, का विरोध किया. इन प्रदर्शनों में हिंसा भी हुई और पुलिस पर हमले हुए. यह घटनाएं संकेत देती हैं कि वैश्विक स्तर पर लोग अब चुप नहीं बैठ रहे और जब सरकारें जनभावनाओं की अनदेखी करती हैं, तो जनता सड़कों पर उतरकर बदलाव की मांग करती है. सोशल मीडिया ने इन आंदोलनों को और अधिक ताकत दी है.
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