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This Article is From Aug 17, 2015

श्रीलंका में आम चुनाव, राजपक्षे की नजरें राजनीतिक वापसी पर

श्रीलंका में आम चुनाव, राजपक्षे की नजरें राजनीतिक वापसी पर
महिंदा राजपक्षे (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: श्रीलंका गहमा-गहमी भरे चुनाव प्रचार के बाद आज अहम आम चुनाव में वोट डालने के लिये तैयार है। राष्ट्रपति चुनाव में हार का सामना करने के कुछ महीनों बाद महिंदा राजपक्षे अब प्रधानमंत्री के रूप में राजनीतिक वापसी करना चाहते हैं। वहीं, राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनने देने का संकल्प लिया है।

राष्ट्रीय संसद की 225 सीटों के लिए यह चुनाव हो रहा है, जिसमें प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) और राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना के यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम अलायंस (यूपीएफए) के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है।

जिला आधारित आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत होने वाले चुनाव के लिए डेढ़ करोड़ योग्य मतदाता हैं।

196 सदस्य जिलों से चुने जाएंगे जबकि प्रत्येक पार्टी को मिले वोट के राष्ट्रीय अनुपात में 29 लोग नामित होंगे। बहुमत के लिए नेशनल असेंबली में 113 सीटों की जरूरत होगी।

हालांकि यूएनपी के लिए असल चुनौती पूर्व राष्ट्रपति और कद्दावर सिंहली नेता राजपक्षे से है।

राजपक्षे (69) को पार्टी का टिकट देने के लिए सिरीसेना इच्छुक नहीं थे, लेकिन उनके पार्टी के सहयोगी दलों ने उनकी इच्छा की अवज्ञा की।

सिरीसेना ने पिछले हफ्ते राजपक्षे को लिखे एक पत्र में आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने दो कार्यकाल में वरिष्ठ सदस्यों को अवसर से वंचित किया।

सिरीसेना ने कहा था कि उन्हें पार्टी में टूट के डर से 17 अगस्त का चुनाव राजपक्षे को लड़ने की सहमति देनी पड़ी।

तमिल और मुसलमान अल्पसंख्यकों को एसएलएफपी से अलग थलग करने का राजपक्षे पर आरोप लगाते हुए सिरीसेना ने राजपक्षे से पार्टी में फूट नहीं डालने को कहा था।

राष्ट्रपति बनने से पहले तक सिरीसेना राजपक्षे के स्वास्थ्य मंत्री हुआ करते थे। इस बीच, राजपक्षे ने कहा है, मैंने जनवरी में जहां छोड़ा था वहीं से शुरुआत करूंगा।

पूर्व राष्ट्रपति ने सिरीसेना विक्रमसिंघे सरकार पर चीनी सहायता से शुरू किए गए कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को अटकाने का आरोप लगाया। राजपक्षे ने सिंहली लोगों से उन्हें यूपीएफए उम्मीदवार के रूप में जिताने की अपील की ताकि वह सत्ता में फिर से आ सके।

वहीं, विक्रमसिंघे लोकतांत्रिक सुधारों के साथ सरकार में बने रहना चाहते हैं। ये सुधार उन्होंने राजपक्षे की हार के बाद से शुरू किए थे। उन्होंने नागरिक एवं लोकतांत्रिक आजादी, सुशासन और निवेश बढ़ा कर समृद्धि बहाल करने की कोशिश की है।

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