"दुनिया में $1.7 बिलियन का मानव अंगों की तस्करी का बाज़ार", सख़्त कानून के बावजूद ऐसे चलता है ये गोरखधंधा...

"ICU में मौजूद ब्रेन-डेड व्यक्ति (Brain Dead Person) के परिवार को अंग दान (Organ Donation) का प्रोत्साहन देने के लिए सरकारी नौकरी, या किसी सर्विस में सब्सिडी, या रेलवे/ हवाई टिकिट में छूट, या अस्पताल में आसान इलाज जैसी सुविधाएं जैसे इंसेंटिव के तौर पर मिलनी चाहिएं. इससे अंग दान बढ सकता है. सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिएं." - डॉ हिमांशु वर्मा, सफदरजंग अस्पताल

हर साल दुनिया में 12,000 मानव अंगों का गैरकानूनी प्रत्यारोपण होता है : अमेरिकी रिपोर्ट

कुछ दिनों पहले भारत (India) की राजधानी दिल्ली (Delhi) में पुलिस ने एक किडनी रैकेट (Kidney Racket) का भंडाफोड़ किया. दक्षिणी दिल्ली में दबोचे गए इस गिरोह ने  शुरुआती पूछताछ में पिछले 6 महीने में 14 मामलों किडनी की तस्करी को अंजाम देने की बात कबूली.  इससे पहले साल 2019 जून में भी कानपुर में किडनी रैकेट का भंडाफोड़ चर्चित हुआ था और 2019 के फरवरी माह में अवैध रूप से किडनी ट्रांसप्लांट कराने वाले अंतरराष्ट्रीय गिरोह के सदस्यों को दबोचा गया था. लेकिन यह घटनाएं दुनिया में इंसानी अंगों की तस्करी(Human organ trafficking)  की बड़ी समस्या की ओर एक छोटा इशारा भर हैं.

अमेरिका(US) की सरकारी कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस के अनुसार, मानव अंगों के तस्करी के बाज़ार को रेड मार्केट (“red market") कहते हैं. गैर सरकारी संगठन ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी (Global Financial Integrity GFI) के आंकलन के मुताबिक विश्व में मानव अंगों की तस्करी का बाजार $840  मिलियन से  $1.7 बिलियन तक का है.  GFI के अनुसार, हर साल दुनिया में 12,000 मानव अंगों का गैरकानूनी प्रत्यारोपण होता है और इनमें से 8000 किडनी होती है, इनके बाद, लिवर, हार्ट, फेंफड़े और पेनक्रियाज़ का नंबर आता है.  

मानव अंगों की तस्करी आम तौर पर भ्रष्ट अधिकारियों और आपराधिक समूहों की सांठ-गांठ से होता है. इसमें  बिचौलिए शामिल होते हैं जो अंग देने के लिए लोगों को तैयार करते हैं, उनसे पैसे की बात करते हैं और ऐसे सेंटर्स और मेडिकल प्रोफेशनल की पहचान करते हैं जहां मानव अंगों की तस्करी की जा सकती है.

युद्ध और मानवाधिकारों का हनन बना मानव अंगों की तस्करी का कारण

अमेरिका की क्रांग्रेसनल रिसर्च रिपोर्ट कहती है कि चीन (China) में अल्पसंख्यकों के अंगों की तस्करी की घटनाएं बढ़ी हैं अधिकतर पैसे की तलाश में मानव अंगों की तस्करी के रैकेट में फंस जाते हैं.  मानव अंगों की तस्करी विवादित जगह पर विस्थापित हुए लोगों की बीच भी बढ़ी हुई देखी गई. उदाहरण के लिए कई जांचकर्ताओं ने पाया कि जातीय अल्पसंख्यकों को उनके अंगों की तस्करी के लिए मारा गया.

साल 1998 -1999 के बीच हुए कोसोवो युद्ध (Kosovo War)  में कोसोवो लिबरेशन आर्मी के अधिकारियों की सहमति से यह अपराध हुआ. 2017 में अमेरिकी सरकार की संयुक्त टीम ने ऐसे सबूत पेश किए थे, जिनसे यह साफ होता था कि शायद इस्लामिक स्टेट (Islamic State) ने भी अपने क्षेत्रीय आपराधिक नेटवर्क की मदद से अपनी गिरफ्त में मौजूद लोगों के अंगों की तस्करी की.  कुछ शोधकर्ताओं ने लेबनान में सीरियाई शरणार्थियों, उत्तरी अमेरिका में अफ्रीकी शरणार्थियों की मानव अंगों के लिए तस्करी के के संभावित मामलों का भी पता लगाया था. 

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के नेफ्रो डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ हिमांशु वर्मा से NDTV ने मानव अंगों के प्रत्यारोपण और इसकी तस्करी के रोकथाम के उपायों पर बात की. 

