वाशिंगटन:
भारतीय मूल के अमेरिकी मुस्लिमों ने राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) और जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक स्वरूप को बरकरार रखने की अपील करते हुए कहा है कि संस्थानों के दर्जे पर सवाल उठाना 'भेदभावपूर्ण' है।
वाशिंगटन डीसी के एसोसिएशन ऑफ इंडियन मुस्लिम्स ऑफ अमेरिका (एआईएम) के कार्यकारी निदेशक कलीम ख्वाजा ने कहा, ''सच्चर समिति की रिपोर्ट के अनुसार, आजादी के बाद से भारत में मुस्लिमों का शैक्षणिक पिछड़ापन बढ़ा है, वहीं एएमयू और जामिया ने मुस्लिम समुदाय में उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भारी योगदान दिया है...''
उन्होंने कहा कि सरकार के कानून मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने हाल ही में ''सुप्रीम कोर्ट में दायर एएमयू की अपील का विरोध करने के लिए वर्ष 2006 में केंद्र सरकार की ओर से एएमयू को दिए गए समर्थन को उलटने का जो कदम उठाया है, वह भेदभावपूर्ण है और मुस्लिमों के विरोध में पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर उठाया गया कदम है...'' बयान में कहा गया, ''भारतीय-अमेरिकी मुस्लिम बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार के इस कदम पर कड़ी आपत्ति जताते हैं...'' बयान में यह भी कहा गया कि यह कदम अल्पसंख्यक मुस्लिमों को एक ऐसे समय पर शैक्षणिक पिछड़ेपन की गर्त में धकेल देगा, जबकि वे पहले ही पिछड़े हुए हैं।
एसोसिएशन ने बयान में आगे कहा, ''हम भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से अपील करते हैं कि वे कानून मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से एएमयू और जामिया के खिलाफ उठाए गए इन भेदभावपूर्ण कार्यों को रोकने के लिए त्वरित कदम उठाएं, कथित कार्रवाई को निरस्त करें और दोनों मुस्लिम विश्वविद्यालयों की न्याय की तलाश में उनका सहयोग करें...''
एएमयू के अल्पसंख्यक स्वरूप की बहाली का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है। इस मामले की सुनवाई के दौरान 11 जनवरी को अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अदालत को बताया था कि एनडीए सरकार एक धर्मनिरपेक्ष देश में सरकारी आर्थिक मदद से अल्पसंख्यक संस्थान चलाने के विचार का समर्थन नहीं करती। इस बात पर विवाद पैदा हो गया था।
इसके कुछ समय बाद अटॉर्नी जनरल ने सरकार को बताया कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है, क्योंकि इसका गठन संसद के कानून के तहत हुआ है।
वाशिंगटन डीसी के एसोसिएशन ऑफ इंडियन मुस्लिम्स ऑफ अमेरिका (एआईएम) के कार्यकारी निदेशक कलीम ख्वाजा ने कहा, ''सच्चर समिति की रिपोर्ट के अनुसार, आजादी के बाद से भारत में मुस्लिमों का शैक्षणिक पिछड़ापन बढ़ा है, वहीं एएमयू और जामिया ने मुस्लिम समुदाय में उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भारी योगदान दिया है...''
उन्होंने कहा कि सरकार के कानून मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने हाल ही में ''सुप्रीम कोर्ट में दायर एएमयू की अपील का विरोध करने के लिए वर्ष 2006 में केंद्र सरकार की ओर से एएमयू को दिए गए समर्थन को उलटने का जो कदम उठाया है, वह भेदभावपूर्ण है और मुस्लिमों के विरोध में पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर उठाया गया कदम है...'' बयान में कहा गया, ''भारतीय-अमेरिकी मुस्लिम बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार के इस कदम पर कड़ी आपत्ति जताते हैं...'' बयान में यह भी कहा गया कि यह कदम अल्पसंख्यक मुस्लिमों को एक ऐसे समय पर शैक्षणिक पिछड़ेपन की गर्त में धकेल देगा, जबकि वे पहले ही पिछड़े हुए हैं।
एसोसिएशन ने बयान में आगे कहा, ''हम भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से अपील करते हैं कि वे कानून मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से एएमयू और जामिया के खिलाफ उठाए गए इन भेदभावपूर्ण कार्यों को रोकने के लिए त्वरित कदम उठाएं, कथित कार्रवाई को निरस्त करें और दोनों मुस्लिम विश्वविद्यालयों की न्याय की तलाश में उनका सहयोग करें...''
एएमयू के अल्पसंख्यक स्वरूप की बहाली का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है। इस मामले की सुनवाई के दौरान 11 जनवरी को अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अदालत को बताया था कि एनडीए सरकार एक धर्मनिरपेक्ष देश में सरकारी आर्थिक मदद से अल्पसंख्यक संस्थान चलाने के विचार का समर्थन नहीं करती। इस बात पर विवाद पैदा हो गया था।
इसके कुछ समय बाद अटॉर्नी जनरल ने सरकार को बताया कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है, क्योंकि इसका गठन संसद के कानून के तहत हुआ है।
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