
भारत और कनाडा एक बार फिर अपने रिश्तों को पटरी पर लाने की कोशिश में लगे हैं, दोनों पक्ष तनावपूर्ण संबंधों को आसान बनाना चाहते हैं. भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कनाडा की विदेश मंत्री अनिता आनंद के साथ फोन पर बात की है. रविवार देर रात हुई यह टेलीफोन कॉल, मार्च में मार्क कार्नी के कनाडाई प्रधान मंत्री बनने के बाद से ओटावा और नई दिल्ली के बीच सबसे बड़ा राजनयिक संपर्क है.
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि उन्होंने नवनियुक्त विदेश मंत्री अनीता आनंद के साथ "भारत-कनाडा संबंधों की संभावनाओं पर चर्चा की" और उन्होंने "उनके बहुत सफल कार्यकाल की कामना की". वहीं अनिता आनंद, जिनके माता-पिता भारत से थे, ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा कि वह कनाडा-भारत संबंधों को मजबूत करने, आर्थिक सहयोग को गहरा करने और साझा प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए तत्पर हैं.
कनाडा भारत के बाहर सिख समुदाय का सबसे बड़ा घर है. वहां "खालिस्तान" समर्थक भी हैं. यह एक अलगाववादी आंदोलन है जो भारतीय क्षेत्र से अलग धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए एक स्वतंत्र राज्य की मांग कर रहा है.
भारत-कनाडा के रिश्तों में निज्जर वाली खटाई
ओटावा ने भारत पर साल 2023 में वैंकूवर में 45 वर्षीय कनाडा के नागरिक और खालिस्तान प्रचारक हरदीप सिंह निज्जर साजिश रचकर हत्या करने और आंदोलन से जुड़े अन्य सिख कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने का आरोप लगाया था. भारत ने बार-बार उन आरोपों को सिरे से खारिज किया है. इस आरोप से दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध खराब हो गए, पिछले साल दोनों देशों ने कई शीर्ष राजनयिकों को अपने यहां से निकाल दिया था.
खालिस्तान कैंपेन भारत की 1947 की आजादी के समय से चला आ रहा है और यह एक प्रधान मंत्री की हत्या और एक यात्री जेट पर बमबारी के लिए दोषी ठहराया गया है. यह भारत और उन कई पश्चिमी देशों के बीच एक कड़वा मुद्दा रहा है जहां सिख समुदाय की बड़ी आबादी है. नई दिल्ली खालिस्तान आंदोलन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करती है. यह भारत में पूरी तरह प्रतिबंधित है और उसके प्रमुख नेताओं पर "आतंकवाद" का आरोप है.
खास बात है कि कनाडा अगले महीने G7 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा. भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी लगातार 2019 में हर साल इस शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं. लेकिन इस बार इसकी कोई जानकारी नहीं है कि मोदी को कनाडा में आमंत्रित किया गया है या नहीं.
कनाडा के साथ अच्छे रिश्ते क्यों जरूरी
ट्रूडो की जगह मार्की कार्नी के कनाडा सरकार में आने से भारत को उम्मीद है कि कनाडा की विदेश नीति पर चरमपंथी सिख तत्वों का प्रभाव कम हो जाएगा. ट्रूडो का पिछला कार्यकाल खालिस्तान समर्थक नेता जगमीत सिंह की नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के समर्थन पर निर्भर था. लेकिन इस बार जगमीत सिंह चुनाव में हार गए हैं और पार्टी लीडर का पद उन्होंने छोड़ दिया है. कार्नी भी सरकार चलाने के लिए एनडीपी पर निर्भर नहीं हैं.
भारतीय छात्रों बहुत बड़ी संख्या में कनाडा में पढ़ाई करने जाते हैं. कनाडा में लगभग 4,27,000 भारतीय छात्र रहते हैं. हालांकि, तनावपूर्ण संबंधों के बीच, 2024 में कनाडा में एडमिशन लेने वाले भारतीय छात्रों में 40% से अधिक की गिरावट आई. अब, कार्नी के नेतृत्व में, भारत छात्रों और पेशेवरों के लिए अधिक अवसरों की उम्मीद कर सकता है.
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