डॉ हिमांशु ने बताया," दो तरह के ऑर्गन डोनेशन होते हैं, केदेवेरिक डोनेशन (Cadaveric donation) जो  ब्रेन डेड वयक्ति के अंगों का दान होता है, दूसरा होता है फिर लाइव डोनेशन होता है . इसमें होटा एक्ट (human organ transplant act) के तहत मां बाप, बच्चे, पति-पत्नि, भाई-बहन एक दूसरे को कुछ अंग दान कर सकते हैं. दूर के रिश्तेदारों को अंग दान की अनुमति नहीं होती है. इसके लिए लीगल कमेटी बैठती है, वही दूर के रिश्तेदारों की अंग-दान की याचिका पर फैसला करती है. 

भारत में इतने सख्त नियमों के बावजूद कैसे चलते हैं मानव अंगों की तस्करी के रैकेट?

कई किडनी ट्रांसप्लांट कर चुके डॉ हिमांशु NDTV को बताते हैं भारत में आर्गन डोनेशन (Organ Donation) के लिए सबसे ज़रूरी है, HLA टाइपिंग. यह जेनेटिंग मैचिंग होती है. इससे मां-बाप, या भाई-बहन होने के रिश्ते का पता चल जाता है, लेकिन इसमें रैकेट में शामिल लोग, सैंपल लगा देते हैं असल रिश्तेदार का लेकिन फर्जी दस्तावेज बना कर अंग तस्करी वाला लगा देते हैं. यह गाइडलाइन के खिलाफ है. 

किन देशों में अंग -प्रत्यारोपण के बेहर हैं हालात?

अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देशों में ब्रेड डेड वाले, कैदवेयर आर्गन ट्रांसप्लांट बेहतर ढंग से होते है. वहां जागरुकता अधिक है. स्पेन का मॉडल बताते हुए डॉ हिमांशू बताते हैं, स्पेन में अगर कोई मरीज आईसीयू में भर्ती है और अगर वो ब्रेन डेड हो गया तो फिर अस्पताल को यह अधिकार है कि वो कानून तरीके से उस व्यक्ति से अंग निकाल कर प्रत्यारोपित कर सकते हैं, अगर कोई परिवार वाला मना ना करे तो. जबकि भारत में परिवार की सहमति के बिना अंग नहीं निकाले जा सकते हैं.  

अस्पताल मानव अंगों की तस्करी रोकने में कैसे मदद कर सकते हैं?

डॉ हिमांशु कहते हैं, लीगल कमिटी को सही से काम करना चाहिए. मरीज के कानूनी दस्तावेजों को डीटेल में देखना चाहिए. HNA टाइपिंग चेक करनी चाहिए, यह लीगल कमिटी की ज़िम्मेदारी होती है. 

भारत में अंग प्रत्यारोपण को बेहतर कैसे किया जा सकता है?

डॉ हिमांशू कहते हैं अभी बहुत से जागरुकता प्रोग्राम करने होंगे, NOTTO और सरकार मिल कर जागरुकता के लिए कई कार्यक्रम चला भी रहे हैं. दिल्ली-एनसीआर में  पिछले 6 महीने में करीब 30 मामलों में ऑर्गन डोनेशन हुआ है. लोगों में जागरुकता बढ़ रही है. लोगों में डर होता है कि ज़िंदा आदमी किडनी देगा तो वो भी किडनी का मरीज बन जाएगा. लेकिन बेहद बारीकी से जांच करने के बाद ही मरीज को उनके रिश्तेदार से किडनी ट्रांसप्लांट होता है.

वह कहते हैं, "मेरा सुझाव है कि ICU में मौजूद ब्रेन-डेड व्यक्ति के परिवार को रिश्तेदार को सरकारी नौकरी, या किसी सर्विस में सब्सिडी, या रेलवे, हवाई टिकिट में कन्सेशन, या अस्पताल में आसान इलाज जैसी सुविधाएं जैसे इंसेंटिव हों तो इससे अंग दान बढ  सकता है. सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिएं."

होती क्या है मानव अंगों की तस्करी?

अमेरिका की सरकारी कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस के अनुसार, मानव अंगों की तस्करी (organ trafficking),आम तौर पर ऐसी आपराधिक गतिविधियों को कहते हैं जिसमें अवैध तरीके से किसी जीवित या मृत व्यक्ति से अंग निकाला जाना और फिर उसकी अवैध बिक्री और प्रत्यारोपण शामिल है.  जबकि कुछ विशेषज्ञ किसी अंग को पाने के लिए बंदी बनाना या दबाव डालने को भी मानव अंगों की तस्करी की श्रेणी में डालते हैं, अमेरिकी सरकार इसे अंग निकालने के लिए मानव तस्करी की श्रेणी में रखती है. जिसमें मानव-अधिकारों का हनन भी शामिल होता है.

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अंतरराष्ट्रीय जानकारों के मुताबिक कानूनी दायरे से जब मानव अंगों के प्रत्यारोपण की मांग पूरी नहीं होती है तब मानवअंगों की तस्करी को बढ़ावा मिलता है, जिसमें आपराधिक तत्व भी शामिल हो जाते हैं.