मृत महिला के प्रत्यारोपित गर्भाशय से जन्मी बच्ची : लांसेट
नई दिल्ली:
एक मृत महिला के गर्भाशय का इम्प्लांटेशन कर दुनिया के पहले बच्चे को जन्म दिया गया है, जो कि चिकित्सा क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि है. लांसेट के एक अध्ययन से इस बात की जानकारी मिली है. एक 45 वर्षीय दिमागी रूप से मृत महिला के गर्भाशय को इम्प्लांट कर 2017 में एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया गया. इस कामयाबी से उन सभी महिलाओं को लाभ मिलेगा, जो गर्भाशय बांझपन से जूझ रही हैं, इसके लिए उन्हें किसी जिंदा दानकर्ता की जरूरत भी नहीं है.
ब्राजील के साओ पाउलो में सितंबर 2016 में 10 घंटे से ज्यादा चले ऑपरेशन में गर्भाशय इम्प्लांट किया गया. बच्ची ने दिसंबर 2017 में जन्म लिया था.
एक सर्जरी में दानकर्ता से गर्भाशय निकालकर मरीज में प्रत्यारोपित किया गया. इसके साथ ही दानकर्ता के गर्भाशय को मरीज की नसों व धमनियों, अस्थिबंध और शरीर के निचले हिस्से को भी जोड़ा गया.
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अमेरिका, चेक गणराज्य और तुर्की में मृत महिला के गर्भाशय प्रत्यारोपण के 10 प्रयास किए गए, जो सभी विफल रहे थे. 32 साल की जिस महिला में गर्भाशय प्रत्यारोपित किया गया, वह मेयर-रोकिटांस्की-कस्टर-हौसर (एमआरकेएच) सिंड्रोम से पीड़ित थी.
द लांसेट में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि यह अपनी तरह का पहला मामला था, जिसमें एक जिंदा बच्चे ने जन्म लिया.
साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के डॉक्टर व मुख्य लेखक दानी एजेनबर्ग ने कहा, "मृत दानकर्ताओं के इस्तेमाल से इस उपचार में पहुंच अधिक व्यापक हो सकती है और हमारे नतीजे बताते हैं कि नया विकल्प बांझपन से जूझ रही महिलाओं के लिए काफी मददगार साबित हो सकता है."
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एमआरकेएच सिंड्रोम प्रत्येक 4,500 महिलाओं में से करीब एक को प्रभावित करता है और इसके परिणामस्वरूप वजिना व गर्भाशय पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते.
गर्भाशय देने वाली महिला की स्ट्रोक से मौत हो गई थी.
मरीज को दवाएं दी गईं, जिसने उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर दिया, ताकि प्रत्यारोपण से अंगों को नुकसान पहुंचने से बचाया जा सके.
पांच महीने बाद गर्भाशय को शरीर द्वारा स्वीकार न करने के कोई संकेत नहीं मिले और महिला का मासिक चक्र नियमित पाया गया.
प्रत्यारोपण के सात महीने बाद महिला में निषेचित अंडे इम्प्लांट किए गए. 10 दिनों बाद डॉक्टरों ने उसके गर्भधारण की सूचना दी.
अध्ययन में पाया गया कि 35 सप्ताह और तीन दिन में सीजेरियन तरीके से महिला ने 2.5 किलोग्राम की बच्ची को जन्म दिया. सीजेरियन के दौरान प्रत्यारोपित गर्भाशय को निकाल दिया गया और उसमें कोई अनियमितता नहीं दिखी.
इनपुट-आईएएनएस
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ब्राजील के साओ पाउलो में सितंबर 2016 में 10 घंटे से ज्यादा चले ऑपरेशन में गर्भाशय इम्प्लांट किया गया. बच्ची ने दिसंबर 2017 में जन्म लिया था.
एक सर्जरी में दानकर्ता से गर्भाशय निकालकर मरीज में प्रत्यारोपित किया गया. इसके साथ ही दानकर्ता के गर्भाशय को मरीज की नसों व धमनियों, अस्थिबंध और शरीर के निचले हिस्से को भी जोड़ा गया.
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द लांसेट में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि यह अपनी तरह का पहला मामला था, जिसमें एक जिंदा बच्चे ने जन्म लिया.
साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के डॉक्टर व मुख्य लेखक दानी एजेनबर्ग ने कहा, "मृत दानकर्ताओं के इस्तेमाल से इस उपचार में पहुंच अधिक व्यापक हो सकती है और हमारे नतीजे बताते हैं कि नया विकल्प बांझपन से जूझ रही महिलाओं के लिए काफी मददगार साबित हो सकता है."
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मरीज को दवाएं दी गईं, जिसने उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर दिया, ताकि प्रत्यारोपण से अंगों को नुकसान पहुंचने से बचाया जा सके.
पांच महीने बाद गर्भाशय को शरीर द्वारा स्वीकार न करने के कोई संकेत नहीं मिले और महिला का मासिक चक्र नियमित पाया गया.
प्रत्यारोपण के सात महीने बाद महिला में निषेचित अंडे इम्प्लांट किए गए. 10 दिनों बाद डॉक्टरों ने उसके गर्भधारण की सूचना दी.
अध्ययन में पाया गया कि 35 सप्ताह और तीन दिन में सीजेरियन तरीके से महिला ने 2.5 किलोग्राम की बच्ची को जन्म दिया. सीजेरियन के दौरान प्रत्यारोपित गर्भाशय को निकाल दिया गया और उसमें कोई अनियमितता नहीं दिखी.
इनपुट-आईएएनएस
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