चीन की सेना ने गुरुवार को पहली बार पिछले साल लद्दाख क्षेत्र की देपसांग घाटी में अतिक्रमण करने की बात कबूल की और कहा कि ऐसी घटनाएं वास्तविक नियंत्रण रेखा के बारे में अलग-अलग धारणाओं की वजह से हुईं।
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल गेंग यानशेंग ने कहा, 'पिछले साल सीमावर्ती क्षेत्र में कुछ घटना हुई थी। सारे मुद्दे बातचीत के जरिये उचित ढंग से हल कर लिए गए।' हालांकि उन्होंने देपसांग घाटी का नाम नहीं लिया जहां पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों ने पिछले साल अप्रैल में उस क्षेत्र पर अपना नियंत्रण जतलाने के लिए खेमे लगा लिए थे।
प्रवक्ता ने यहां संवाददाता सम्मेलन में एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, 'सीमा रेखा का निर्धारण नहीं है और दोनों पक्ष की वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर अलग-अलग व्याख्याएं हैं।' इस संवाददाता सम्मेलन में कुछ चुनिंदा विदेशी मीडिया को आने की इजाजत दी गई थी और ऐसा चीनी सेना के इतिहास में पहली बार हुआ।
गेंग ने कहा कि विदेशी मीडिया को चीन और चीनी सेना की बेहतर तथा ज्यादा वस्तुपरक समझ के लिए बुलाया गया था।
पिछले साल मई में चीनी प्रधानमंत्री ली क्विंग की भारत यात्रा से पहले देपसांग घाटी में चीन ने अतिक्रमण किया था जिसके बाद सैन्य और कूटनीतिक तनाव पैदा हो गया था। कई दौर की बातचीत के बाद यह मुद्दा सुलझा था और चीनी सैनिक वापस चले गए थे। पहली बार चीनी सेना ने देपसांग घटना का जिक्र किया है, लेकिन उसने अब तक यह नहीं बताया कि ली की यात्रा से पहले चीनी सैनिकों ने ऐसा क्यों किया। प्रधानमंत्री बनने के बाद ली की वह पहली भारत यात्रा थी।
इस महीने लद्दाख क्षेत्र में कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन्हें सौहाद्रपूर्ण तरीके से सुलझा लिया गया।
प्रवक्ता ने कहा, 'दोनों सरकारें सीमा क्षेत्र में विवादों को हल करने पर अहम सहमति पर पहुंची हैं।' उन्होंने सीमा रक्षा सहयोग समझौते का हवाला दिया जिसपर विवादित क्षेत्र में सघन गश्ती के हल के लिए पिछले साल हस्ताक्षर हुए थे। पिछले अक्तूबर में दोनों पक्षों ने इस पर हस्ताक्षर किए जिसमें एक दूसरे के विरुद्ध सैन्य क्षमता का इस्तेमाल नहीं करने और विश्वास बहाली के उपाय प्रस्तावित किए गए थे।
दोनों पक्ष बीडीसीए को क्रियान्वित करने का प्रयास कर रहे हैं।
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