अमेरिका के पिछले तीन राष्ट्रपतियों- जॉर्ज बुश, बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सीट को लेकर खुलेआम समर्थन दिया है, लेकिन नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन की ओर से अभी इसपर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई है. जो बाइडेन ने यूनाइटेड नेशंस में अमेरिकी राजदूत के पद पर जिन लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड को नामित किया है, उन्होंने बुधवार को इस संबंध में सवाल पूछे जाने पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी.
थॉमस-ग्रीनफील्ड से ऑरेगन से अमेरिकी सांसद जेफ मर्कले ने सवाल पूछा कि क्या वो मानती हैं कि संंयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत, जर्मनी और जापान को स्थायी सदस्य बनाया जाना चाहिए? इस पर लिंडा ने कहा कि 'मुझे लगता है कि इन देशों को परिषद में स्थायी सदस्य बनाने को लेकर चर्चाएं हुई हैं और इस संबंध में मजबूती से पक्ष रखे गए हैं.' हालांकि, उन्होंने आगे कहा कि 'लेकिन मैं यह भी जानती हूं कि इस क्षेत्र के कुछ ऐसे देश भी हैं, जो अपने प्रतिनिधित्व का दावा कर रहे हैं, इस पर भी चर्चा हो रही है.'
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बता दें कि उनका इशारा Coffee Club या United for Consensus संस्था की ओर था, जिसमें इटली, पाकिस्तान, मैक्सिको और मिश्र जैसे देश भी शामिल हैं. ये देश भारत, जर्मनी और ब्राज़ील की स्थायी सदस्यतता का विरोध करते हैं. भारत इस साल जनवरी से सुरक्षा परिषद का फिर से अस्थायी सदस्य बना है. यह अस्थायी सदस्यतता अगले दो सालों तक रहेगी.
राष्ट्रपति बाइडेन ने पिछले साल अपने कैंपेन पॉलिसी डॉक्यूमेंट में इस वादे को दोहराया कि वो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यतता का समर्थन करेंगे. हालांकि, विदेशी सेवा में पिछले 35 सालों से रह चुकी लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने यूएन की अमेरिकी राजदूत के पद पर अपने नॉमिनेशन पर सुनवाई के दौरान सीनेट फॉरेन रिलेशंस कमिटी के सामने सांसदों से कहा कि इस संबंध में चर्चा हो रही है.
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